बोले रामगढ़ : सालों से नहीं हुई है क्वार्टर की मरम्मत, कब ढह जाए पता नहीं
सीसीएल हजारीबाग क्षेत्र के लइयो कॉलोनी में श्रमिकों के क्वार्टर जर्जर हो गए हैं, जिससे उन्हें हमेशा हादसे का डर रहता है। पानी की कमी के कारण श्रमिक बोतलबंद पानी खरीदने को मजबूर हैं। प्रबंधन ने अब तक...
सीसीएल हजारीबाग क्षेत्र अंतर्गत लइयो में श्रमिकों के रहने के लिए हॉस्पिटल नौ और चार नंबर कॉलोनी हैं। यहां सैकड़ों सीसीएलकर्मी वर्तमान समय में रहते हैं। इनके क्वार्टरों का हाल काफी जर्जर हैं। जर्जर भवन होने के कारण यहां रहनेवालों लोगों को हमेशा हादसे का डर बना रहता है। वहीं कॉलोनीवासियों के लिए पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है। श्रमिक वर्ग बोतलबंद पानी खरीदकर पीने को विवश हैं। इन दोनों समस्याओं से कॉलोनीवासियों ने सीसीएल प्रबंधन को कई बार अवगत कराया है। बावजूद इसके प्रबंधन ने अबतक जर्जर क्वार्टरों की मरम्मत कराने की दिशा में कोई पहल नहीं की और न ही लोगों को शुद्ध पेयजल देने की दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठाया है। मजबूरी में कॉलोनी के लोग इन समस्याओं के बीच एक-एक दिन गिनकर काट रहे हैं।
वेस्ट बोकारो। लइयों में 45 वर्ष पूर्व 1980-81 में भूगर्भ परियोजना की शुरुआत हुई थी। उसी वक्त यहां मजदूरों के रहने के लिए क्वार्टर का भी निर्माण हुआ था। आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व लइयो भूगर्भ परियोजना बंद हो गई। लिहाजा यहां काम करने वाले मजदूरों को दूसरे परियोजनाओं में शिफ्त कर दिया गया।
जो मजदूर यहां के क्वार्टर में रह रहे थे वे लोग अपनी ड्यूटी भले ही दूसरे परियोजना में करने लगे लेकिन अपना क्वार्टर को नहीं बदले। 45 वर्ष बाद भी लोग अपने उसी क्वार्टर में रह रहे हैं। कई लोग ऐसे हैं जो अनुकंपा पर परिजनों के बदले नौकरी कर रहे हैं तो कई लोगों की नौकरी और कुछ वर्ष बची हुई है।
कंपनी में काम करने वाले पुराने लोगों ने बताया कि पहले ठेकेदारी प्रथा था। उस समय ठेकेदार के यहां काम करने के बदले नगद पैसा मिलता था। कोयला खान अधिनियम 1973 के तहत कोल इंडिया लिमिटेड का एक मई 1973 को राष्ट्रीयकरण हुआ। कोल इंडिया लिमिटेड भारत की एक सरकारी स्वामित्व वाली कोयला खनन कंपनी है। सीसीएल को कोयला उत्पादन के साथ साथ बेहतर कार्य करने के लिए अक्टूबर 2007 में मिनी रत्न कंपनी का दर्जा मिला। इसी मिनी रत्न कंपनी के तहत हजारीबाग कोयला क्षेत्र आता है। जिसके अंदर लइयो भूगर्भ परियोजना सहित छह अन्य परियोजनाएं और एक वाशरी है। इनमें से वर्तमान समय में लइयो भूगर्भ परियोजना पूरी तरह बंद हो चुका है तो वहीं केदला भूगर्भ परियोजना से भी कोयला का उत्पादन पिछले कई वर्षों से बंद है। शेष सभी परियाजनाएं चल रही हैं। हजारीबाग क्षेत्र प्रत्येक वर्ष सीसीएल मुख्यालय से मिलने वाले अपने उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त कर मुनाफा भी कमा रहा है।
