बोले रामगढ़ : संकट: काम और पूंजी के अभाव में पुश्तैनी काम छोड़ रहे मल्लहार
गोला प्रखंड के बंदा, रेहवा टांड़ में मल्लहार समाज के लोग आबाद हैं। करीब सवा सौ वर्ष से यहां बसे मल्लहारों के 40 परिवारों में कुल 450 सदस्य हैं। ये खि
गोला । गुमनामी की जिन्दगी बसर कर रहे मल्लहार समाज के लोग मिट्टी के खूबसूरत खिलौने गढ़ने में काफी माहिर होते हैं। माप तौल का सेर, पैला, धुपदानी, विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां, हाथी, शेर, झांझरा, चटुवा, मछली व अन्य खूबसूरत और आकर्षक खिलौने यहां गढ़े जाते हैं। स्थानीय बाजारटांड़ की जमीन पर घास फुस की झोपड़ियों में रहने वाले इस जाति के लोग हस्तकला के कुशल कारीगर हैं। बाजारों में जहां प्लास्टिक से निर्मित खिलौने मजबूती से अपना पांव जमा चुका है। इसके बाद भी यहां के खिलौनों का कोई जवाब नहीं। स्थानीय बाजार और पड़ोसी राज्य बिहार व पश्चिम बंगाल में यहां के खिलौनों की काफी डिमांड है। लेकिन संसाधनों की कमी के कारण मांग के अनुरूप खिलौनों की आपूर्ति नहीं कर पाते हैं। यहां के राजन मल्हार, भोला मल्लहार, जुबलाल मल्हार, संतोष मल्लहार, मनोज मल्लहार, लोधा मल्लहार, सुरेंद्र मल्हार, गुड्डू मल्लहार आदि ने बताया कि सरकारी मदद से यहां के लोगों का जीवन खुशहाल हो सकता है। जिला प्रशासन की ओर से अगर मल्लहारों को प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए तो सभी कुशल कारीगर बन सकते हैं। उनका व्यवसाय व्यवस्थित हो जाएगा और आमदनी में वृद्धि होगी। लेकिन इनकी दशा पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अक्सर ऐसा देखने को मिला की बाजारटांड़ में जब-जब अतिक्रमण हटाओ अभियान चला तो उनकी दुकान व मकान उजाड़ दी जाती है। कभी यहां कभी वहां बैठकर अपना व्यवसाय करते हैं। इनके बच्चों का कोई भविष्य नहीं है। इनके बच्चे फटे पुराने व मैले कपड़ों में इधर उधर भटकते रहते हैं। होश संभालने के बाद माता पिता के काम में हाथ बंटाते हैं। जागरुकता के अभाव में यहां के बच्चे शिक्षा से काफी दूर हैं। इन विकट परिस्थतियों से जूझते हुए कुछ बच्चों ने स्कूल जाना शुरू किया। उनकी शिक्षा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सौ साल से अधिक दिनों से आबाद यहां के मल्लहारों के सिर्फ दो बच्चे अब तक मैट्रिक पास हुए हैं। इस टोले की एक बच्ची 10वीं में पढ़ रही है। मल्लहारों ने बताया कि रोजगार नहीं करेंगे तो खुद व परिवार का पेट पालना मुश्किल हो जाएगा। टोले की मीना देवी ने कहा कि कई पुश्त गुजर गए हम सब खिलौना व देवी देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं और इसे बाजार में बेचते हैं। लेकिन प्लास्टिक के सस्ते खिलौने आने से हमारे बनाए खिलौनों के खरीदार अब बहुत कम होते जा रहे हैं। आर्थिक सहयोग के लिए प्रशासनिक दफ्तरों में कई बार चक्कर लगाए, लेकिन किसी ने हमारी सहायता नहीं की। प्रस्तुति: मोबिन
काम की तलाश में प्रदेश जाने को मजबूर
गोला । बंदा बाजार टांड़ व रेहवा टांड़ में बसे मल्लहारों को रोजगार की कमी है। सरकारी योजनाओं का यहां के लोगों को समुचित लाभ नहीं मिल पाता। रोजगार के नाम पर जिला प्रशासन व वार्ड के जनप्रतिनिधियों ने भी ठेंगा दिखा रखा है। इस कारण पूरी बस्ती ही कूड़े चुनने का काम करती है। वहीं जो उसमें सक्षम नहीं है वे भीख मांग के काम चला रहे हैं। वहीं युवक इधर-उधर ईंट भट्ठों में मजदूरी कर अपना भरण-पोषण व परिवार को पाल रहे हैं। रोजगार की तलाश में दूसरे राज्य पलायन कर रहे हैं।
