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बोले रांची: महिलाओं को योजनाओं का लाभ व सुरक्षित वातावरण मिले

झारखंड में मुस्लिम समुदाय की महिलाओं ने शिक्षा, सुरक्षा और सरकारी योजनाओं के लाभ में कमी की शिकायत की है। उन्होंने कहा कि आरटीई कानून का पालन नहीं हो रहा है और सरकारी स्कूलों में शिक्षा की स्थिति खराब...

Newswrap हिन्दुस्तान, रांचीThu, 27 Feb 2025 04:05 AM
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बोले रांची: महिलाओं को योजनाओं का लाभ व सुरक्षित वातावरण मिले

रांची, हिटी। मुस्लिम समुदाय की महिलाओं की सबसे बड़ी पीड़ा है कि समाज में आगे लाने और बराबरी का दर्जा देने में सरकार की पहल कमजोर रही है। उनका कहना है कि शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है, लेकिन राज्य में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा की स्थित बदहाल है। खासकर मुस्लिम बच्चों के लिए। मुस्लिम समुदाय का बड़ा तबका ऐसा है, जो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं है। उसके लिए सरकारी स्कूल एकमात्र विकल्प हैं, लेकिन वहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं है। राइट टू एजुकेशन (आरटीई) कानून बना, लेकिन आज भी निजी स्कूलों में आरक्षित 25 प्रतिशत सीटों में आधी खाली रहतीं हैं। सरकार निजी स्कूलों में गरीब बच्चों का दाखिला नहीं करा पाती है। यही नहीं, केंद्र और राज्य की कई योजनाएं हैं, लेकिन जागरुकता के अभाव में इसके लाभ से अधिकांश वंचित हैं।

हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय की महिलाओं ने कहा कि शिक्षा ही हर लड़ाई का सबसे बड़ा हथियार है, लेकिन इसके लिए झारखंड में बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं है। जो परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उनके बच्चों को अच्छे स्कूलों में शिक्षा मिल पाना मुश्किल है। शोमाइला तहजीब कहती हैं कि आरटीई कानून इसलिए लाया गया था कि गरीब परिवार के बच्चों को अच्छे निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर नामांकन कराकर समुदाय को भी ऊपर उठाया जा सकेगा, लेकिन आज इस योजना की क्या स्थिति है। रांची में ही कभी भी सरकार 1200 सीटों में आधे में भी गरीब बच्चों का दाखिला नहीं करा पाती है। सरकारी स्कूलों की स्थिति से किसी छुपी नहीं है। मदरसे में शिक्षा मिलती है, लेकिन प्रतियोगी परीक्षा के लिए बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और माहौल मिलना ही चाहिए, जिससे हमारे बच्चे वंचित हो रहे हैं।

योजनाओं का लाभ लाभुकों तक नहीं पहुंच पाता

खुशबू खान ने कहा कि मुस्लिम समुदाय अल्पसंख्यक में गिना जाता है, जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं हैं, लेकिन वास्तविक रूप से इसका लाभ काफी कम लोगों तक पहुंच पाता है। कारण, जागरुकता की कमी। सरकार अपनी योजनाओं के प्रति जागरुकता कार्यक्रम चलाए और योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में काम करे, तभी मुस्लिम परिवार के बच्चे भी आगे बढ़ेंगे।

आर्थिक विकास को बढ़ावा देना चाहिए

शोमाइला तहजीब ने कहा कि भारत में अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम चलाए गए हैं, जिसका उद्देश्य उनके सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्री कार्यक्रम अल्पसंख्यक समुदायों के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए है, जिसमें मुस्लिम समुदाय को भी शामिल किया गया है। इसमें विभिन्न मंत्रालयों के तहत कई योजनाएं शामिल हैं, जो उनकी शिक्षा, रोजगार और समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करती हैं। प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत कक्षा 9 और 10 तक के मुस्लिम विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना में लड़कियों के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन इसका लाभ नहीं मिल पाता है। पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना में कक्षा 11 से पीएचडी तक के मुस्लिम विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जाती है, लेकिन इस बारे में कभी भी जागरुकता फैलाने का काम नहीं किया जाता है।

इसी तरह कौशल विकास और रोजगार के लिए कई योजनाएं हैं, लेकिन धरातल पर कितनी कारगर है, यह सरकार को बताना चाहिए। केंद्र की एक बड़ी योजना है पढ़ो परदेस। इसके तहत अल्पसंख्यक छात्रों को विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए ऋण पर ब्याज सहायता प्रदान की जाती है, लेकिन कितने प्रतिशत छात्र-छात्राओं को यह मिल पाता है। हमारे बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में जबतक मजबूत नहीं किया जाएगा, वे आगे नहीं बढ़ सकेंगे।

