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बोले रांची: हमारी सुनिए! अर्थ और तंत्र के बिना युवा-स्टार्टअप का ब्रेन ड्रेन

झारखंड में स्टार्टअप्स को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि निवेशकों की कमी, बैंकों से फंडिंग में कठिनाई, और स्टार्टअप के प्रति जागरूकता का अभाव। इसके बावजूद, राज्य सरकार ने नई स्टार्टअप...

Newswrap हिन्दुस्तान, रांचीSat, 1 March 2025 05:03 PM
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बोले रांची: हमारी सुनिए! अर्थ और तंत्र के बिना युवा-स्टार्टअप का ब्रेन ड्रेन

रांची, संवाददाता। झारखंड में स्टार्टअप को लेकर राज्य सरकार की ठोस पहल नहीं होने के चलते यहां के स्टार्टअप या तो बंद हो रहे हैं या उसके फाउंडर दूसरे राज्यों में जाकर वहां अपनी काबिलियत दिखा रहे हैं। झारखंड में शिक्षा, स्वास्थ्य, एग्रीकल्चर, एआई, ऑटोमोबिल जैसे क्षेत्रों में एक हजार से ज्यादा स्टार्टअप काम कर रहे हैं। इनमें भी 107 को राज्य सरकार से मान्यता मिली थी, लेकिन पैसों के आभाव में इनमें से ज्यादातर बंद हो गए हैं। कई युवा अपनी जिद और खुद के पैसों से अपने आइडिया को धरातल पर उतारने का जद्दोजहद में जुटे हुए हैं। अच्छी बात यह है कि इनसे करीब 5000 को रोजगार मिल रहा है। राज्य की स्टार्टअप पॉलिसी-2023 के लागू होने के बाद भी करीब 34 स्टार्टअप ने खुद को पंजीकृत किया है। सरकार से अब ये सभी सहयोग की अपेक्षा कर रहे हैं, ताकि स्टार्टअप को नई ऊंचाई दे सकें।

प्राकृतिक संपदा और खनिज संसाधनों से भरे झारखंड के युवा स्टार्टअप के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। राज्य में प्रतिभाशाली युवाओं की एक बड़ी फौज है, जो नवाचार और उद्यमिता से राज्य के विकास में योगदान देने के लिए उत्सुक है। लेकिन यहां स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र अभी भी विकास के प्रारंभिक चरण में है और इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अर्थ (पैसे) और तंत्र (सिस्टम) के बिना स्टार्टअप का ब्रेन ड्रेन (पलायन) हो रहा है। प्रदेश के इंटरप्रेन्योर बोले, झारखंड में पहले भी स्टार्टअप नीतियों को लागू किया गया है, लेकिन वे पूरी तरह सफल नहीं हो पाईं। इसका मुख्य कारण वित्तीय सहायता की कमी और प्रशासनिक समस्याएं थीं। यहां स्टार्टअप में निवेश करने वालों की संख्या सीमित है।