आज मिनी रत्न कंपनी के अंतर्गत आने वाला लइयो परियोजना का यह कॉलोनी प्रबंधन के उपेक्षा का शिकार है। यहां पर हजारीबाग क्षेत्र के केदला वाशरी, झारखंड उत्खनन परियोजना, केदला भूगर्भ परियोजना में काम करने वाले सैकड़ों कामगार रहते हैं। अगर कंपनी चाहे तो इन क्वार्टरों को बेहतर ढंग से मरम्मत करा कर इसे पुन: नया जीवन देकर अपने कर्मियों को सुकुन के साथ रहने योग्य बना सकता है। मजदूर ही किसी भी उद्योग का रीढ़ होते हैं। इनके बिना किसी भी उद्योग की कल्पना नहीं की जा सकती है। वहीं इस समस्या को दूर करने के लिए मजदूरों के मसीहा कहलाने वाले श्रमिक संगठनों को भी आगे बढ़कर सकारात्मक पहल करनी चाहिए। मजदूर के बिना किसी भी संगठन का कोई औचित्य नहीं है। आज महारत्न और मिनी रत्न जैसे बड़े-बड़े उपाधी पाने वाले लिमिटेड कंपनी में काम करने वाले मजदूर अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। आखिर ये अपनी फरियाद लेकर जाएं तो कहां जाएं। श्रमिकों का कहना है कि कई बार समस्याओं से प्रबंधन को अवगत कराया गया है। लेकिन अबतक समस्या का कोई समाधान नहीं हो पाया है।
वायरिंग और स्विच बोर्ड भी हैं खराब
चार दशक पूर्व बने क्वार्टरों की हालत तो जर्जर है ही इन घरों में लाइट और पंखा के लिए लगाए गए तारों का हाल भी बेहाल है। लोग दीवार में कांटी के सहारे वाईिंरग के झुलते तार को टांग कर रखे हुए हैं। लाइट और पंखा के लिए लगाए गए स्विच बोर्ड का भी बुरा हाल है। दीवार में लगे स्विच बोर्ड सड़ चुके हंै। वहीं स्विच भी काम करना बंद कर दिया है। कुछ लोग बुहत इमर्जेंसी होने पर अपने जेब से पैसा खर्च कर वायरिंग और स्विच बोर्ड का काम कराते रहते हैं। इसे संयोग ही कहे कि इस हालात में भी अभी तक कोई बड़ा हादसा सुनने को नहीं मिला। इस कार्य को प्रमुखता के साथ प्रबंधन को करनी चाहिए।
सेप्टिक टैंक की नहीं हुई है सफाई
सीसीएल लइयो की कॉलोनी कोई भी हो ड्रेनेज और सेप्टिक टैंक की समस्या सभी जगह एक समान है। सारी नालियां और सेप्टिक टैंक टूटी हुई हैं। सेप्टिक टैंक का मल-मूत्र नालियों में बहता रहता है। नालियां टूटी होने के कारण सारा गंदा पानी कॉलोनी के क्वार्टरों के आसपास बहता रहता है। सबसे ज्यादा बुरा हाल बरसात के समय होता है। जब ड्रेनेज और सेप्टिक टैंक बरसात के पानी से भर जाता है और उसका पानी हर तरफ बहता हुआ रहता है। इससे मच्छरों का जहां प्रकोप बढ़ जाता है। वहीं कई तरह की बीमारियां होने की संभावना भी बनी रहती है। लोगों को बदबू और अपने घर के आगे बहने वाले गंदे पानी से जीना मुहाल हो जाता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए प्रबंधन को पहल करनी चाहिए।
क्वार्टर जर्जर , बना रहता है हादसे का डर
सीसीएल में काम करने वाले कामगारों ने कहा कि सीसीएल और कोल इंडिया के लिए अपना खून-पसीना बहाकर कोयला उत्पादन कर मुनाफा देते हैं। सीसीएलकर्मियो का कहना है कि हम खदान में अपना ड्यूटी करते हैं लेकिन ध्यान हमेशा घर में रहने वाले परिवार पर होता है। मन में डर बना रहता है कहीं कोई अप्रिय घटना न घट जाए। जिस ईमानदारी से हमलोग काम करते हैं। उसी प्रकार प्रबंधन को भी मजदूरों के हितों का पूरा ख्याल रखना चाहिए। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। कई-कई बार आवेदन देने के बाद भी क्वार्टर मरम्मत सहित अन्य समस्याओं का समाधान नहीं होता है। श्रमिक संगठन भी अब सिर्फ नाम के रह गए हैं। मजदूरों के हक अधिकार की बात तो करते हैं। लेकिन उनके दुख दर्द को बांटने कोई नहीं आता है। अगर प्रबंधन और श्रमिक संगठन मजदूरों की जायज मांगों पर सहानुभूती पूर्वक काम करे तो देश के आर्थिक विकास में मजदूरों का सहयोग तन और मन दोनो से मिलेगा।
क्वार्टरों की मरम्मत के लिए होनी चाहिए पहल
