बोले रांची : सहियाओं को नहीं मिलता मानदेय प्रोत्साहन राशि से गुजारा मुश्किल
झारखंड की 42 हजार स्वास्थ्य सहियाएं अपने मानदेय और अन्य मांगों को लेकर आंदोलन कर रही हैं। उनका कहना है कि सरकार उनसे 37 प्रकार के काम लेती है, लेकिन उन्हें केवल प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाता है।...

रांची, संवाददाता। झारखंड में 42 हजार से अधिक स्वास्थ्य सहिया अपने मानदेय भुगतान की मांग समेत छह सूत्री मांगों को लेकर लगातार आंदोलन करती आई हैं। हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में स्वास्थ्य सहियाओं ने कहा कि सरकार उनसे 37 प्रकार के काम लेती है। काम करने का समय भी निर्धारित नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र की सहियाओं को 24 घंटे सातों दिन काम के प्रति सजग रहना पड़ता है। काम के एवज में उन्हें केवल प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाता है। स्वास्थ्य सहियाओं का कहना है कि उन्हेंमानदेय की श्रेणी में लाते हुए 18 हजार प्रतिमाह भुगतान किया जाए। साथ ही नियमित करते हुए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ा जाए। साथ ही सहियाओं को यात्रा भत्ता का भुगतान किया जाए और प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन लाभार्थी प्रवेश आयु 40 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष की जाए, ताकि इसका लाभ स्वास्थ्य सहियाओं को मिल सके।
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन पूरे देश में संचालित योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) में लगभग 10 लाख 22 हजार 265 से अधिक आशा वर्कर व कर्मचारी कार्यरत हैं। झारखंड में लगभग 44 हजार सहिया (आशा), सहिया साथी एवं स्वतंत्र साधन सेवी कार्य कर रही हैं। आम नागरिकों को उनके स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं की जानकारी देना एवं उन्हें प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना, आवश्यक सेवाओं के प्रयोग के लिए परामर्श एवं व्यवस्था देना, ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने में स्वास्थ्य सहियाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
इन कार्यों को करने के एवज में भारत सरकार के द्वारा आशा कर्मियों को कोई मानदेय या वेतन नहीं दिया जाता है, बल्कि उक्त कार्य के लिए संचालित योजनाओं के अनुसार अल्प प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाता है। झारखंड सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अन्तर्गत कार्यरत ग्रामीण स्तरीय सहिया (आशा) सहिया साथी एवं स्वतंत्र साधन सेवी को राज्य योजना मद से अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि देने की स्वीकृति दी। राज्य में चिकित्सा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया था। सरकार का मानना है कि सहियाएं ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लेकिन वर्तमान में इस योजना को धरातल पर नहीं उतारा गया। वर्तमान में सहियाओं को प्रतिमाह दो हजार रुपये प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाता है। सहियाओं का कहना है इस राशि में भी कई बार कटौती की जाती है, जिससे गुजारा मुश्किल होता है। झारखंड सरकार की योजना के तहत शहरी सहिया को एक हजार व ग्रामीण सहिया को दो हजार रुपये देने की बात कही गई थी।
स्वास्थ्य सहियाओं को मिले मानदेय और हो नियमितीकरण: स्वास्थ्य सहियाओं की मुख्य मांगों में से उन्हें मानदेय से जोड़ा जाए और उन्हें नियमित कर्मचारी का दर्जा मिले। उनका कहना है कि उन्हें सामाजिक सुरक्षा के तहत 18 हजार रुपये का न्यूनतम वेतन दिया जाए और सरकारी कर्मचारी का दर्जा प्रदान किया जाए, साथ ही पेंशन और बीमा का लाभ मिले। वर्तमान में, आशा कार्यकर्ताओं को कोई निश्चित वेतन नहीं मिलता है। उन्हें योजनाओं के क्रियान्वयन के आधार पर प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
