बोले रांची: कमाई नहीं होने से कुलियों को परिवार पालना मुश्किल
रांची के रेलवे कुलियों की स्थिति दयनीय है। रेलवे में आधुनिकीकरण और निजीकरण के कारण उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है। 2008 में नौकरी देने का वादा अधूरा रह गया है। कुलियों ने अपनी समस्याएं साझा कीं,...

रांची, वरीय संवाददाता। रहते-रहते स्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं... मुनव्वर राणा की यह शायरी रांची रेलमंडल में वर्षों से अपनी सेवा दे रहे स्टेशन के कुलियों पर ठीक बैठती है। ये दूसरों का बोझ उठाते-उठाते खुद की जिंदगी के दर्द को भूल गए हैं। स्थिति ऐसी हो गई है कि केंद्र सरकार की नौकरी की घोषणा की आस में उनकी उम्र भी निकल गई। हन्दिुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में रांची और हटिया रेलवे स्टेशन के कुलियों ने अपनी-अपनी समस्याएं साझा कीं। कहा कि स्टेशन पर स्वचालित सीढ़ियों और बैटरी गाड़ी होने से यात्री सामान नहीं ढुलवाते। ठेकेदारी प्रथा ने बची आमदनी छीन ली। रांची रेलमंडल का गठन 1 अप्रैल 2003 को आद्रा मंडल से अलग कर किया गया है। यह दक्षिण-पूर्व रेलवे का महत्वपूर्ण डिविजनों में से एक है। तब से लेकर आज तक रांची, हटिया और मुरी स्टेशनों पर यात्रियों की गतिविधियां और आवाजाही सर्वाधिक होती हैं। माल ढुलाई भी होती है। वर्षों से लाल रंग के कुर्ता-शर्ट वाले कुली अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जन्हिें रेलवे के द्वारा स्टेशनों पर यात्रियों के सामानों और माल ढुलाई के लिए लाइसेंस प्रदान किया जाता है। ये कुली भी रेलवे में अप्रत्यक्ष रूप से अभन्नि अंग के रूप में स्टेशनों पर अपनी सेवाएं देते हैं।
हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में कुलियों ने कहा कि हमें मान्यता रेलवे के द्वारा दी जाती है, लेकिन मानदेय उन्हें कितना मिलेगा, उस पर निर्भर करता है। रांची स्टेशन पर 29 लाइसेंसधारी कुली हैं। जबकि, हटिया स्टेशन पर 9 और मुरी स्टेशन पर 5 हैं। इसमें कई अपना पेशा मजबूरी में छोड़ चुके हैं, क्योंकि रेलवे में आधुनिकीकरण-निजीकरण के कारण इन कुलियों और आश्रित परिवारों की आजीविका पर गहरा संकट आ गया है। खामियाजा यह हो रहा है कि मंहगाई में वे अपने परिवार का ठीक से जीविका तक नहीं चला पा रहे हैं। स्थिति ऐसी हो गई कि कई लाइसेंसधारी कुली अपना पेशा तक छोड़ दिए हैं और आमदनी इतनी कम है कि आने वाली पीढ़ी भी अब इस पेशा में नहीं आ रहे हैं। राष्ट्रीय कुली मोर्चा ने पिछले दिनों कोडरमा के सांसद सहित कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी और बजट और घोषणाओं में कुलियों को नौकरी देने सहित उनकी अन्य लंबित मांगों को पूरा करवाने की मांग की थी।
तत्कालीन रेलमंत्री ने नौकरी देने की घोषणा की, आस टूटी
रांची स्टेशन पर कार्यरत कुलियों ने बताया कि वर्ष 2008 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद थे। जब, उन्होंने स्टेशन पर कार्यरत कुलियों को रेलवे की चतुर्थ श्रेणी में नौकरी देने की घोषणा की थी। एक हद तक घोषणा जमीन पर भी उतरी, परंतु इसमें कुछ लोग ही लाभांवित हो पाए। रांची से 53 लोगों को रेलवे में नौकरी लगी, जिसके कारण उनकी दशा-दिशा सुधर गई और उनका परिवार सम्मानजनक वेतन व जीविकार्पाजन से जुड़ गए। लेकिन, कई ऐसे लाइसेंसधारी कुली थे, जिनको नौकरी नहीं मिल पाई। कई 60-64 वर्ष के हो गए। नौकरी की आस लिए उनकी उम्र भी समाप्त हो गई। लंबे समय से कई लोगों ने इंतजार किया। नौकरी नहीं मिलने के बाद लाइसेंस लेने के बाद भी उन्होंने मजबूरन कुली का पेसा छोड़कर दूसरा पेशा अपना लिया।