मल्लहारों को हर मौसम में प्रकृति का कहर का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे झोपड़ियों में जीवन बसर कर रहे हैं मल्लहार समाज के लोग सरकारी योजनाओं से आज भी महरूम है। 12 मल्लहारों को भूमिदान के तहत भूमि दी गई है। कुछ मल्लहारों का ही नाम बीपीएल सूची में दर्ज है। यहां पर आबाद मल्लहार पेयजल, सफाई और शौचालय की सुविधा से वंचित हैं। यहां के लोगों को मकान के बाद रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। रोजगार की कमी से यहां के युवा का भविष्य अंधकारमय हो गया हैं। युवाओं का कहना है कि न हमें मकान मिलता है न ही रोजगार मिल पाता है।
खिलौना बिक्री कम होने से आमदनी घटी
ग्यारह दशक से खिलौने बनाने वाले मल्लहारों की आर्थिक स्थिति अब तक नहीं बदली है। पुराने तकनीक से निर्मित खिलौनों की बिक्री भी अपेक्षाकृत कम हो गई। इससे उनकी आमदनी कम हो रही है। ऐसे में अपने साथ परिवार का गुजारा करने में परेशानी हो रही है। जानकारी के अभाव में सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं उठा पा रहे हैं। गिनती के चंद लोग ही सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा पाते हैं।
व्यवसाय और आवास दोनों के लिए जगह नहीं
मल्लहार टोला में व्यवसाय करने की जगह व आवास दोनों की समस्या है। कहीं एक इंच अपनी जमीन नहीं है, जहां शांति से व्यवसाय कर जीवन बसर की जा सके। अपने बनाए खिलौनों को बोरी व झोला में भर कर इधर-उधर भटकते रहते हैं। कभी-कभी सड़क किनारे जहां जगह मिल जाए वहीं बैठ अपना सामान बेचते नजर आते हैं। ज्यादातर गांव-गांव में घूम घूमकर मल्लहार अपने उत्पाद को बेचते हैं। दूसरी ओर अधिकतर लोगों का घर भी अपनी जमीन में नहीं है।
पानी और शौचालय की है भारी कमी
मल्लहार टोला में लगभग 450 महिला पुरुष आबाद हैं। लेकिन यहां जन सुविधाएं नदारद है। नहाने धोने की बात तो दूर लोगों को उन्हें शुद्ध पेयजल भी नहीं मिलती। बस्ती में केवल एक ही चापानल लगाया गया है, जो महीनों से खराब है। इस एक नल के भरोसे सैकड़ों लोग है। नहाने व पीने के पानी के लिए उन्हें काफी इंतजार करना पड़ता है। वैसे भी गर्मियों में चापानल का पानी सूख जाता है। तब उन्हें दूर से पानी लाना पड़ता है। शौचालय की व्यवस्था नहीं रहने से सभी खुले में शौच के लिए विवश हैं।
इनकी भी सुनिए
खिलौने बनाने की नई तकनीक के अलावा चालक की ट्रेनिंग देने का अभियान चलाया जाएगा। मल्लहार जाति से जुड़े ज्यादा युवाओं को इसमें शामिल किया जाएगा। युवाओं को ट्रेनिंग के बाद प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा। अगर अपनी जमीन नहीं है तो सीओ से संपर्क करे। भूमिदान का लाभ दिलाने का प्रयास किया जाएगा। -वेद प्रकाश, प्रभारी बीडब्ल्यूओ।
यहां के मल्लहारों की परेशानी से हर कोई वाकिफ है। यहां के लोगों को सबसे ज्यादा पानी, शौचालय व मकान की जरूरत है। जागरुकता के अभाव में यहां के लोगों को सरकारी सुविधा नहीं मिल पा रही है। नेताओं के लगातार आश्वासन के बाद भी यहां की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। -अरशद अंसारी, समाजसेवी
मल्लहारों की पीड़ा
मल्लहारों की पीड़ा
