बोले रांची : रसोइया को स्थाई कर न्यूनतम वेतन दे सरकार
झारखंड की 79 हजार रसोइया और 39 हजार संयोजिका न्यूनतम वेतन और स्थायीकरण की मांग को लेकर आंदोलन कर रही हैं। उन्हें प्रतिदिन 66.66 रुपये मिलते हैं, जो राज्य सरकार के न्यूनतम मजदूरी से कम है। रसोइया और...

रांची, संवाददाता। झारखंड की 79 हजार से अधिक रसोइया और 39 हजार से अधिक संयोजिका अपने न्यूनतम वेतनमान से लेकर स्थायीकरण को लेकर आंदोलनरत है। उनका कहना है कि उन्हें प्रतिदिन 66.66 रुपये मिलते हैं और वे सुबह 9 बजे से कम से कम दोपहर 3 बजे तक काम करती हैं। साथ ही उन्हें कोई अवकाश नहीं दिया जाता है। छह घंटे से अधिक समय तक प्रतिदिन काम करने के बावजूद उनका वेतन मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना की राशि सेकम है। उनका कहना है की वे भी मंईयां ही है, उन पर भी ध्यान दे सरकार। झारखंड के 35493 विद्यालयों में मीड डे मिल योजना चलाई जा रही है। जिसके लिए 79286 रसोइया काम कर रही हैं। इनमें प्राथमिक विद्यालयों में 56101 और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 23185 रसोईया कार्यरत हैं।
वर्तमान में इन सभी रसोइया को पीएम पोषण (मध्याह्न भोजन) योजना के तहत दो हजार रुपये प्रतिमाह (एक वर्ष में दस माह के लिए) भुगतान किया जाता है। जिसमें केंद्रांश छह सौ, राज्यांश चार सौ और राज्य योजना के तहत एक हजार रुपये का भुगतान किया जाता है। राज्य की रसोइया विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलनरत रहती हैं। उनकी मांगों में न्यूनतम वेतन की मांग भी शामिल। उनका कहना है वर्तमान में सभी रसोइया को 66 रुपये 66 पैसे प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाता है। जो राज्य सरकार के न्यूनतम मजदूरी दर से काफी कम है। सभी रसोइया व संयोजिका न्यूनतम वेतन लागू करने की मांग कर रही हैं, जिससे इस महंगाई में जीवन यापन करने में मदद मिले।
संयोजिका को भी मिले मानदेय:
झारखंड में 35 हजार से अधिक विद्यालयों में लगभग 39 हजार संयोजिका कार्य करती हैं। संयोजिका के ही जिम्मे विद्यालयोंं में भोजन बनाने के लिए आने वाले सभी राशन, सब्जी, फल, खाना पकाने के लिए जलावन, गैस व बर्तन और खाने की गुणवत्ता आती है। लेकिन इन्हे इसके लिए कोई भी राशि भुगतान नहीं की जाती है। मीड डे मिल से संबंधित सारा हिसाब संयोजिका को ही रखना होता है। इनके हस्ताक्षर के बाद ही उस विद्यालय को राशि आवंटित होती है। बावजूद इसके इन्हें कोई वेतन नहीं मिलता है। साथ ही कई महीनों तक भोजन की सामग्री के लिए सराकर से पैसे आवंटित नहीं होते हैं। वैसी स्थिति में संयोजिका अपने क्रेडिड पर राशन की सामग्री लाती हैं। कई बार अपनी जेब से राशन के लिए पैसे देने पड़ते हैं।
रसोइया के तहत कार्य करने वाली महिलाओं का कहना है कि स्थायी नियमावली बनने तक 60 वर्ष की आयु सीमा समाप्त की जाए या उनके परिवार के किसी सदस्य को काम पर रखा जाए। वर्तमान में कई रसोइया को 60 वर्ष होने के पहले भी काम से निकाल दिया जाता है। उस विद्यालय में उनके बच्चों के नहीं पढ़ाने का कारण दिया जाता है। वहीं, रसोइया का कहना है कि उनके बच्चे पढ़ कर स्कूल से निकल गए हैं। काम के दौरान चोट लगने या जलने पर उचित इलाज और क्षतिपूर्ति, और मृत्यु होने पर आश्रितों को 5 लाख रुपये का नि:शुल्क बीमा दिया जाना चाहिए। साथ ही सभी रसोइया संयोजिकाओं को पेंशन योजना और पीएफ से जोड़े जाने और ग्रेच्युटी लागू करने की मांग की है। काम के दौरान जली हुई रसोइयों के इलाज का लगे खर्च की रकम को वापस करने और बिना कारण हटाई गई रसोइयों को वापस काम पर रखने की मांग की।