झारखंड सरकार ने हाल ही में एक नई स्टार्टअप नीति-2023 को मंजूरी दी है। इस नीति का उद्देश्य राज्य में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना और साल 2028 तक 1000 स्टार्टअप विकसित करना है। पिछली असफल नीतियों के कारण उद्यमियों में सरकार के प्रति विश्वास की कमी है। झारखंड के इंटरप्रेन्योर का कहना है की राज्य में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बनाने के लिए एक समुदाय के रूप में कई योगदान किए जा सकते हैं। इनमें स्थानीय निवेशकों को प्रोत्साहित करना और राज्य-स्तरीय वेंचर फंड स्थापित करना, इनक्यूबेटर्स, एक्सेलेरेटर्स और नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना, व्यापार पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन), टैक्स बेनिफिट्स और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना। विश्वविद्यालयों में स्टार्टअप-केंद्रित पाठ्यक्रम शुरू करना और उद्योग और अकादमिक साझेदारी को मजबूत करना, डिजिटल कनेक्टिविटी का विस्तार करना और टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्टार्टअप हब स्थापित करना, स्टार्टअप फोरम बनाकर सामूहिक रूप से चुनौतियों का समाधान करना, तकनीकी संस्थानों के साथ सहयोग बढ़ाना शामिल है। साथ ही विश्वविद्यालय में इनक्यूबेशन सेंटर्स की स्थापना ताकि स्टार्टअप्स को शुरुआती दौर की सभी सुविधाएं मिल सकें। फंडिंग और निवेश के अवसरों की कमी: झारखंड में वेंचर कैपिटलिस्ट और एंजेल इन्वेस्टर्स की सीमित उपलब्धता है, जिससे स्टार्टअप्स को पूंजी जुटाने में कठिनाई होती है।बैंक और वित्तीय संस्थान शुरुआती स्टार्टअप्स को लोन देने में हिचकिचाते हैं, क्योंकि उनके पास पर्याप्त गिरवी रखने के लिए काईसंसाधन नहीं होते हैं, साथ ही क्रेडिट इतिहास नहीं होता है। सरकारी फंडिंग योजनाओं तक पहुंच में नौकरशाही बाधाएं हैं, जिससे स्टार्टअप्स को समय पर वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती है।

अपर्याप्त बुनियादी ढांचा

सह-कार्यशील स्थानों और स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स की सीमित संख्या है, जिससे स्टार्टअप्स को एक साथ काम करने और संसाधनों को साझा करने का अवसर नहीं मिल पाता है। रांची और जमशेदपुर जैसे शहरों में ऑफिस स्पेस की अधिक लागत है, जिससे स्टार्टअप्स को अपने व्यवसाय को स्थापित करने में कठिनाई होती है। राज्य में इनक्यूबेशन सेंटर के कमी है, जिससेें यहां के स्टार्टअप को व्यावहारिक शिक्षण अनुभव नहीं मिला है। सफल व्यवसाय शुरू करने और चलाने की चुनौतियों के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं। छोटा ग्राहक होने के कारण स्टार्टअप्स को विस्तार में कठिनाई होती है। स्थापित उद्योगों और व्यवसायों से सहयोग की कमी है, जिससे स्टार्टअप्स को अपने उत्पादों और सेवाओं को बेचने में कठिनाई होती है। सरकारी ठेके (टेंडर) प्राप्त करने में कठिनाई होती है, जिससे स्टार्टअप्स को सरकारी परियोजनाओं में भाग लेने में कठिनाई होती है। साथ ही यहां पर स्टार्टअप्स के प्रति जानकारी नहीं होने के कारण भी परेशानी होती है। लोगों को इसके प्रति जागरूक करना होगा।

स्टार्टअप के प्रति जागरुकता का अभाव

कई संभावित उद्यमियों को सरकारी योजनाओं और स्टार्टअप समर्थन कार्यक्रमों की जानकारी नहीं होती है। इससे वे इन कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा पाते हैं। युवा वर्ग की जोखिम से बचने वाली मानसिकता है। इससे वे पारंपरिक नौकरियों को प्राथमिकता देते हैं और स्टार्टअप शुरू करने से हिचकिचाते हैं।

सफल उद्यमियों और निवेशकों के साथ नेटवर्किंग के अवसरों की सीमितता है। राज्य के लोगों को स्टार्टअप के बारे में जानकारी नहीं होती है, जिससे वो इससे कनेक्ट नहीं करते हैं।