घंटों स्टेशन पर रहते हैं, परंतु नहीं मिलता काम
रांची और हटिया स्टेशन पर कई ऐसे कुली हैं, जो पूरे दिन स्टेशन पर रहते हैं। लेकिन, पूरे दिन उन्हें एक भी काम नहीं मिलता है। क्योंकि, रांची से अधिकतर पैसेंजर और मेमू ट्रेनें चलतीं हैं। इन ट्रेनों के यात्री अपना सामान खुद लेकर चलते हैं। सर्फि रांची-पटना जनशताब्दी एक्सप्रेस, हटिया-हावड़ा क्रियायोग एक्सप्रेस, रांची-पटना और रांची-हावड़ा वंदेभारत, हावड़ा शताब्दी एक्सप्रेस, रांची-नई दल्लिी राजधानी एक्सप्रेस, गरीब रथ एक्सप्रेस जैसी जो वीआइपी ट्रेनें हैं, जिके यात्री कुलियों से सामान ढुलवाते हैं। जबकि, अन्य ट्रेनों के यात्री सामान्य मध्यमवर्गीय घर के रहते हैं। वे स्टेशनों पर अपना सामान दूसरों से ढुलवाने से बचते हैं।
चक्का लगे बैग और स्वचालित सीढ़ियों ने किया बेरोजगार
कुलियों ने बताया कि पूर्व में ऐसे बैग आते थे, जो भारी भरकम होने के कारण यात्री खुद न उठाकर कुलियों से उठवाते थे। लेकिन, अब ट्रॉली चक्का लगा हुआ बैग, शूटकेस का प्रचलन हो गया है। साथ ही स्टेशन पर आधुनिकीकरण व आरामदायक आवागमन पथ होने के कारण लोग अपने बैग-शूटकेस को खुद खींचते हुए ले जाते हैं। इससे पारंपरिक कुलियों के जीविकोपार्जन पर असर पड़ रहा है।
बैटरी गाड़ी और ठेकेदारी प्रथा ने तोड़ दी कुलियों की कमर
कुलियों ने बताया कि पूर्व की अपेक्षा स्टेशन पर यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही माल ढुलाई भी ज्यादा होती है। लेकिन, स्टेशन पर बैटरी युक्त गाड़ियों की सुविधा मिलने के कारण लोग कुलियों की सेवा नहीं लेते हैं। इसके अलावा सामान ढोने के लिए पार्सल हो या पार्सल पैकिंग ढोने के लिए ठेकेदारी प्रथा पूरी तरह रेलवे में हावी हो गया है। इसके कारण ठेकेदार बाहर से काम करवाने के लिए मजदूर लाते हैं।
सामाजिक सुरक्षा का आदेश जारी, पर धरातल पर नहीं उतरा
स्टेशन पर कार्यरत कुलियों के लिए रेलवे के द्वारा सामाजिक सुरक्षा संबंधी आदेश नर्गित किए हैं, लेकिन आज तक उनके लिए यह आदेश जमीन पर नहीं उतरी। इसके कारण वे आज तक सामाजिक-आर्थिक, शैक्षणिक रूप से खुद तो पिछड़े हैं और लगातार कई पीढ़ियों से उनका परिवार गरीबी का दंश झेल रहा है। उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर है। इस वजह से उन्हें स्वस्थ्य सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं।
कुली किराया नर्धिारित फिर भी यात्री नहीं देते
रांची रेलमंडल के स्टेशनों पर कुलियों का किराया रेलवे के द्वारा नर्धिारित किया गया है, लेकिन यात्री नर्धिारित मजदूरी भी नहीं देना चाहते हैं। अधिकतर यात्री उनसे काम तो लेते हैं, परंतु पैसा भुगतान के समय कम करवाने की होड़ में शामिल रहते हैं। रेलवे के द्वारा 40 किलोग्राम तक 75 रुपये, 120 किलोग्राम तक 150 रुपये प्रतिभार, 120 किलोग्राम चार पहिया ट्रॉलियों के लिए 225 रुपये प्रति कुली, व्हील चेयर या स्ट्रेक्चर के लिए 100 रुपये प्रति कूली, अतिरक्ति प्रतक्षिा किराया पहला 30 मिनट नि:शुल्क और बाद के 30 मिनट उसके भाग के लिए 40 रुपये प्रति कुली दर नर्धिारित हैं। उसमें भी यात्री मोल-भाव करने से बाज नहीं आते हैं।
आवास के बाहर गंदगी
रांची स्टेशन के समीप कुलियों के निवास के लिए एक हॉलनुमा कमरा दिया गया है, जहां 29 लोग रहते हैं। इसी हॉल में वे सोते हैं। खाना बनाते हैं। ठंडा हो गया गर्मी या बरसात, जमीन पर मोटे कागज या कूट बिछाकर सोते हैं। निवास स्थान की भी स्थिति काफी दयनीय है, उनके आश्रय स्थल के आसपास गंदगी का अंबार रहता है। शौचालय का पानी तक बहता है। दिनभर बदबू आती है।
समस्याएं
