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परिवार का विरोध लेकिन नहीं छोड़ा पर्वतारोहण, एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल की कहानी

बछेंद्री पाल को बचपन से ही पहाड़ों से लगाव था। उन्होंने महज 12 साल की उम्र में सहेलियों के साथ एक स्कूल पिकनिक के दौरान 13,123 फीट की चोटी पर चढ़ गई थी। कहानी एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल की...

Krishna Bihari Singh विद्यासागर, जमशेदपुरWed, 9 Aug 2023 08:27 PM
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मजदूर परिवार में जन्म हुआ तो संसाधन भी बेहद सीमित थे। सात भाई-बहनों के इस परिवार में पर्वतारोही बनने का लक्ष्य एक हसीन सपना था। परिवार ने भी इसका विरोध किया लेकिन जुनून की पक्की बछेंद्री पाल ने एक न सुनी और माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहराकर यह साबित कर दिया कि हौसलों से भी सफलता की उड़ान भरी जा सकती है। आज से 39 साल पहले उत्तराखंड की यह बेटी देश के लिए रोल मॉडल बन गई। हर मां अपनी बेटी में पर्वतारोही बछेंद्री पाल को देखने लगी। यह भी मजेदार है कि बछेंद्री पाल को जब यह जिम्मेदारी सौंपी गई तो उन्होंने अपने जैसे 4500 पर्वतारोही तैयार कर दिया। वह एवरेस्ट फतह करने वाली देश की पहली और दुनिया की पांचवीं महिला हैं। 

जेआरडी ने उत्तराखंड से जमशेदपुर बलाया
एवरेस्ट फतह के बावजूद बछेंद्री पाल में कुछ कर गुजरने का जूनून था लेकिन इसके लिए बेहतर प्लेटफॉर्म की जरूरत थी। टाटा समूह के चेयरमैन जेआरडी टाटा तक इस पर्वतारोही की सफलता की कहानी पहुंची तो उन्होंने फौरन बछेंद्री पाल को जमशेदपुर बुला लिया। फिर ऐसी जिम्मेदारी सौंपी जिससे टाटा समूह को विश्व में एक नई पहचान मिली। यह जिम्मेदारी थी एक ऐसे संस्थान की जो सिर्फ उन लोगों के सपने को पूरा करे जिनकी तमन्ना एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहराने की है। जेआरडी टाटा की सोच के अनुरूप वर्ष 1984 में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) की नींव पड़ी और इसकी बागडोर बछेंद्री पाल को सौंपी गई।

स्कूल पिकनिक के दौरान 13000 फीट तक पहुंच गई थी
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नकुरी गांव में बछेन्द्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को हुआ था। अपने गांव में ग्रेजुएशन करने वाली बछेंद्री पहली महिला थीं। उन्होंने संस्कृत से मास्टर की डिग्री हासिल की और आम महिलाओं की तरह बीएड की पढ़ाई पूरी की। बताया जाता है कि पाल ने महज 12 साल की उम्र में अपनी सहेलियों के साथ एक स्कूल पिकनिक के दौरान 13,123 फीट की चोटी पर चढ़ाई की थी। उस दौरान पाल को भी एहसास नहीं हुआ होगा कि वह आगे चलकर देश और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की चढ़ाई कर भारत का झंडा आसमान में लहराएंगी। 

बर्फबारी भी नहीं रोक सकी रास्ता
बीएड करने के बाद बछेन्द्री पाल ने स्कूली शिक्षक के बजाय एक पेशेवर पर्वतारोही के रूप में अपना करियर चुनने का फैसला किया। मई 1984 की शुरुआत में चढ़ाई शुरू की। उनकी टीम को आपदा का सामना करना पड़ा, बर्फबारी में उनका शिविर दफन हो गया। आधे से अधिक लोग घायल हो गए। टीम के बाकी सदस्यों के साथ बछेंद्री 23 मई 1984 को शिखर पर पहुंच गईं।

पद्मविभूषण से सम्मानित हैं बछेंद्री
बछेंद्री पाल को वर्ष 1984 में पद्मश्री, 1986 में अर्जुन पुरस्कार, जबकि वर्ष 2019 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में बछेंद्री पाल को कई मेडल और अवार्ड मिल चुके हैं।

बछेंद्री ने इन्हें भी पहुंचाया शिखर पर
टीएसएएफ की शुरुआत में 12 लोग शामिल थे जिन्होंने एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ाई पूरी की। इनमें पहला नाम था प्रेमलता अग्रवाल का। प्रेमलता ने 20 मई 2011 को पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचने का गौरव हासिल किया था। इसके बाद राजेंद्र सिंह पाल और मेघलाल महतो ने 26 मई, 2012 को इस चोटी पर पहुंचने का लक्ष्य प्राप्त किया था। इसके बाद बिनीता सोरेन में 26 मई, 2012, अरुणिमा सिन्हा ने 21 मई 2013, सुसेन महतो 19 मई, 2013 में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचने का अपना लक्ष्य पूरा किया। हेमंत गुप्ता ने 27 मई 2017, संदीप टोलिया और स्वर्णलता दलाई ने 21 मई, 2018 को इस चोटी पर पहुंचने में सफलता पाई। अस्मिता दोरजी 23 मई, 2023 को शिखर पर पहुंचने में कामयाबी हासिल की। ये कुछ चंद उदाहरण हैं, टीएसएफएफ के कैडेटों की, बाकी फेहरिस्त तो लंबी है।

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