इकोसिस्टम का कमजोर समर्थन

इनक्यूबेटर्स, एक्सेलेरेटर्स और मेंटोरशिप प्रोग्राम की कमी है, जिससे स्टार्टअप्स को मार्गदर्शन और सहायता नहीं मिल पाती है। शिक्षण संस्थानों, उद्योगों और सरकार के बीच सीमित सहयोग है, जिससे स्टार्टअप्स को आवश्यक संसाधन और समर्थन नहीं मिल पाता है। सामूहिक रूप से चुनौतियों को हल करने के लिए मजबूत स्टार्टअप फोरम का अभाव है, जिससे स्टार्टअप्स को एक साथ आकर अपनी समस्याओं का समाधान करने का अवसर नहीं मिल पाता है।

प्रौद्योगिकी और नवाचार में सीमित पहुंच

झारखंड में स्टार्टअप्स तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) में पिछड़ जाते हैं, जिससे वे नए उत्पादों और सेवाओं को विकसित करने में कठिनाई का सामना करते हैं। तकनीकी संस्थानों के साथ सहयोग की सीमित संभावनाएं हैं, जिससे स्टार्टअप्स को नवीनतम तकनीकों तक पहुंच नहीं मिल पाती है। उन्नत तकनीकी समाधानों के लिए अन्य राज्यों पर निर्भरता है, जिससे स्टार्टअप्स को अपनी लागत को कम करने और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में कठिनाई होती है।

स्टार्टअप को लेकर कुशल कार्यबल की राज्य में कमी, जागरुकता भी बड़ा कारण

झारखंड के विश्वविद्यालयों के स्नातकों में व्यावसायिक कौशल की काफी कमी है। इससे स्टार्टअप को प्रतिभाशाली कर्मचारियों का पता लगाने में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बेहतर अवसरों के लिए कुशल पेशेवरों का मेट्रो शहरों की ओर पलायन होता है। ऐसे में स्टार्टअप को अपने व्यवसाय को चलाने के लिए आवश्यक प्रतिभा नहीं मिल पाती है। स्टार्टअप संस्थापकों के सामने परामर्श और व्यावसायिक प्रशिक्षण की भी कमी है, जिससे उन्हें अपने व्यवसाय को चलाने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल नहीं मिल पाता है। यहां के लोगों में स्टार्टअप को लेकर जागरुकता की भी कमी है।

समस्याए

1. झारखंड में इन्वेस्टर्स की सीमित उपलब्धता, बैंकों से फंडिंग मिलने में परेशानी

2. सह-कार्यशील स्थानों और स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स की सीमित संख्या

3. जागरुकता और उद्यमशीलता संस्कृति का अभाव, स्टार्टअप के कार्यक्रमों की जानकारी नहीं

4. झारखंड में स्टार्टअप तकनीकी संसाधनों की कमी, अनुसंधान और विकास में भी पीछे

5. राज्य सरकार और संस्थाओं का कम सहयोग, मेंटरशिप, फंडिंग में भी समस्याएं

सुझाव

1. निवेशकों को प्रोत्साहित करना और राज्य-स्तरीय वेंचर फंड स्थापित किया जाए

2. विश्वविद्यालय में इनक्यूबेशन सेंटर्स की स्थापना, कार्यशील स्थानों को बढ़ावा देना जरूरी

3. डिजिटल कनेक्टिविटी का विस्तार करना और राज्य में स्टार्टअप हब स्थापित करना

4. स्टार्टअप फोरम बनाकर सामूहिक रूप से चुनौतियों का समाधान निकालना

5. रजिस्ट्रेशन, टैक्स बेनिफिट्स और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना

:: रखी अपनी बात ::

झारखंड में स्टार्टअप के लिए कई चुनौतियां हैं। इनमें वेंचर कैपिटलिस्ट और एंजेल इन्वेस्टर्स की सीमित उपलब्धता। बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ओर से शुरुआती स्टार्टअप को फंडिंग नहीं देना, ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, कंपनी रजिस्ट्रेशन, जीएसटी, और टैक्स फाइलिंग की जटिल प्रक्रियाएं शमिल हैं।

-रथिन भद्रा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन स्टार्टअप एसोसिएशन