यही नहीं, मुस्लिम महिलाएं बुनियादी सुविधाओं की कमी से भी निराश हैं। खुशबू खान कहती हैं कि महिला सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन इसपर पुलिस प्रशासन कभी काम नहीं करता। मुस्लिम महिलाएं रमजान जैसे मौके पर भी बाजार में घूमने में सहज महसूस नहीं करतीं। रांची में देर रात तक बाजार लगता है। जब महिलाएं रात में लौटती हैं तो काफी असुरक्षित महसूस करती हैं। खास मौके पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने और विशेष महिला पुलिस बल की तैनाती होनी चाहिए।

सामाजिक भेदभाव के कारण होती है परेशानी

मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के साथ समाज में भी काफी भेदभाव होता है। लगातार समाज के लोग उन्हें देखकर अलग हो जाते हैं। कई जगहों पर तो उन्हें गलत और हीन भावना से भी देखा जाता है। मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के साथ सामाजिक भेदभाव भी गंभीर समस्या है, जिससे उन्हें अपने अधिकारों और अवसरों से भी वंचित होना पड़ता है। लोग उनके साथ बातचीत करने में हिचकिचाते हैं। इसका गहरा प्रभाव उनके आत्मसम्मान पर भी पड़ता है। अक्सर नौकरी में भी इन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उनके कामों को भी काफी कम महत्व दिया जाता है।

महंगी स्वास्थ्य व्यवस्था पर लगे अंकुश

स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार महंगाई बढ़ती जा रही है, जिस कारण लोगों को स्वास्थ्य की सुविधा लेने में काफी तकलीफ होती है। खासकर मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को परेशानी होती है। एक बड़ा तबका है, जो आर्थिक रूप से कमजोर है। ऐसे में महंगी स्वास्थ्य सेवाएं ले पाना संभव नहीं होता। सरकारी योजनाएं जैसे आयुष्मान भारत का लाभ भी निजी अस्पतालों की मनमानी के शिकार हैं। इसपर अंकुश लगाने की जरूरत है। इस तरह की योजनाओं की प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं।

राजनीति में भी मुस्लिम महिलाओं को सहभागिता मिले

झारखंड में मुस्लिम समुदाय की महिलाओं का राजनीतिक में प्रतिनिधित्व काफी कम है। इस समुदाय की महिलाओं का विधानसभा और लोकसभा में पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व नहीं है। इसी कारण, समुदाय की महिलाओं की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने में काफी परेशानियां होती है। महिलाओं को भी जो समस्या होती है, वह दबकर ही रह जाती है। कहा, मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को भी राजनीति में आरक्षण मिले। ताकि, ये महिलाएं भी आगे बढ़कर राजनीति में अपना कदम रखें और समस्याओं को उजागर कर सकें। चुनाव लड़ने के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि वे आगे आकर चुनाव लड़ें और पूरे समाज की समस्यओं का समाधान कर सकें।

महिला सुरक्षा के लिए क्षेत्र में हो सीसीटीवी कैमरा

हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय की महिलाओं ने खुलकर अपनी बातें रखीं। उनका कहना था कि शहर में महिला सुरक्षा को लेकर खास व्यवस्था नहीं दिखती है। पुलिस प्रशासन इस मामले में कभी भी ठोस कदम नहीं उठाता है। कई बार इस मामले में पुलिस प्रशासन से गुहार भी लगाई गई है। खासकर रमजान के माह में रात्रि बाजार के दौरान सुरक्षा को लेकर चिंता बनी रहती है।

महिलाएं और लड़कियां अकेले बाहर जाने में भी डरती हैं। वहीं, शहर में भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कुछ भी नहीं किया जाता है। यही कारण है कि छेड़खानी और दुष्कर्म जैसी घटनाएं घटित होती रहतीं हैं।

गली-मोहल्लों में लगाई गई स्ट्रीट लाइट खराब: महिलाओं ने कहा कि गली-मोहल्लों में लगाई गई स्ट्रीट लाइट्स भी नहीं जलती हैं। हमें अंधेरे में भी आने-जाने में काफी डर लगाता है। कई बार चेन छिनतई की घटना हो चुकी है। घटनाएं घटने पर भी आरोपी को पकड़ा नहीं जाता है। रांची शहर में यूं तो लगभग सभी इलाकों में सीसीटीवी लगाए गए हैं, लेकिन इसमें कितने सही हैं, कितने खराब यह पता नहीं चलता। घटना के बाद भी इसकी उपयोगिता समझ में नहीं आती। हमारी मांग है कि कुछ संवेदनशील मोहल्लों में भी सीसीटीवी लगाए जाने चाहिए। इससे घटनाओं पर रोक लगेगी और यदि कोई घटना होती है तो आरोपी को भी पकड़ने में सुविधा होगी। इसके लिए पुलिस और प्रशासन को भी महिला सुरक्षा के लिए विशेष बल की गठन करने की जरूरत है। शक्ति टीम का गठन कॉलेजों के बाहर के लिए किया गया था, लेकिन आज यह कारगर नहीं है।

