बोले रामगढ़ : भय और कर्ज से परेशान किसान को है विभाग से राहत की उम्मीद
गोला प्रखंड के 60 गांवों में पिछले दो दशक से हाथियों का आतंक जारी है। हाथी न केवल किसानों के खेत में लगी फसल को रौंदकर बर्बाद कर दे रहे हैं, बल्कि उन
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गोला, मोबिन अख्तर । जंगली हाथियों के कारण गोला प्रखंड क्षेत्र के सैकड़ों किसान खेती-बारी छोड़ने को विवश हो गए हैं। इसमें हेसापोड़, रकुवा, सुतरी, उपरबरगा, चोकाद, बेटुलकलां, सरगडीह, पुरबडीह, साड़म, हुप्पू, बंदा पंचायत क्षेत्र के लगभग 60 गांव के किसान शामिल हैं। यहां के किसान इन दिनों हाथियों के भय के साए में जीने को मजबूर हैं। जंगली हाथियों का झुंड अक्सर रात के वक्त आबादी वाले इलाके में घूस कर खेतों में लगी फसलों को बर्बाद कर सुबह के समय जंगल की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। इसके कारण प्रभावित गांव के लोग रात होते ही भय के माहौल में जीने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं हाथी गांव में भी घुसकर घरों को ध्वस्त कर अनाज चट कर जाते हैं।
हाथियों के झुंड को भगाने को लेकर लोगों ने कई बार आंदोलन किया, लेकिन आज तक इस दिशा में न सरकार और न ही वन विभाग की ओर से कोई ठोस पहल की जा रही है। वन विभाग हाथी भगाओ दल के जरिए हाथियों को अपने वन क्षेत्र से खदेड़ कर सीमा क्षेत्र से बाहर कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। यहीं काम दूसरे वन क्षेत्र के लोग करते हैं। विभागीय स्तर से हो रहे इस खेल से यहां के किसान पिस रहे हैं। ऐसे में किसान खुद को बेबस व लाचार महसूस कर रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि दो वर्ष पूर्व हाथियों के झुंड ने हाथी भगाओ दल पर ही हमला कर दिया था। इससे कई सदस्य घायल और कुछ सदस्य बाल-बाल बच गए थे।
मुखिया जीतलाल टुडू ने बताया कि एक सप्ताह पूर्व वे अपने टमाटर के खेत की रखवाली कर रहे थे। इसी बीच अचानक हाथी वहां पहुंच गया और फसल को खाना शुरू कर दिया। सूझबूझ से काम लेते हुए मुखिया ने पुआल में आग लगा दी। आग की लपटे देख हाथी गुस्से में आ गया और मुखिया की ओर लपका। मुखिया ने भाग कर अपनी जान बचाई।
ग्रामीणों ने बताया कि जंगली हाथियों का झुंड किसानों के खेतों में लगी धान, मक्का, गेहूं व अन्य हरी सब्जियों की फसलों को रौंदकर बर्बाद कर देता है। इससे प्रभावित गांव के अधिकतर किसानों ने अपने खेतों को परती छोड़ दिया है। कई ग्रामीणों का कहना है कि हाथी लगातार फसल बर्बाद कर रहे हैं। वहीं वन विभाग कोई ध्यान नहीं दे रहा है। हाथी भगाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती रही। बर्बाद हुई फसल का मुआवजा पिछले दो साल से नहीं मिला है। इस कारण किसान खेती छोड़कर मजदूरी करने पर मजबूर हैं। लोगों का कहना है कि हाथियों के उत्पात से ग्रामीण परेशान है। आए दिन हाथी किसी गांव में घुसकर ना सिर्फ घरों को क्षतिग्रस्त कर रहे हैं, बल्कि घर में रखे अनाज और खेतों में खड़ी फसलों को खाकर बर्बाद कर रहे है। अब तो ग्रामीण भी हाथियों के उत्पात से डरे-सहमे नजर आते हैं। इधर एक पखवारे से प्रखंड क्षेत्र