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मातृभाषा में शिक्षा बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति करेगी विकसित

नई शिक्षा नीति-2020 के तहत प्राथमिक स्तर पर 5वीं कक्षा तक बच्चों को मातृभाषा या अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने का निर्णय लिया गया है। शिक्षकों का मानना है कि मातृभाषा में शिक्षा देने से बच्चों का...

Newswrap हिन्दुस्तान, रांचीFri, 21 Feb 2025 03:30 AM
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मातृभाषा में शिक्षा बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति करेगी विकसित

रांची, वरीय संवाददाता। देश में मूल्यपरक शिक्षा के लिए नई शिक्षा नीति-2020 लागू किया गया। नए सत्र से यह पूरी तरह देशभर में लागू हो जाएगा। अभी आंशिक रूप से इसे लागू किया गया है। इसके प्रावधान के तहत प्राथमिक स्तर पर कम से कम 5वीं कक्षा तक बच्चों को मातृभाषा या किसी अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की पहल की गई है। इससे सरकार का उद्देश्य बच्चों को भारतीय भाषाओं से जोड़ना है। संस्कृत भाषा को भी विषय के तौर पर रखा गया है। नई शिक्षा नीति की इस पहल को शिक्षक बुनियादी शिक्षा के लिए सराहनीय पहल बता रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि मातृभाषा में शिक्षा देने से बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा। बच्चे जिस भी मातृभाषा को बोलते हैं, उनमें वे सहज रहेंगे तो अन्य भाषा और स्किल को सीखने में वे ध्यान लगाएंगे। नई शिक्षा नीति की इस पहल पर शिक्षकों ने अपने विचार रखे।

बच्चों का दबाव कम होगा, सीखने की प्रवृत्ति बढ़ेगी : डॉ सुमित कौर

गुरुनानक स्कूल की प्राचार्या डॉ कैप्टन सुमित कौर ने कहा कि मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा देने से बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति बढ़ेगी, क्योंकि उनपर किसी तरह का अतिरिक्त दवाब नहीं होगा। बच्चे जब अपने कंफर्ट के अनुसार सीखेंगे तो उनके आत्मविश्वास में इजाफा होगा और वे आगे हर भाषा को आसानी से सीख सकेंगे। नई शिक्षा नीति की यह पहल सराहनीय और कारगर है। स्कूलों और अभिभावकों को समझने की जरूरत है कि फाउंडेशन स्टेज पर बच्चों को ग्लोबल भाषा सीखने का दबाव न बनाएं। इससे पढ़ाई के प्रति रुचि घट सकती है। यह कोई नहीं बात भी नहीं है। हम स्कूल में बच्चों से उन्हीं की भाषा में बात करते हैं। नई शिक्षा नीति ने इसे बस नियमित किया है, जो बेहतर कदम है।

ग्रामीण बच्चों को उनकी भाषा में समझाना आसान : अजय ज्ञानी

राजकीयकृत उत्क्रमित मध्य विद्यालय चंदाघासी, नामकुम के प्राचार्य अजय ज्ञानी ने कहा कि नई शिक्षा नीति ने बाल वाटिका की अवधारणा दी है, जिसमें बच्चे केजी में दाखिला लेते हैं। सरकारी स्कूलों में भी यह लागू हो गया है। ऐसे में अब बच्चों की मातृभाषा में उन्हें शिक्षा देने से उनमें सीखने की क्षमता का विकास तेजी से होगा। उनका कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे सरकारी स्कूलों में आते हैं, जिन्हें घरों पर मातृभाषा की ही सीख मिली होती है। ऐसे में उन्हें हिन्दी या अंग्रेजी में बुनियादी शिक्षा देना एक चैलेंज की तरह होता है। मातृभाषा में उन्हें कुछ भी समझाने से वह समझते हैं और सजह महसूस करते हैं। 5वीं तक मातृभाषा भाषा में शिक्षा देने की एनईपी की पहल सराहनीय है।

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