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लॉकडाउन: उड़ीसा से साइकिल से गोला पहुंचे दर्जन भर मजदूर

--कर्ज़ लेकर मजदूरों ने साइकिल खरीदा और भूखे प्यासे पहुंचे घरकोरोना वायरस के कारण देश भर में लॉकडाउन लागू होने के बाद सबसे अधिक प्रवासी मजदूरों से जुड़ी दर्दभरी कहानी देखने को सुनने मिला। यह सिलसिला...

Newswrap हिन्दुस्तान, रामगढ़Wed, 27 May 2020 02:18 AM
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कोरोना वायरस के कारण देश भर में लॉकडाउन लागू होने के बाद सबसे अधिक प्रवासी मजदूरों से जुड़ी दर्दभरी कहानी देखने को सुनने मिला। यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसी ही एक दुखभरी कहानी मंगलवार को गोला के केन्के गांव में देखने को मिला। गोला सहित साड़म, सेरंगातु, उपरबरगा, बरवाटांड़, बुटगोड़वा, संबलपुर, कुजू कलां, तोयर, हेमतपुर, रम्हारु, हिसिमदाग, कमता, जयंतिबेड़ा, सुथरपुर आदि गांवों के लगभग पांच दर्जन प्रवासी मजदूर मुसीबतों को झेलते हुए विभिन्न माध्यमों से गांव पहुंचे। इनमें केन्के गांव के दर्जन भर मजदूर उड़ीसा के तालचर नामक स्थान से 487 किलो मीटर के लंबे सफर को महज चार दिन में पूरा किया। भूखे प्यासे घर पहुंचे मजदूरों की हालत काफी बदतर थी। रास्ते की दुश्वारियों को बयां करते हुए मजदूरों के आखों में आंसू आ गए। --------कठिन परिस्थिति का मजदूरों ने किया सामना-----मजदूरों ने बताया कि अचानक लॉकडाउन लागू हो जाने के बाद वहां का सारा कारोबार बंद हो गया। जिस कंपनी में वे सब काम करते थे, उसके मालिक ने कुछ दिनों तक खाना खिलाया। बाद में खाना देने से मना कर दिया। अनजान शहर में जब तक मजदूरों के पास पैसा रहा, खाने पीने को मोहताज नही थे। लेकिन पैसे खत्म होने के बाद उनके सामने भुखमरी समस्या आ गई। मजदूरों को जब भूख सताने लगा तो कई ने अपने घर से पैसे मंगाए और कई ने कंपनी के प्रबंधक से कर्ज लेकर साइकिल खरीदी और घर के लिए निकल गए।-----भूखे प्यासे दिन रात साइकिल चलाई-----उड़ीसा से चलने के बाद मजदूर रात दिन साइकिल चलाते हुए, रास्ते में जो भी मिल जाता खा लेते। अक्सर बिना खाए ही मजदूर चलते रहे और चार दिन के सफर के बाद बीती रात गांव पहुंच गए। घर वालों ने उन्हें पहले भरपेट खाना खिलाया और अहले सुबह सबों को सीएचसी जांच के लिए भेज दिया गया। यहां जांच के बाद मजदूरों को हुप्पु स्थित कोरंटाइन सेंटर में भेज दिया गया। इस अविश्वसनीय यात्रा के दौरान एक मजदूर को लू लग गई। जिससे वह कई घंटे बेहोश रहा। अपने सहयोगियों की मदद से वह जल्द ठीक हो गया। सफर का अनुभव मजदूरों के लिए इतना कड़वा था कि उन्होंने जीवन भर मजदूरी के लिए बाहर नहीं जाने का संकल्प लिया।-

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