झारखंड सरकार और विभिन्न संस्थाएं स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास कर रही हैं। सरकार ने कई स्टार्टअप-अनुकूल नीतियां और योजनाएं शुरू की हैं। लेकिन ये सब अभी भी बहुत सीमित हैं। इसके लिए झारखंड सरकार का पूरा समर्थन और सहयोग बहुत आवश्यक है।

-रवि रंजन सिंह, राष्ट्रीय सचिव, इंडियन स्टार्टअप एसोसिएशन

झारखंड स्टार्टअप इकोसिस्टम शुरुआती दौर में है, पर बहुत से फॉउंडर्स, मीडिया द्वारा हो रही पहल से धीरे धीरे हमारा राज्य भी स्टार्टअप फ्रैंडली दिशा में बढ़ रहा है।

-देवेश्वर दयाल

स्टार्टअप इकोसिस्टम के विकास में कई कारक मदद करते हैं। हमें विवि-उद्योग सहयोग और सार्वजनिक-निजी भागीदारी से नवाचार स्वागत करना चाहिए।

-खुशबू सोनी

झारखंड में स्टार्टअप इकोसिस्टम का कमजोर समर्थन है और यहां इनक्यूबेटर्स, एक्सेलेरेटर्स और मेंटोरशिप प्रोग्राम की कमी है। विचार साझा करने को प्लेटफार्म हो।

-सौरभ कुमार

यहां स्टार्टअप के लिए काम्युनिटी नहीं है। स्टार्टअप को यहां निवेशक नहीं मिलते हैं। लोगों को इस बारे में जानकारी ही नहीं है। यहां इको सिस्टम विकसित करना होगा।

-अच्युत किशोर

सरकार से स्टार्टअप को मदद नहीं मिलती है। यहां वेंचर कैपिटलिस्ट और एंजेल निवेशक की सीमित उपलब्धता है। बैंक की ओर से भी लोन नहीं दिया जाता है।

-प्रभात शंकर

झारखंड में स्टार्टअप के तहत पंजियन होने वाली पहली कंपनी थी। सरकार की ओर से रचनात्मकता और नवाचार के लिए सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना आवश्यक है।

-अखौरी आनंद कुमार

स्टार्टअप फोरम बनाकर चुनौतियों का समाधान करना चाहिए। स्टार्टअप्स के लिए इको सिस्टम डेवलप करना जरूरी है। परेशानियों को शेयर करने की जगह नहीं है।

-माणिक कुमार

स्टार्टअप से राज्य में 10 हजार को रोजगार मिला है। जब लोग स्टार्टअप के लिए सोचते हैं तो उन्हे पूरी तरह से तैयार रहना चाहिस की कोई सुविधा किसी से नहीं मिलेगी।

-विकास मिश्रा

जिन स्टार्टअप ने पैसे कमाने शुरू कर दिए हैं, बैंक भी उन्हें ही लोन देते हैं। कागजों पर बिना गारंटी के लोन मिलने की बात होती है, पर जमीनी हकीकत कुछ और है।

-हर्ष कुमार शर्मा

आइडिया स्टेज स्टार्टअप के लिए फंडिंग-मेंटरशिप की कमी है। रिस्क लेने वाला इकोसिस्टम नहीं है। इनोवेशन होने के साथ फाइनेंशियल सपोर्ट भी नहीं मिलता।

-सत्यम कुमार

स्टार्टअप में सरकारी मदद जरूरी है। इंटरप्रेन्योर समाज के पेरशानी के समाधान के लिए नए इनोवेशन करते हैं। मेंटरशिप की जरूरत होने पर सरकार को आगे आना चाहिए।

-शुभम साव

स्टार्टअप को बेहतर बनाने के लिए स्थानीय निवेशकों को प्रोत्साहित करना और राज्य-स्तरीय वेंचर फंड स्थापित करना जरूरी है। एक्सेलेरेटर्स को बढ़ावा देना चाहिए।

-ऋतुराज

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