दूसरे के ईंट भट्ठे पर मजदूरी करते हैं। यहां उचित मजदूरी नहीं मिलती है। जमीन नहीं है और न पैसे हैं कि अपनी दुकान खोल सके। मजबूरी में मजदूरी करना पड़ता है। -राजन मल्हार
जिला प्रशासन को मल्लहार जाति के उत्थान के लिए पहल करना चाहिए। चौक बाजार में सभी के नाम से दुकान अलॉट हो, ताकि सभी बैठकर अपना व्यवसाय कर सके। सुरेश मल्हार
जब से होश संभाले हैं, खुद खिलौना बना रहे हैं। इतनी कमाई नहीं होती कि अपने परिवार का पालन-पोषण सही ढंग से कर सके। परिवार को काफी परेशानी होती है।
-जुगला मल्हार
जिले के हर चौक चौराहों पर मल्लहार अपना खिलौने बेचते हैं। ग्रामीण बाजारों में भी अपना व्यवसाय करने के लिए स्थान सुनिश्चित होना जरूरी है, ताकि उनकी स्थिति में सुधार हो।-गोविंद मल्हार
केंद्र सरकार की पीएम आवास योजना के तहत लाभ लेने के लिए कई बार प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगाए, लेकिन लाभ नहीं मिला। निराशा ही हाथ लगी।
-सुदामा मल्हार
गोला डेली मार्केट में खिलौने की दुकान लगाने पर कुछ लोग परेशान करते हैं। दुकान लगाने के लिए पैसे की मांग करते हैं और मारपीट की धमकी देते हैं।
-राजू मल्हार
अपना मकान तो दूर की बात अपनी भूमि भी नहीं है। प्रशासन की ओर से भूमि उपलब्ध कराने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है। इससे हमें परेशानी होती है।-हरि मल्हार
मल्लहार टोला में आज तक किसी तरह का जागरुकता अभियान नहीं चलाया गया है। इसके कारण योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। कुछ लोगों को योजनाओं के बारे में पता है।-गोलमा मल्हार
मल्लहार टोला में जिला प्रशासन की ओर से जागरुकता अभियान नहीं चलाया जाता है। आर्थिक तंगी दूर करने के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही है, हमें पता नहीं है।-रमेश मल्हार
हमारे बच्चे खुद के बनाए खिलौने को बेचने का व्यवसाय करना चाह रहे हैं। आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है कि खुद का अपना व्यवसाय खड़ा किया जा सके।
—बाले मल्हार
परिवार का पेट भरने के उपाय में सारा दिन बीत जाता है। योजनाओं का लाभ लेने के लिए कई बार प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगाए, लेकिन कोई ठीक से जानकारी भी नहीं देता।-मालती देवी
मल्लहार टोले में रहने वाले सभी लोगों को परिवार का खर्च वहन करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सरकार को हमारे बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए कुछ करना चाहिए। -कार्तिक मल्हार
समस्याएं और सुझाव
1. सरकारी योजना से वंचित हैं मल्लहार समाज के लोग।
2. समाज के लोगों के लिए रोजगार की नहीं है साधन।
3. स्वच्छ पेयजल और शौचालय की नहीं है व्यवस्था।
4. खिलौने और मूर्तियां बनाने के लिए नहीं है कोई मशीन ।
5. शिक्षा की नहीं है कोई व्यवस्था, अब तक सिर्फ दो बच्चे ही हुए मैट्रिक पास।
1. सभी मल्लहार परिवारों आवास योजनाओं का लाभ मिले।
2. मल्लहारों को प्रशिक्षण देकर नई तकनीक की जानकारी दी जाए।
3. महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की पहल की जाए।
4. पेयजल, शौचालय व सफाई की व्यवस्था की जाए।
5. सरकारी की जन कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी और लाभ मिले।
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