मकुन्दा मध्य विद्यालय इटकी की रसोईया मीना देवी को 2018 में हटाने के मामले को बताते हुए कहा कि उन्हें वापस काम पर रखा जाए और बकाया मानदेय का भुगतान किया जाए। साथ ही पूर्व में हुए झारखंड सरकार के साथ समझौते, जिनमें रसोइया के चार मांगों को मानने का लिखित आश्वासन दिया था, उन्हें पूरा करने की बात कही। उन चार मांगों में रसोइया के मानदेय में 1000 रुपये प्रति माह की वृद्धि, 10 महीने के बजाय 12 महीने का मानदेय, साल में सभी रसोइया को 2 साड़ी सेट, रसोईया के लिए स्थायी नियमावली बनाने का लिखित आश्वासन पर सहमती बनी थी। जिसे अक्तूबर 2024 से लागू करने की बात कही गई थी, लेकिन अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है।
तीन साल तक का है बकाया, हो भुगतान
रसोइयों का कहना है कि उनका मेहनाताना सरकार की ओर से कम दिया जाता है। साथ ही उनका एक से लेकर तीन साल का वेतन बकाया है। वर्तमान में उन्हें चार माह से वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। चार-पांच महीने में एक बार वेतन दिया जाता है, वो भी इतना कम होता है कि पूरे महीने का घर का राशन भी नहीं आता।
संयोजिका व रसोइया को नियमित करें
रसोइया और संयोजिकाओं ने राज्य सरकार से उन्हे निसमित करने की मांग की है। उन्होंने तमिलनाडु और कर्नाटक के तर्ज पर चतुर्थ वर्ग में उन्हें शामिल करने की मांग की है। वहीं, कुछ का कहना है कि उन्हें केरल की भांति न्यूनतम मानदेय का भुगतान किया जाए, जिससे परिवार पालने में सुविधा हो।
पांच लाख का नि:शुल्क बीमा मिले
झारखंड की रसोइयाओं का कहना है की सरकार उन्हे पांच लाख तक का नि:शुल्क बीमा योजना का लाभ दे। जिससे कोई भी हादसा होने पर वे इलाज के लिए दर-बदर ना भटकना पड़े। वही,ं सभी रसोइया संयोजिकाओं को पेंशन योजना और पीएफ योजना से जोड़े जाने और ग्रेच्यूटी लागू करने की मांग की है।
राज्य की रसोइया के जिम्मे काम अधिक, वेतन कम
झारखंड के विद्यालयों में रसोइया और संयोजिकाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये न केवल विद्यार्थियों के लिए मध्याह्न भोजन तैयार करती हैं, बल्कि विद्यालय के विकास में भी सक्रिय योगदान देती हैं। रसोईया का मुख्य कार्य विद्यार्थियों के लिए पौष्टिक और स्वादिष्ट मध्याह्न भोजन तैयार करना है। उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि भोजन प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मेनू के अनुसार हो।
स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना है, जिसमें एप्रन और टोपी पहनना अनिवार्य होता है। विद्यालय के खाद्यान्न सामग्री और बर्तनों को सुरक्षित रखना है। पाकशाला को स्वच्छ और साफ रखना है। विद्यालयों को स्वच्छ रखने में सहायता करना। विद्यार्थियों को स्वास्थ्य कार्यक्रमों, जैसे कि एनीमिया मुक्ति अभियान और कृमि मुक्ति अभियान में सहयोग करना है। पोषण वाटिका का संरक्षण, रखरखाव एवं देखभाल करना है। बच्चों को साफ-सफाई के लिए प्रेरित करना, जैसे कि भोजन से पहले और शौच के बाद हाथ धोना। पोषण क्षेत्र के बालक-बालिका की शिक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से माताओं से संपर्क कर संबंधित विद्यालय में नामांकन एवं ठहराव हेतु प्रोत्साहित करना।
जलनेे पर इलाज का खर्च नहीं
बीते कुछ सालों में राज्यभर में कई स्कूल में काम करने के दौरान रसोइया जल गई, जिनका विभाग की ओर से किसी तरह का इलाज नहीं कराया गया। सभी पीड़िता ने खुद के खर्च पर अपना इलाज करवाया। इनलोगों ने अपने इलाज के खर्च का ब्यौरा विभाग में दिया, लेकिन अब तक खर्च की राशि इन्हें भुगतान नहीं की गई। रयोइया का कहना है कि इनकी राशि का शीघ्र भुगतान किया जाना चाहिए। साथ ही इन हादसों के इलाज के लिए विभाग व्यवस्था करे। साथ अकारण राज्यभर से रसोइया और संयोजिका को हटाया जा रहा है। इन रसोइया को पुन: काम पर वापस रखा जाए।