ईपीएफओ और ईएसआईसी का मिले लाभ: स्वास्थ्य सहियाओं ने आशा कार्यकर्ताओं को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) और कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के दायरे में लाने की मांग की है। जिससे उनके इलाज में योगदान मिले। साथ ही उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन जैसी सुविधा मिल सके। उन्होंने कहा कि वे लंबे समय से अल्प प्रोत्साहन राशि पर काम कर रही हैं, और उन्हें आर्थिक सुरक्षा की आवश्यकता है। साथ ही कार्य स्थल पर स्वास्थ्य सहियाओं के लिए बेहतर कार्य स्थितियों, जैसे कि उचित विश्राम स्थल और यात्रा भत्ता की भी मांग कर रही हैं। साथ ही कोविड-19 महामारी के दौरान आशा कार्यकर्ताओं को सरकार द्वारा घोषित 10 हजार रुपये का मुआवजा तुरंत देने की मांग की।
37 प्रकार के काम लेती है सरकार : स्वास्थ्य सहियाओं से 37 प्रकार के कार्य सरकार लेती है। कार्य के एवज में इन्हें प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाता है। स्वास्थ्य सहिया प्रारंभिक पंजीकरण, प्रसव पूर्व जांच, स्वास्थ्य सुविधा केंद्र पर प्रसव, मातृत्व मृत्यु समीक्षा (एमडीआर की सूचना), सुरिक्षत गर्भपत में सहयोग, घर पर नवजात शिशु की देखभाल, छोटे बच्चों की गृह आधारित देखभाल हेतु गृह भ्रमण एव परामर्श, पूर्ण टीकाकरण, कुपोषण उपचार में सहयोग, पल्स पोलियो में सहयोग, एमटीसी शिशु का फॉलोअप, परिवार नियोजन कार्यक्रम में सहयोग करती हैं।
काम के लिए स्मार्टफोन की जरूरत
स्वास्थ्य सहियाओं को 37 प्रकार के काम करने पड़ते हैं। सभी काम का डाटा स्मार्टफोन से सहिया ऐप में चढ़ाना पड़ता है। अगर वे काम कर डाटा अपडेट नहीं करती हैं तो उनके प्रोत्साहन राशि में कटौती की जाती है। साथ ही उन्हें खुद के पैसे से स्मार्टफोन खरीदना पड़ता है। इसके इस्तेमाल के लिए कोई भत्ता भी नहीं दिया जाता है। सारा खर्च खुद वहन करना पड़ता है। स्वास्थ्य सहिया का काम करने वालों में कई अधिक उम्र की महिलाएं हैं, जिन्हे स्मार्टफोन चलाने में परेशानी होती है।
साल में दो बार मिले ड्रेस भत्ता
स्वास्थ्य सहियाओं की मांग है कि उन्हें साल में दो बार गणवेश दिया जाए और ड्रेस भत्ता मिले। गणवेश और ड्रेस भत्ता मिलने से आशा कार्यकर्ताओं की पहचान सुनिश्चित होगी और उन्हें काम करने में सुविधा होगी। उनका कहना है कि गणवेश मिलने से वे आसानी से पहचानी जा सकेंगी। साथ ही ड्रेस भत्ता मिलने से वे अपनी आवश्यकतानुसार गणवेश खरीद सकेंगी। स्वास्थ्य सहियाओं का कहना है कि गणवेश से उन्हें काम के दौरान आम जनता से अलग दिखने में मदद मिलेगी।
पांच लाख का मिले मुआवजा
स्वास्थ्य सहियाओं की मांग है कि आशा कर्मचारियों को कार्य के दौरान दुर्घटना होने या मृत्यु होने पर पांच लाख रुपये का भुगतान मुआवजा के रूप में किया जाना चाहिए, जिससे उनके आश्रितों को आर्थिक मदद मिल सके। स्वास्थ्य सहिया अक्सर जोखिम भरे क्षेत्रों में काम करती हैं। दुर्घटना या मृत्यु होने पर उनके परिवारों को कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती है। साथ ही दुर्घटना में घायल होने के बाद अस्पतालों के खर्च पर भी आर्थिक बोझ पड़ता है।
सेवानिवृत्ति के समय एकमुश्त 10 लाख रुपए के भुगतान की मांग
झारखंड की स्वास्थ्य सहियाएं न्यूनतम वेतनमान की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। उन्होंने कहा कि आशा वर्कर्स को न्यूनतम 18 हजार, आशा सहयोगिनी- आशा फैसिलिटेटर को 24 हजार एवं बीटीटी और कोआर्डिनेटर को 30 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन भुगतान करने की मांग की। साथ ही सेवानिवृत्ति के समय आशा वर्कर्स, आशा सहयोगिनी आशा फैसिलिटेटर, बीटीटी, कोआर्डिनेटर को रिटायर बेनिफिट के रूप में एकमुश्त 10 लाख रुपए की राशि का भुगतान करने की मांग की।
ईपीएफओ और ईएसआईसी का लाभ मिले
आशा कार्यकर्ताओं को सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए, जिससे उन्हें आर्थिक स्थिरता और सम्मान मिले। आशा वर्कर्स को न्यूनतम 18 हजार, आशा सहयोगिनी- आशा फैसिलिटेटर को 24 हजार एवं बीटीटी, कोआर्डिनेटर को 30 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय भुगतान किया जाए। साथ ही सभी को सरकारी कर्मी का दर्जा मिले। -मीणा देवी
