डीएसपीएमयू में रामकथा की वैश्विकता पर व्याख्यान
रांची में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा 'रामकथा की वैश्विकता' विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता प्रो अभिराज मिश्र ने रामायण को भारतीय सभ्यता और इतिहास की...

रांची, विशेष संवददाता। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू) के संस्कृत विभाग की ओर से शनिवार को- रामकथा की वैश्विकता, विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रो अभिराज राजेंद्र मिश्र उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि रामायण मात्र धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता और इतिहास की अमूल्य धरोहर है। इसमें वर्णित घटनाएं, स्थलों का विवरण और जीवन मूल्यों का चित्रण प्राचीन भारतीय समाज की सांस्कृतिक और राजनीतिक संरचना का परिचायक है। कार्यक्रम में राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, रांची के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ शैलेश कुमार मिश्र, डीएसपीएमयू के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने भी अपने विचार साझा किए। संचालन डॉ जगदंबा प्रसाद व शुभ्रांशु मिश्र ने किया।
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प्रो अभिराज ने कहा कि रामकथा की व्याप्ति अत्यंत विस्तृत और बहुआयामी है। यह सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि संपूर्ण दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में फैल गई। भारत में संस्कृत में वाल्मीकि रामायण से लेकर अवधी में तुलसीदास रचित रामचरितमानस तक अनेक भाषाओं और लोककथाओं में रामकथा की विभिन्न छवियां देखने को मिलती हैं। थाईलैंड का रामकियेन, इंडोनेशिया का काकाविन रामायण, कंबोडिया का रीमकेर और नेपाल का भानुभक्त रामायण, इसकी अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता के प्रमाण हैं।
प्रो मिश्र ने कहा कि नाट्य, नृत्य, चित्रकला, त्योहारों और लोकजीवन में रामकथा का गहरा प्रभाव है। भगवान राम भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष हैं, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। उन्होंने समृद्ध भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध पक्षों पर भी पबात की। कहा कि हमें भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव भाव रखना होगा और वेदों में निहित ज्ञान के तत्वों को सामने लाना होगा।
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