न्यूनतम वेतन और स्थायीकरण हो
रसोइया स्थायी नियमावली जब तक नहीं बनती है, तब तक 60 साल उम्र का बाध्यता समाप्त करें अथवा उसके घर का कोई भी सदस्य को काम पर रखा जाए, ताकि उनके परिवार के जीवन सापन का साधन बचा रहे। सभी रसोइया संयोजिका को पेंशन स्कीम से जोड़वाया जाए एवं पीएफ स्किम से जोड़ा जाए।
-अनिता देवी
काम के दरम्यान चोट लगने या जल जाने पर, कोई भी क्षति होने पर रसोइया संयोजिका का समुचित इलाज कराया जाए। किसी भी अंग की क्षति होती है तो क्षतिपूर्ति हो एवं घटना में मृत्यु होने पर उसके आश्रितों को आर्थिक सहायता मिल सके, इसलिए 5 लाख का निशुल्क बीमा किया जाए। साथ ही सभी को स्थाई किया जाए।
-अजीत प्रजापति
संयोजिका को मिले मानदेय, 12 माह का हो भुगतान
झारखंड की सभी रसोइया संयोजिका को न्यूनतम वेतन दिया जाए। साथ ही स्थायी नियमावली बनने तक 60 वर्ष की आयु सीमा समाप्त की जाए, जिससे लोगों का काम प्रभावित ना हो।-नीयती हेंब्रम
तीन सितम्बर 2024 को रसोइया संघ से सरकार ने चार मांग मानने पर समझौता किया था।
जिसमें रसोइया को 1000 रुपये प्रति माह वृद्धि करने की बात कही गई थी। जिसे आज तक लागू नहीं किया गया।-जोलन बोदरा
झारखंड में संयोजिकाओं से छह घंटे से अधिक का काम लेने के बाद भी भुगतान नहीं किया जाता है। झारखंड की सभी रसोइया व संयोजिका को न्युनतम वेतन दिए जाने की पहल सरकार करे। -भारती महतो
वर्तमान में सभी रसोइया को 66 रुपये 66 पैसे प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाता है। जो राज्य सरकार की न्यूनतम मजदूरी दर से काफी कम है। सभी रसोइया को न्यूनतम वेतन मिले।-मायावती देवी
रसोइया और संयोजिकाओं को राज्य सरकार नियमित करे। तमिलनाडु और कर्नाटक के तर्ज पर चतुर्थ वर्ग में उन्हें शामिल किया जाए, जिससे उन्हें उनका हक मिले। जीवन यापन आसान हो। -दमयंती बारला
बीस साल से काम कर रही महिलाओं को मजदूरी नहीं दे रही है सरकार, दूसरी तरफ मंईयां सम्मान योजना के तहत फ्री में महिलाओं को 2500 रुपये प्रति माह सरकार दे रही है। -आशा देवी
झारखंड की रसोइया को 10 माह की जगह 12 माह का वेतन भुगतान किया जाए। साथ ही झारखंड की संयोजिका को भी रसोइया के तर्ज पर मानदेय से जोड़ा जाए, ताकि उन्हें सुविधा हो-प्रमिला देवी
दस महीने के बजाय 12 महीने का मानदेय, साल में सभी रसोइया को 2 साड़ी सेट, रसोइया के लिए स्थायी नियमावली बनाने का लिखित आश्वासन पूरा नहीं हुआ है, जिसे पूरा किया जाए। -सलगे हांसदा
मीड डे मिल से संबंधित सारा हिसाब संयोजिका को ही रखना होता है। इनके हस्ताक्षर के बाद ही उस विद्यालय को राशि आवंटित होती है। बावजूद इसके इन्हें कोई वेतन नहीं मिलता है। -सपना महतो
सरकार सभी रसोइया को पांच लाख तक का नि:शुल्क बीमा योजना का लाभ दे। जिससे
उन्हें कोई भी हादसा होने पर इलाज के लिए भटकना नही पड़े। उनकी सुरक्षा की गारंटी हो। -रजनी लुगुन
समस्याए
1. झारखंड की रसोइया को 66.66 रुपये प्रतिदिन का होता है भुगतान
2. झारखंड की रसोइया को दस माह का ही वेतन भुगतान किया जाता है
3. संयोजिकाओं से छह घंटे से अधिक का काम लेने के बाद भी भुगतान नहीं किया जाता है
4. रसोइया और संयोजिकाओं को 60 वर्ष होने पर काम से निकाल दिया जाता है
5. काम के दौरान रसोइया के जलने-कटने पर इलाज का खर्च खुद उठाना पड़ता है।
सुझाव
1. झारखंड की सभी रसोइया संयोजिका को न्यूनतम वेतन दिया जाए
2. झारखंड की रसोइया को 10 माह की जगह 12 माह का वेतन भुगतान किया जाए
3. झारखंड की संयोजिका को भी रसोइया के तर्ज पर मानदेय से जोड़ा जाए
4. स्थायी नियमावली बनने तक 60 वर्ष की आयु सीमा समाप्त की जाए
5. रसोइया को नि:शुल्क बीमा योजना से जोड़ा जाए, साथ ही इलाज का खर्च विभाग उठाए
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