प्रारंभिक स्टेज में दवाईयों से ही बचाये जा सकते है ब्लैक फंगस के मरीज: उज्ज्वल राय
न्यूरो फिजिशियन डॉ उज्ज्वल राय ने ब्लैक फंगस को लेकर जानकारी देते हुए बताया कि ब्लैक फंगस से जानकारी ही बचाव...
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रांची। संवाददाता
न्यूरो फिजिशियन डॉ उज्ज्वल राय ने ब्लैक फंगस को लेकर जानकारी देते हुए बताया कि ब्लैक फंगस से जानकारी ही बचाव है। ब्लैक फंगस म्यूकर फंगस से होने वाली बीमारी है। इसे म्यूकोरोमायकोसिस भी कहा जाता है। इसका संक्रमण सिर्फ एक त्वचा से शुरू होता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। अगर बिल्कुल प्रारंभिक स्तर पर पुष्टि हो जाती है तो एंटीफंगलइंजेक्शन और दवाइयों से मरीज को गहन शल्य चिकित्सा की प्रक्रिया से बचाया जा सकता है I
उन्होंने कहा कि शल्य चिकित्सा उपचार में सभी मृत और संक्रमित ऊतक को हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। कुछ मरीजों में ऊपरी जबड़े या कभी-कभी आंख निकालना पड़ जाता है। इलाज में एंटी-फंगल थेरेपी का चार से छह सप्ताह का कोर्स भी शामिल हो सकता है। चूंकि यह शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है, इसलिए इसके उपचार के लिए फीजिशियन के अलावा न्यूरोलॉजिस्ट, ईएनटी विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, दंत चिकित्सक, न्यूरोसर्जन की आवश्यकता हो सकती है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी को प्रारंभिक अवस्था में पकड़ना अत्यंत आवश्यक है अथवा गहन शल्य चिकित्सा के बाद भी मरीज को बचाना अत्यंत मुश्किल होता है। डॉक्टर उज्जवल राय ने बताया कि गत सप्ताह रांची के ही दो मरीजों में प्रारम्भिक स्तर पर बीमारी की पुष्टि के बाद सिर्फ इंजेक्शन से ही ठीक किया गया है।
लक्षण को कैसे पहचानें
ब्लैक फंगस के मरीजों में सिरदर्द, नाक जाम होना, नाक से काला या लाल स्राव होना, गाल की हड्डी में दर्द होना, चेहरे पर एक तरफ दर्द होना या सूजन होना सामान्य है। दांत या जबड़े में दर्द, दांत टूटना, धुंधला या दोहरा दिखाई देना, सीने में दर्द और सांस में परेशानी प्रमुख लक्षण हैं, ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
प्रीमेच्योर बच्चे भी हो सकते हैं ब्लैक फंगस के शिकार
वैसे लोग जिन्हें शुगर है, जिनका इम्युनिटी कमजोर होता है, जिन्हें कैंसर है, जिनका ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो, जो लंबे समय से स्टेरॉयड ले रहे हों, जिन्हें कोई स्किन इंजरी है, ऐसे लोगों को ब्लैक फंगस होने का खतरा अधिक है। डॉ उज्ज्वल ने बताया कि ये प्रिमेच्योर बेबी को भी हो सकता है। जिन लोगों को कोरोना हो रहा है, उनका भी इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। अगर किसी हाई डायबिटिक मरीज को कोरोना हो जाता है तो उसका इम्यून सिस्टम और ज्यादा कमजोर हो जाता है। ऐसे लोगों में ब्लैक फंगस इंफेक्शन फैलने की आशंका और ज्यादा हो जाती है।
कोरोना से ठीक हुए लोग ब्लड ग्लूकोज का रखें ख्याल
कोरोना से ठीक हुए मरीजों को ब्लैक फंगस से बचने के लिए खून में शुगर की मात्रा ज्यादा नहीं होने देना चाहिए और हाइपरग्लाइसेमिया से बचना चाहिए। डॉक्टर उज्ज्वल ने बताया कि कोरोना से ठीक हुए लोग ब्लड ग्लूकोज पर नजर रखें। स्टेरॉयड के इस्तेमाल में समय और डोज का पूरा ध्यान रखें। एंटीबायोटिक और एंटीफंगल दवाओं का इस्तेमाल डॉक्टर के परामर्श से ही करें। निर्माणाधीन कार्य स्थल और धूल वाले इलाके में जाने से बचना चाहिए। साथ ही बेवजह घर से बाहर निकलने से बचें। जरूरी काम होने पर मास्क और चश्मा लगाकर ही बाहर निकलें।
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