समस्याएं

1. आरटीई कानून का पूरी पालन नहीं कराया जाता है, इस वजह से निजी स्कूलों तक गरीब छात्र नहीं पहुंच पाते।

2. जागरुकता के अभाव में सरकारी योजनाओं के लाभ से बड़ा तबका वंचित है।

3. महिला सुरक्षा बड़ी चिंता का विषय है, महिलाएं घरों से निकलने से डरती हैं।

4. संवेदनशील इलाकों में सीसीटीवी नहीं होने से आपराधिक घटनाएं बढ़ती हैं।

5. सफाई वाहन नहीं आते, स्ट्रीट लाइट लंबे समय से खराब हैं।

सुझाव

1. सरकार निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाते हुए आरटीई के तहत गरीब बच्चों का दाखिला निजी स्कूलों में सुनिश्चित कराए।

2. नेटवर्किंग, शैक्षिक अवसरों का विस्तार और जागरुकता अभियानों को बढ़ावा दिया जाए।

3. सुरक्षा के लिए विशेष महिला पुलिस बल की तैनाती हो।

4. संवेदनशील इलाकों में सीसीटीवी लगाए जाएं। मोहल्लों में भी कैमरे से निगरानी कर अपराध पर रोक लगाई जाए।

बोलीं महिलाएं

आर्थिक समृद्धि के लिए भी सरकार को योजानाएं लाने की जरूरत है, ताकि कोई भी परिवार पिछड़ा न रह जाए, सभी आगे बढ़ें और सशक्त बनें। आरटीई कानून को प्रभावी करने पर सरकार ध्यान दे।

- सादाफ यासमीन

मुस्लिम समाज की महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सुदृढ़ करने की जरूरत है। ताकि, जो समाज में गरीब लोग हैं, उन तक भी सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाएं सही तरह से पहुंच सकें।

- खुशबू नाज

गरीब और वंचित बच्चों को निजी स्कूलों में शिक्षा मिल सके, इसके लिए आरटीई कानून बना, पर रांची में पालन नहीं हो पाता। मुस्लिम महिलाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था हो।

- शोमाइला तहजीब

महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार के पास किसी भी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। कई गली-मोहल्लों की स्ट्रीट लाइट्स खराब हैं, अंधेरा पसरा रहता है।

- खुशबू खान

मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए, ताकि वे पढ़कर बराबरी का दर्जा हासिल कर सकें। सभी को छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का लाभ भी मिले।

- राणा सादिया

मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा और रोजगार में भी सरकार की ओर से किसी भी प्रकार का कोई अवसर नहीं मिलता है। इससे भी वे आर्थिक रूप से कमजोर रह जाती हैं।

- शगुफ्ता जबीन

रोजगार में भी कोई लाभ और आरक्षण की सुविधा नहीं मिलती है, इससे महिलाएं रोजगार जैसे क्षेत्र में पीछे रह जाती हैं। इसके लिए सरकार को काम करने की सख्त जरूरत है।

- सादिया फिजैल

सरकार को अपनी योजनाओं में महिलाओं के लिए पैसे की जगह रोजगार के अवसर देने चाहिए। महिलाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार देने का काम सरकार को करना चाहिए।

- शामिन होशियन

झारखंड में भी सरकार को महिला सुरक्षा को लेकर सख्त कानून बनाने की जरूरत है। जिस तरह से अन्य मुस्लिम राज्यों में कानून लागू हैं, ताकि किसी भी प्रकार की कोई घटना न घटे।

- फरहा जावेद

सरकार की ओर से कई प्रकार की योजना और लाभ सभी विभाग में दिए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई असर नहीं दिखता है। किसी भी प्रकार का लाभ जल्द नहीं मिलता है।

- नजमा खातून

शिक्षा के क्षेत्र में कोई सुविधा और न ही आरक्षण दिया जाता है। सरकारी स्कूलों में भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। आरटीई जैसे कानून का भी निजी स्कूल पालन नहीं करते।

- नसरीन रिजवी

मुस्लिम महिलाओं को अक्सर शिक्षा और रोजगार के अवसरों में कमी का सामना करना पड़ता है, जिस कारण महिलाएं राजनीति में भी प्रभावी ढंग से भाग लेने में असमर्थ हो जाती हैं।

- रेशमा परवीन

मुस्लिम समुदाय में महिलाओं को अक्सर पितृसत्तात्मक मानसिकता का भी सामना करना पड़ता है, जिस कारण महिलाएं अपने हक-अधिकारों और अवसरों के बारे में जागरूक नहीं हो पाती हैं।

- शगुफा

सुरक्षा की कमी के कारण भी कहीं भी आने-जाने पर रोक लगा दिया जाता है। सरकार को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। ताकि, महिलाएं खुलकर और आजाद होकर रह सकें व विकास में भागीदार बन सकें।

- नाशहरा नाज

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