झारखंड के लोगों के लिए सोनू सूद बने कर्नाटका पुलिस के जॉइंट कमिश्नर सीमन्त सिंह
पुलिस के बड़े पद पर रहते हुए लोगों की सेवा कर मिसाल कायम कर रहे हैं रांची के सीमन्त कुमार सिंह। यूं कहें कि झारखंड-बिहार के मजदूरों के लिए वे सोनू सूद से बड़े बन चुके हैं, तो गलत नहीं होगा। श्री सिंह...
पुलिस के बड़े पद पर रहते हुए लोगों की सेवा कर मिसाल कायम कर रहे हैं रांची के सीमन्त कुमार सिंह। यूं कहें कि झारखंड-बिहार के मजदूरों के लिए वे सोनू सूद से बड़े बन चुके हैं, तो गलत नहीं होगा। श्री सिंह रांची के रहनेवाले वाले हैं और वर्तमान में कर्नाटक पुलिस में जॉइंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं।
इन्होंने लॉकडाउन के दरम्यान अब तक लगभग 80 हजार लोगों को भोजन की सामग्री उपलब्ध कराई है, जबकि बिहार, झारखंड, ओड़िशा आदि राज्यों के लगभग 2 लाख लोगों को उनके गृह राज्य भेजने की व्यवस्था की है। लॉकडाउन के दौरान कोई ऐसा दिन नहीं गुजरा, जब उन्हें किसी मजदूर का फोन नहीं आता। श्री सिंह और इनकी टीम लगातार इनकी मदद कर एक मिसाल कायम कर रहे हैं।
फोन नंबर हुआ वायरल
जब लॉकडाउन हुआ तो सरकार ने इन्हें झारखंड के नोडल ऑफिसर व बिहार के क्वारेंटाइन की जिम्मेवारी दी। इसके बाद इनके फोन नंबर पर जरूरतमंदों के फोन आने लगे। इस दौरान उनका पर्सनल नंबर भी वायरल हो गया। श्री सिंह बताते हैं कि उन्होंने हर फोन का जवाब दिया और प्रयास किया कि जिसे जिस प्रकार की मदद की जरूरत है, उसे पहुंचाया जाए। सबसे बड़ी बात थी कि मजदूर खुद संपर्क करते थे। इनकी एक खासियत और है कि किसी भी मिस्ड कॉल का जवाब तुरंत देते हैं।
हिन्दुस्तान से साझा किया अनुभव
श्री सिंह ने हिन्दुस्तान से खास बातचीत के दौरान अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में लगा कि सिर्फ किसी को खाना खिला दें। पर वैसा नहीं था, उन्हें लगा कि अगर किसी को एक बार खाना दिया जाए तो कल वो फिर क्या करेगा? इसकी भी वयस्था की। कई जगहों में फंसे मजदूरों को एक-एक महीने तक की भोजन सामग्री देनी पड़ी।
कई मार्मिक क्षण भी मिले
श्री सिंह ने बताया कि इस दौरान कई मार्मिक क्षण भी आए। इसमें एक यह था कि एक ने फोन कर बताया कि उनकी पत्नी गर्भवती है और राशन नहीं है। काफी मर्माहत करने वाला क्षण था, पर जितना संभव हुआ उस शख्स की भी मदद की गई। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान लोगों को घर जाने की बेचैनी थी। कई जगहों में लोग भारी संख्या में जमा थे, पर घर कैसे जाए यह पता नहीं था। उन्हें टैक्सी, बस, ट्रेन में घर भेजने की व्यवस्था की गई।