1. 2008 के बाद से रेलमंडल में लाइसेंसधारी कुलियों की नौकरी नहीं लगी है।
2. आदेश के बाद रेलवे की ओर से सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं दिया गया।
3. लफ्टि और स्वचालित सीढ़ी ने रेलवे स्टेन पर कुलियों का रोजगार छीन लिया।
4. ठेकेदारी प्रथा और बैटरी गाड़ी से जीविकोपार्जन के अधिकार पर हनन कर लिया गया।
5. रेलमंडल में कुलियों को स्वास्थ्य और शक्षिा की सुविधा नहीं दिया जाता है।
सुझाव
1. रांची रेलमंडल में जितने भी लाइसेंसधारी कुली हैं, उन्हें चतुर्थ श्रेणी में प्राथमिकता मिले।
2. वर्षों पुरानी नौकरी देने की घोषणा फिर से रेलवे प्रशासन द्वारा बहाल की जाए।
3. स्टेशनों पर व्यवस्था ऐसी हो कि ठेकेदार भी भार ढुलाने में कुलियों को प्राथमिकता दे।
4. स्टेशनों का निजीकरण-आधुनिकीकरण हो, लेकिन कुलियों के रोजगार की
5. परिवार और बच्चों के लिए सरकारी स्तर पर शक्षिा-स्वास्थ्य की समुचित सुविधा हो।
:: रेलवे में कुलियों को मिले काम ::
वर्ष 2008 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने नौकरी देने की घोषणा की थी, उसे दोबारा बहाल किया जाए। हमलोगों ने कई बार देश के प्रतष्ठिति राजनेताओं और सांसदों से भी मुलाकात की। उन्हें स्मार पत्र देते हुए रेलवे की नौकरियों में कुलियों को शामिल करने या चतुर्थ श्रेणी में कुलियों को प्राथमिकता दी जाए। हमलोग रेलवे के आश्वासन का बाट जोह रहे हैं।
- सिनेश्वर तांती
आज-कल हमलोगों को काम नहीं मिल रहा है। इसका सीधा कारण है कि रांची से अधिकतर ट्रेनें वीआईपी नहीं हैं। सामान्य ट्रेनों में कुलियों से भार ढुलवाने का प्रचलन यहां नहीं है। ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवार रहते हैं। वे कुलियों से अपना सामान ढुलवाने से बचते हैं। पूरे दिन स्टेशन पर चहलकदमी करते हैं या बैठे रहते हैं।
- सच्चिदानंद प्रसाद
मेरे कई साथियों को नौकरी भी लगी। इंतजार या उम्मीद थी कि मेरा भी नंबर आएगा। देखना है आने वाले दिनों में क्या होता है।
- नंदलाल महतो
रेलवे के द्वारा स्वास्थ्य सुविधा देने की बात कही गई है। कम से कम मेहताना मिलने के बावजूद स्वास्थ्य संबंधी सुविधा मिल जाए।
- अरुण तांती
रेलवे में काफी तेजीकरण से आधुनिकीकरण और निजीकरण हो रहा है। इसका असर हमारे रोजगार पर पड़ रहा है।
- राजेंद्र तांती
जीविकोपार्जन का आधार स्टेशन पर कुली काम से ही चलता है। मेहनत तो खूब करते हैं, लेकिन दो वक्त की रोटी नहीं मिलती है।
- सलामत नट
नौकरी की आस में उम्र निकल गई है। यदि हमलोगों को समय रहते रेलवे में नौकरी नहीं मिली तो परिवार की दशा सुधार नहीं सकेंगे।
- राजेश कुमार
पुराने लोगों को सही रूप से काम नहीं मिल रहा है, न ही रेलवे में नौकरी देने वाली बात पूरी हुई। अब लोग कुली के काम में भी नहीं आना चाहते हैं।
- भगत महतो
पूर्व की सरकारों ने जो आश्वासन दिया था कि स्टेशन के कुलियों की दशा-दिशा सुधारेंगे, उसे धरातल पर उतारना चाहिए।
- रामजी प्रसाद
कुलियों पर कई फल्मिें और गीत बने हैं। लोग कुलियों के कार्य और जिंदगी को भली-भांति जानते हैं। मंहगाई में जीवन यापन मुश्किल है।
- हीरा राय
हमलोगों के लिए न खाने का सही मायनों में व्यवस्था है और न रहने का समुचित आवास है। रेलवे की जगह में किसी तरह गुजर बसर हो रहा है।
- प्रेमचंद महतो
रेलवे में हमें नौकरी मिलेगी, कई वर्षों से इसकी आस लिए कुली का काम स्टेशन में करते आ रहे हैं। नौकरी की आस ही टूट गई।
- मदन महली
घर से बाहर काम करने के आए हैं। लेकिन ठेकेदारी प्रथा और स्वचालित सीढ़ियां के कारण दिनभर में काम नहीं मिलता है।
- सुनिल कुमार सिंह
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