आशा कर्मचारियों को 18 हजार रुपए न्यूनतम वेतन प्रदान किया जाय। साथ ही सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत पेंशन बीमा का लाभ देते हुए सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। साथ ही सहिया को ईपीएफओ और ईएसआईसी के दायरे में लाया जाए, जिससे उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद वित्तीय सुरक्षा और चिकित्सा सुविधाएं मिले सके। बाद में जीवन यापन का साधन रहे।
-राधा देवी
कोविड के दौरान घोषणा की राशि नहीं मिली
कोविड-19 में आशा कर्मचारियों को सरकार द्वारा दस हजार देने की घोषणा की गई थी जिसे तत्काल भुगतान किया जाए। चिकित्सालयों में आशा वर्कर्स के लिए विश्रामस्थल की व्यवस्था हो।
-अबिदल खातून
योग्यताधारी आशा वर्कर्स को एएनएम तथा आशा सहयोगिनी-फैसिलिटेटर के पत्र पर पदोन्नति प्रदान किया जाए। कार्य के लिए यात्रा भत्ता का भुगतान किया जाए।
-शाहिदा बेगम
अनुभवी आशा कार्यकर्ताओं को टीकाकरण का प्रशिक्षण देने से टीकाकरण अभियान को और प्रभावी बनाया जा सकता है। इससे आपात स्थिति से निपटने में स्वास्थ्य सहिया सक्षम होंगी।
-अनिता गाड़ी
आशा वर्कर्स, आशा सहयोगिनी, फैसिलिटेटर, बीटीटी, कोआर्डिनेटर को कार्य के दौरान दुर्घटना होने और मृत्यु होने पर पांच लाख रुपए बतौर मुआवजा के रूप में दिया जाए। -वीणा देवी
आशा कार्यकर्ताओं को सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। आशा कर्मचारियों को ईपीएफओ एवं ईएसआईसी के दायरे में लाया जाए।
-शीला देवी
कोविड-19 में आशा कर्मचारियों को सरकार द्वारा दस हजार देने की घोषणा की गई थी, जिसे तत्काल भुगतान किया जाए। अनुभवी आशा कर्मचारियों को टीकाकरण के प्रशिक्षण दिया जाए।
-सोनिया देवी
आशा कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत 18 हजार रुपए तथा न्यूनतम वेतन प्रदान किया जाय। साथ ही पेंशन बीमा का लाभ देते हुए सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाय।
-ममता देवी
आशा वर्कर्स को न्यूनतम 18 हजार, आशा सहयोगिनी- आशा फैसिलिटेटर को 24 हजार एवं बीटीटी, कोआर्डिनेटर को 30 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय भुगतान किया जाए।
-पुष्पा देवी
स्वास्थ्य सहियाओं से 37 प्रकार के कार्य सरकार लेती है। कार्य के एवज में केवल प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाता है। हमें न्यूनतम मानदेय दिया जाए, जिससे आर्थिक स्थिति सुधरे।
-यमुना नागुडुआ
खुद के पैसे से स्मार्टफोन खरीदना पड़ता है। इसके इस्तेमाल के लिए कोई भत्ता भी नहीं दिया जाता है। सारा खर्च खुद वहन करना पड़ता है। कई लोगों को ऑनलाइन काम करने में परेशानी होती है।
-पुरनी देवी
आशा वर्कर्स, आशा सहयोगिनी आशा फैसिलिटेटर, बीटीटी, कोआर्डिनेटर की रिटायर बेनिफिट के रूप में एकमुश्त 10 लाख की राशि का भुगतान किया जाए। हमलोगों का कार्य सातों दिन चौबीस घंटे चलता है, इसके बाद भी आठ घंटे काम करने वाले कर्मचारियों की तरह सुविधाएं नहीं मिलती है। सरकार से अपील है कि हमलोगों को सभी कर्मचारियों की तरह ही अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएं।
-सुनीता देवी
समस्याएं
1. स्वास्थ्य सहियाओं को नहीं मिलता है मानदेय, प्रोत्साहन राशि से गुजारा नहीं
2. दुर्घटना या मृत्यु होने पर उनके परिवारों को कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती
3. गणवेश और ड्रेस एलाउंस की सुविधा नहीं है, जिससे पहचान में परेशानी होती है।
4. काम के लिए स्मार्टफोन की जरूरत, खुद के पैसों से खर्च का वहन करना पड़ता है
5. स्वास्थ्य सहिया ईपीएफओ एवं ईएसआईसी के दायरे में नहीं हैं
सुझाव
1. स्वास्थ्य सहियाओं को न्यूनतम वेतनमान से जोड़ा जाए, जिससे उन्हें उचित मानदेय मिले
2. दुर्घटना या मृत्यु होने पर उनके परिवारों को पांच लाख का मिले मुआवजा
3. वर्ष में दो बार गणवेश उपलब्ध कराया जाए तथा ड्रेस एलाउंस का भुगतान हो
4. 37 प्रकार के काम ऑनलाइन करने पड़ते हैं, सराकर फोन और उसका खर्च दे
5. स्वास्थ्य सहियाओं को ईपीएफओ एवं ईएसआईसी के दायरे में लाया जाए
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