अबुआ सरकार में उड़ाई जा रही है धर्मांतरण कानून की धज्जियां : रघुवर
आर्यभट्टा सभागार में हुआ बिरसा मुंडा का जयंती समारोह, झारखंड के आदिवासियों की संस्कृति पर चौतरफा हमला हो रहा

रांची, वरीय संवाददाता। आदिवासियों का धर्मांतरण रोकने के लिए पहली बार झारखंड में धर्मांतरण कानून बनाया। लेकिन इस अबुआ सरकार में धर्मांतरण कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यह बातें मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री सह पूर्व ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास ने कही। वे रविवार को आर्यभट्टा सभागार में हुए बिरसा मुंडा जयंती समारोह में शामिल हुए। आयोजन कलिंगा भारती फाउंडेशन, नई दिल्ली और भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने संयुक्त रूप से किया। रघुवर ने कहा कि झारखंड के आदिवासियों की संस्कृति पर चौतरफा हमला हो रहा है। उन्होंने कहा कि जिस तहर भगवान बिरसा ने अपनी संस्कृति को बचाने के लिए उलगुलान शुरू किया, उसी तरह अब आदिवासी बुद्धिजीवियों को भी उलगुलान शुरू करने पर सोचना होगा।
यह सरकार सरना कोड की बात करती है, लेकिन इसी सरकार में लोगों को सरना स्थल बचाने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। रघुवर ने कहा कि कोई राज्यपाल जैसा पद छोड़ना नहीं चाहता है, लेकिन मैंने झारखंड को बचाने के लिए इस पद को छोड़ दिया। आने वाले दिनों में जनजातियों के बीच चौपाल लगाकर उनकी समस्याएं सुनी जाएंगी। मैंने खुद मुख्यमंत्री रहते हुए मानकी-मुंडा के लिए सम्मान राशि के रूप में दो हजार रुपये देने शुरू किए थे, लेकिन इस सरकार ने इसे बंद करवा दिया। इस दौरान भगवान बिरसा मुंडा के परपोते सुखराम और बुधराम मुंडा को पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में स्वागत भाषण समारोह के मुख्य संयोजक डॉ राजा राम महतो ने दिया, जबकि मंच संचालन डॉ कमल बोस ने किया। कार्यक्रम में विभिन्न जगहों से आए कलाकारों ने रंगारंग पारंपरिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई। इसी क्रम में 150 लोगों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में पूर्व कुलपति डॉ सत्यानारायण मुंडा, केरल पुलिस के डीजी रहे डॉ संजीवपट जोशी, फाउंडेशन के अध्यक्ष अक्षय कुमार शमल ने भी विचार रखे। धर्मांतरण कर जनजाति समाज को किया जा रहा है विखंडित : सीपी सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में रांची के विधायक सीपी सिंह ने कहा कि धर्मांतरण कर आदिवासी समाज को विखंडित करने की साजिश हो रही है, यह धर्मांतरण, सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी का फायदा उठाकर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि झारखंड में जो जंगल बचा है, वह आदिवासियों के कारण ही बचा है। इसी तरह धर्मांतरण होता रहा और विखंडित किया जाता रहा, तो एक दिन जल, जंगल-जमीन की रक्षा करने वाले समाप्त हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि यदि समाज के अंदर गड़बड़ी है तो आदिवासी बुद्धिजीवियों व समाज के लोगों को ही सुधारना होगा। साथ ही आदिवासी समाज से नशापान जैसी कुरीतियों को समाप्त करना होगा, तभी राष्ट्र को विकसित करने की दिशा में सहभागिता निभा सकते हैं।
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