वर्तमान में जो भी सीसीएलकर्मी रहते हैं उनके क्वार्टर की हालत काफी जर्जर हैं। चार दशक पूर्व बने इन क्वार्टरों की मरम्मत करने से इनके क्वार्टरों का जहां जीवन बढ़ जाएगा। वहीं इनमें रहने वाले कामगार और उनके परिवार के सदस्य भी अपना जीवन भय मुक्त होकर गुजार सकते हैं। वहीं प्रबंधन को भी अपने कामगारों के लिए नए क्वार्टर बनाने की आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी। इससे सीसीएल को जहां कम खर्च में अपने कामगारों के घर को सुरक्षित करना आसान होगा। वहीं जर्जर क्वार्टर में रहने वाले लोगों के साथ आए दिन होने वाली छोटी-छोटी घटनाएं भी समाप्त हो जाएगी। बस जरुरत है प्रबंधन को सकारात्मक पहल करते हुए वर्षों से मजदूरों की जर्जर क्वार्टर की मरम्मत की मांग को पूरा करना।
पेयजल की नहीं है कोई व्यवस्था
सीसीएल के क्वार्टरों में रहने वाले लोगों के लिए पेयजल सबसे बड़ी समस्या है। क्वार्टरों में जो सप्लाई का पानी आता है वह सीसीएल के बंद पड़े खदान का पानी होता है। जिससे नहाने और कपड़ा-बर्तन धोने में उपयोग होता है। इस पानी का लोग पीने के लिए उपयोग नहीं करते हैं। लोग वर्तमान में बोतल का पानी खरीदकर पीते हैं।
वहीं दूसरी ओर प्रबंधन की ओर से जो पानी क्वार्टरों में भेजा जाता है, वह वाटर सप्लाई का पाइप लाइन भी खराब है। आधा से ज्यादा क्वार्टरों तक पानी पहुंचता ही नहीं है। क्वार्टरों में पानी स्टॉक रखने के लिए टंकी बनवाया गया था। कई घरों की टंकी खराब हो गए हैं तो कई के टंकी टूट चुकी है। जिसके कारण लोग घरो में सप्लाई का पानी स्टॉक नहीं कर पाते हैं।
पानी को लेकर सबसे ज्यादा परेशानी लोगों को गर्मी के समय झेलना पड़ता है। पानी की समस्या का समाधान बहुत ही जरूरी है।
समस्याएं
1. कॉलोनी के सभी क्वार्टर जर्जर हो गए हैं जिससे हमेशा हादसे का डर बना रहता है।
2. नाली की नियमित सफाई नहीं होने से सड़क पर गंदा पानी बहता रहता है।
3. कॉलोनी की सड़कें भी जर्जर होने के कारण लोगों को आवाजाही में परेशानी होती है।
4. सभी क्वार्टरों की वायरिंग खराब हो गई, स्विच भी काम नहीं करता है।
5. पानी का पाइपलाइन खराब रहने से लोगों को खरीदकर पानी पीना पड़ता है।
सुझाव
1. जर्जर क्वार्टरों का सीसएल प्रबंधन की तरफ से तत्काल मरम्मत करायी जाए।
2. कॉलोनी में नाली की मरम्मत करायी जाए और नियमित सफाई की व्यवस्था हो।
3. कॉलोनी में आनेवाली सभी जर्जर सड़क को दुरुस्त कराने की दिशा में पहल हो।
4. क्वार्टरों की खराब वायरिंग की मरम्मत कराकर नए स्विच लगाने का काम हो।
5. वाटर सप्लाई के लिए बिछाए गए पाइपलाइन की जल्द मरम्मत करायी जाए।
इनकी भी सुनिए
पूर्व का लइयो परियोजना वर्तमान में झारखंड लइयो परियोजना बन गया है। यहां पर कई दशक से कोयला मजदूर अपने जीवन को कोल इंडिया के लिए समर्पित कर दिया है। मजदूरों के बदौलत ही आज कोल इंडिया महारत्न और सीसीएल मिनी रत्न कंपनी बनी है। मजदूरों के साथ यहां पर अपनी जमीन देने वाले विस्थापित रैयतों को भी बुनियादी सुविधा देना प्रबंधन की जिम्मेवारी है। जब मजदूर काम आपका करेगा तो उसका सुख सुविधा का ख्याल कौन रखेगा।
-मदन महतो, क्षेत्रीय अध्यक्ष सह क्षेत्रीय कल्याण समिति सदस्य, हजारीबाग कोयला क्षेत्र
जिन सीसीएलकर्मियों को लगता है की क्वार्टर रहने लायक नहीं है या क्वार्टर बहुत जर्जर है। क्वार्टर में पानी, बिजली सहित अन्य समस्याएं हैं तो वैसे लोग क्वार्टर से संबंधित समस्याओं का आवेदन देकर प्रबंधन को अवगत कराएं। अगर क्वार्टर मरम्मत नहीं होता है या उनकी समस्याएं दूर नहीं होती है तो उनके लिए अन्यत्र रहने की व्यवस्था करना प्रबंधन की जिम्मेवारी है। अगर कोई कंपनी के क्वार्टर में अवैध रुप से कब्जा कर रह रहा है तो उनसे आग्रह है कि वो क्वार्टर को खाली कर दें।