में विचरण कर रहे हाथियों के झुंड ने अब तक कई किसानों की 15 एकड़ खेत में लगी फसल को नुकसान पहुंचाया है। किसानों का कहना है कि जंगली हाथियों से फसल को हो रहे नुकसान से परेशान थे। लेकिन किसानों पर अब नई मुसीबत आ गई। पिछले एक वर्ष से बंदरों का विशाल झुंड भी फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससेे उनकी चिंता और बढ़ गई है। किसान रात में अपनी खेती के अलावा जान माल की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित रहते हैं और रतजगा करने को मजबूर हैं। किसानों ने हाथियों को भगाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था करने की मांग की है।
हाथियों के संरक्षण के लिए बनी परियोजना विफल : केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन ने हाथियों के साथ पर्यावरण की सुरक्षा के लिए केंद्र ने हाथी परियोजना बनाई है। इसमें राज्यों को तकनीकी सहायता केंद्र सरकार की ओर से दी जाती है। लेकिन केंद्र सरकार की हाथी परियोजना भी कारगर साबित नहीं हो रही है। इसके कारण इंसानों के साथ हाथियों की मौत की घटनाएं बढ़ गई है। विभाग की मानें तो पिछले कुछ वर्षों से मानव और हाथी का संघर्ष रोकने को लेकर काफी मंथन हुआ है। लेकिन धरातल पर कोई कदम उठाया नहीं गया है।
पिछले वर्ष 86.96 हेक्टेयर फसल को किया था बर्बाद
हाथियों सहित अन्य जानवरों के रहने की जगह जंगल हैं। लेकिन लकड़ी माफिया चोरी छिपे पेड़ों को काट रहे हैं। इससे जंगली जानवरों को जंगल में खाना नहीं मिल पा रहा है। अपना पेट भरने के लिए जानवर बाहर निकल रहे हैं और लोगों को जानमाल को नुकसान पहुंचा रहा हैं। पिछले पांच साल में हाथियों ने गोला क्षेत्र के 17 लोगों को कुचल कर मार डाला था। पिछले वर्ष 2024 में वन विभाग के आंकड़े के अनुसार हाथियों ने 86.96 हेक्टेयर भूमि में लगी फसल को हाथियों ने बर्बाद कर दिया। जबकि जमीनी हकीकत इससे दोगुना है। जबकि वन विभाग ने 2023 में 11,23,850 लाख और 2024 में 27,61,460 लाख रुपये का मुआवजा वितरण किया। हाथियों के हमले से मौत होने पर 5 लाख रुपये का मुआवजा मिलता है। वहीं गंभीर रूप से घायल होने पर दो लाख रुपए का मुआवजा दिया जाता है।
अवैध उत्खन्न के कारण गांव की ओर आ रहे हाथी
जंगली जानवर का गांवों में विचरण करने व उत्पात मचाने का सबसे बड़ा कारण जंगलों-पहाड़ों में वैध-अवैध उत्खनन के साथ नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच अक्सर होने वाली गोलीबारी को माना जा रहा है। वन क्षेत्र में लोगों का दखल बढ़ जाने से जंगली जानवर अपना ठिकाना बदलने को बाध्य हो गए हैं। दूसरी ओर लकड़ी माफिया पेड़ों को काट रहे हैं। प्राकृतिक जलस्रोत भी सूखते जा रहे हैं। खाने पीने की तलाश में हाथी जब जंगलों से बाहर निकलते हैं तो लोगों को जान माल को नुकसान पहुंचाते हैं। सरकार इस नुकसान के लिए मुआवजा देती है। सरकार इस दिशा में ठोस हल नहीं निकाल पा रही है।
गोला में हाथियों का उत्पात जारी
केंद्र सरकार हाथियों के उत्पात से मौत पर 5 लाख रुपये का मुआवजा देती है। हालांकि वन विभाग पूरी कोशिश कर रही है कि हाथी व मनुष्य का संघर्ष रोका जाए। लेकिन इसके उलट टकराहट दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जंगलों में हाथियों के खाने लायक पेड़ पौधे पर्यापत मात्रा में नहीं हैं। वहीं प्राकृतिक जलस्रोत भी सूखते जा रहे हैं। ऐसे में हाथी भूख व प्यास मिटाने के लिए खेतों का रुख कर रहे हैं। पिछले एक पखवारे से हाथियों का झुंड अलग अलग समूहों में बंट कर गोला के कई क्षेत्रों में लगातार उत्पात मचाते फिर रहे हैं। हाथियों को आक्रामक होते देखकर ग्रामीण भी प्रतिशोध की भावना से काम करते हैं। इस प्रतिशोध की भावना में हाथियों के मारे जाने की भी कई घटनाएं हुई है।
घर में रखे अनाज खा जाते हैं हाथी
गोला वन क्षेत्र में विचरण करने वाला हाथियों का झुंड काफी आक्रामक होता है। ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर घर मिट्टी के बने होते हैं। हाथियों का झुंड मिट्टी के घर को धक्का मार कर ध्वस्त कर देते हैं और घर में रखे अनाज को चट कर जाते हैं। ऐसे में कई बार ग्रामीणों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। ग्रामीण बताते हैं कि सूचना पर वन विभाग के लोग पीड़ित परिवार से मुलाकात कर मुआवजा दिलाने का आश्वासन देकर चले जाते हैं। मुआवजे के लिए वन विभाग के लोग जमीन का ऑनलाइन रसीद मांगते है, जो कई ग्रामीणों के पास नहीं है। ऐसे में उन्हें मुआवजा भी नहीं मिल पाता है।
हाथियों को रोकने के लिए जंगल की अवैध कटाई पर लगे रोक
गोला क्षेत्र में विचरण कर रहे हाथी इतने अधिक आक्रामक हो गए हैं कि अपने सामने आने वाले हर चीज को तहस-नहस कर देते हैं। अब तो हाथियों के आगमन की खबर मिलते ही अपनी सुरक्षा के लिए ग्रामीण इलाका छोड़ने को मजबूर हैं।
-महालाल टुडू
जंगली हाथियों द्वारा पहुंचाई गई क्षति में मुआवजे का प्रावधान है। लेकिन क्षतिपूर्ति मुआवजा इतना कम होता है कि नुकसान की भरपाई नहीं हो पाता है। मुआवजा राशि पर सरकार को अपने मापदंडों पर गौर करना चाहिए, ताकि किसानों को ज्यादा नुकसान नहीं हो सके। -रंजीत बेदिया
हाथियों के उत्पात से ग्रामीणों को जान माल का नुकसान उठाना पड़ रहा है। मुआवजा के रूप में सरकार की ओर से मिलने वाली क्षतिपूर्ति काफी कम होती है। सरकार को हाथियों के उत्पात पर अंकुश लगाने के लिए पहल करनी चाहिए। -दिनेश तांती, ग्रामीण
गोला के ग्रामीण क्षेत्रों में आए दिन हाथियों का झुंड तबाही मचाता है। इसके कारण ग्रामीण भय के साए में जीवन बसर करने को विवश हैं। हाथियों के खौफ से कई किसानों ने खेती बारी छोड़ दी है। वन विभाग ग्रामीणों को हाथियों से सुरक्षा देने में नाकाम हैं।
-जीतलाल टुडू, मुखिया ,उपरबरगा पंचायत
हाथियों से सुरक्षा के लिए हाथी प्रभावित क्षेत्रों में विभाग को स्ट्रीट लाइट लगाना चाहिए। साथ ही विभाग को विशेष रूप से पहले करने की जरूरत है। तेज रोशनी से हाथी भागते हैं। इस योजना से ग्रामीण सुरक्षित महसूस कर सकते हैं।
-सुकरा करमाली
जंगलों की अवैध कटाई से हाथी और अन्य जंगली पशुओं के लिए सुरक्षित आवास की समस्या उत्पन्न हो गई है। इसके कारण गुस्साए जानवर अब जंगल छोड़ गांवों की ओर आ रहे हैं। सरकार को जंगलों की अवैध कटाई पर रोक लगाने की जरूरत है, ताकि हाथी गांव की ओर नहीं आ सके। -ठाकुरदास बेदिया