-ललन कुमार राय, परियोजना पदाधिकारी, झारखंड उत्खनन परियोजना
जर्जर सड़कों की मरम्मत हो
जान जोखिम में डालकर क्वार्टर में रहते हैं। कई बार प्रबंधन को आवेदन देने के बाद भी आज तक क्वार्टर का मरम्मत नहीं हुआ है। हमेशा क्वार्टर के अंदर घटना दुर्घटना होने का भय बना रहता है। -मंथिर लाल केवट
क्वार्टर की छत और दीवार सब जर्जर हो गए हंै। बीच में कुछ दिन पूर्व क्वार्टर मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति हुई थी। बेहतर ढंग से काम नहीं होने के कारण हालत जस के तस है। प्रबंधन को इस ओर ध्यान देना चाहिए। -लालमन महतो
मेरी नौकरी अब ज्यादा दिन नहीं है। क्वार्टर में पूरा परिवार रहता है। क्वार्टर की छत का प्लास्तर टूट कर गिर गया है। छत में लगा सरिया साफ नजर आता है। हमेशा कुछ अनहोनी को लेकर मन में डर लगा रहता है। -रति महतो
सब तरफ सिर्फ लूट और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। जैसे वर्षों से चल रहा है आगे भी वैसे ही चलता रहेगा। कोई भी पदाधिकारी आता है तो सिर्फ उन्हें उत्पादन का टार्गेट नजर आता है। मजदूरों की चिंता किसी को नहीं है। -कमलधर सिंह
क्वार्टर की अगर खुद से जरूरत के अनुसार समय समय पर मरम्मत नहीं करायी तो यहां रहना मुश्किल था। कोई भी भवन को अगर 40-45 साल तक मरम्मत के नाम पर कुछ नहीं किया जाए तो वह खंडहर बन जाता है। - बसंत राम
अब तो इस हालात में रहने की आदत सी हो गई है। भगवान भरोसे क्वार्टर में रहते हैं। जब तक जीवन है कोई कुछ नहीं कर सकता और जब जाना होगा तो कोई रोक भी नहीं सकता है।
-डमरु धर
इंसान जब ड्यूटी से घर लौटता है तो उसका सबसे पहला काम होता है कि वह स्नान करने के बाद भोजन करें। लेकिन हमलोग को स्नान करने के लिए ना घर में पानी मिलता है और ना ही चैन की नींद सोने के लिए सुरक्षित घर। -जितेंद्र मुंडा
क्वार्टर मरम्मत को लेकर कई बार गुहार लगा चुके हैं। कोई नहीं सुनता है। अब छोड़ दिए हैं सबको बोलना। जब सब का क्वार्टर मरम्मत होगा तो हमारा भी हो जाएगा। अगर नहीं होगा तो जैसे चल रहा है वैसे चलता रहेगा। - मनुआ मुंडा
घर के मर्द लोग तो अपने-अपने काम पर चल जाते हंै। घर में क्या हो रहा है उनको हम बताते हैं तब उनको पता चलता है। किस तरह परेशानी से पानी ढोकर लाते हैं तो घर का काम होता है। क्वार्टर का तो हाल बहुत खास्ता है। -खेक बाई
क्वार्टर सहित अन्य समस्याओं को लेकर कभी-कभी परिवार में भी झगड़ा की नौबत आ जाती है। पानी की समस्या कौन दूर करेगा यह सब हमलोग नहीं जानते हैं। ये सब कंपनी में काम करने वाले लोग जानते हैं। -रुकमणी देवी
बुहत बुरे हाल में हमलोग रह रहे हैं। सीसीएल की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं दी गई है। छत के तरफ देखने पर डर से रात में नींद नहीं आती है। बरसात में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। छत से पानी टपकते रहता है। -संयुक्ता देवी
मजदूरों की समस्या कोई नहीं सुनता है। वह किस हाल में जी रहा है किसी को कोई मतलब नहीं है। मिनी रत्न और महारत्न का उपाधि मिलने से किसी मजदूर को कोई फायदा हुआ है क्या।
-टिकामन महतो
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