पेड़ों की अंधाधूंध कटाई के कारण जंगल खत्म हो रहे हैं। अधिकतर जंगल समतल व पहाड़ वृक्षविहिन हो गए है। इसके कारण पहाड़ों से निकलने वाली नदियां भी सूखने के कगार पर हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
-रामनाथ टुडू
गोला प्रखंड का विशाल भू-भाग वन और पहाड़ों से घिरा है। पहाड़ों पर वैध उत्खनन के लिए विस्फोटक का इस्तेमाल होता है, जो जंगली जानवरों की शांति में खलल डालता है। वन विभाग को ऐसी गतिविधियों को तत्काल बंद करवा देना चाहिए।
-सुलेंद्र टुडू
किसानों को अपनी फसलों की चिंता हमेशा सताते रहती है। सैकड़ों एकड़ भूमि में किसान धान, गेहूं, मक्का के अलावा सब्जी आदि की खेती करते हैं। फसल तैयार होते ही हाथियों का झुंड खेतों पर टूट पड़ते हैं और उसे खाने के साथ रौंदकर बर्बाद कर देते हैं।
-दिनेश मुर्मू
हाथियों पर काबू पाने के लिए विभाग ने अब तक ठोस पहल शुरू नहीं किया है। इन हाथियों को जंगल में रोके रखने की वन विभाग के पास कोई व्यवस्था नहीं है। इस ओर सरकार को विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है, ताकि वे गांव की ओर नहीं आ सके।
-गुलाची देवी
सीएम हेमंत सोरेन की पैतृक उपरबरगा पंचायत के औरांडीह, रौ रौ, नरसिंहडीह, नेमरा आदि गांवों में सबसे ज्यादा हाथियों ने नुकसान पहुंचाया है। खेतों में हरी सब्जियां, धान, घरों में रखे अनाज व अन्य सामान को हाथियों के झुंड काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
-राष्मीता देवीहमारे अंदर हाथियों का खौफ़ इस कदर समाया हुआ है कि रात में बाहर निकलने से डरते हैं। हाथी घरों को भी तोड़ देते थे। खेतों में लगी फसलों को रौंद कर बर्बाद कर देते हैं। इससेे सैकड़ों लोग गांव से पलायन करने के लिए मजबूर हो गए हैं।
-गणेश मुर्मू
इनकी भी सुनिए
हाथियों के उत्पात की समस्या को हमने कई बार विधानसभा के पटल पर भी उठाया है। समस्या के समाधान के लिए वन विभाग के आला अधिकारियों से बात की है। हमारे प्रयास से हाथी को भगाने के लिए संसाधन के वितरण में इजाफा हुआ है। हाथियों के हमले से मौत होने पर पांच लाख तक का मुआवजा और गंभीर चोट की स्थिति में 2 लाख रुपए मुआवजा का प्रावधान है। मामूली चोट पर 25 हजार निर्धारित है। संपत्ति और फसलों के नुकसान पर सरकार की निर्धारित दरों पर मुआवजा दिया जाता है। वन विभाग नुकसान को देखते हुए मानदंडों का अनुपालन कर सकती है।-ममता देवी, रामगढ़ विधायक
वन्य जीवों के क्षति पहुंचाने पर सरकार पीड़ित परिवार को मुआवजा देती है। हाल के दिनों में मुआवजे की राशि में बढ़ोतरी की गई है। हाथियों द्वारा घर क्षतिग्रस्त किए जाने पर पीड़ित को न्यूनतम 10000 से लेकर अधिकतम 120000 तक मुआवजा दिया जाता है। फसलों के नुकसान पर वन विभाग की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है। वन विभाग की टीम हाथी प्रभावित क्षेत्र का भ्रमण कर गांव वालों को सतर्क करते रहते हैं। वन विभाग की ओर से लगातार जागरुकता अभियान चलाया जाता है। हाथी के उत्पात को देखते हुए प्रभावित गांवों में लगातार टॉर्च, मशाल, पटाखा व अन्य सामग्री का वितरण किया जाता है।
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