बोले पलामूः कैंप लगाकर हो स्वास्थ्य जांच, बैठने को बने शेड
मेदिनीनगर की थोक मंडी में पल्लेदारों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उन्हें उचित मजदूरी, बैठने की जगह, पेयजल और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। वे दिन-रात मंडी में काम करते हैं और अक्सर गंभीर...
दैनिक उपभोग की समस्त वस्तुओं का भार उठाते-उठाते पल्लेदारों की कमर समय के साथ कमान की तरह टेढ़ी हो जाती है। किंतु सुविधा के नाम पर कार्यस्थल पर सिर छिपाने की छाया तो दूर पेयजल के लिए टोटी भी मयस्सर नहीं है। जैसे-जैसे मेदिनीनगर की थोक बाजार मंडी का आकार बढ़ता गया वैसे ही पल्लेदारों की संख्या भी बढ़कर 150 से 200 तक पहुंच चुकी है। हिन्दुस्तान के बोले पलामू अभियान के दौरान शासकीय व सामाजिक उपेक्षा से मायूस पल्लेदारों ने खुलकर अपनी पीड़ा साझा की। मेदिनीनगर। आम उपभोग से जुड़ी राशन-पानी, दवा, इलेक्ट्रानिक, फर्नीचर, भवन निर्माण सामग्री आदि कोई भी सामान हो, महानगरों से वे थोक रूप से जिले की मंडी में ही आते हैं। उन सामनों को क्षेत्रीय मंडी में लेकर आने वाले वाहनों को अनलोड मंडी में मौजूद पल्लेदार ही करते हैं। किंतु दुर्भाग्यपूर्ण है कि समाज व आर्थिक जगत के मेरुदंड पल्लेदार आज भी मुख्यधारा से परे मंडी में दीन-हीन अवस्था में फुटपाथ या दुकानों के पायदानों पर बैठकर सामानों से लदे वाहनों के आने और सामान अनलोड-अपलोड करने के काम के लिए इंतजार करने को अभिशप्त हैं।
मेदिनीनगर स्थित थोक मंडी में कभी भी जाने पर जगह-जगह सड़क किनारे झुंड में बैठे पल्लेदार वाहनों का इंतजार करते सहजता से देखे जा सकते हैं। सुबह छह बजे से लेकर रात के 10 बजे तक उनकी जिंदगी मंडी में ही व्यतीत होती है। कार्य के दौरान कार्य-स्थल पर किन समस्याओं से दो-चार होते हैं। कुरेदने पर पल्लेदारों की जुबान पर सबसे पहले यही निकला। कमरतोड़ मेहनत करने के बाद भी साहब अक्सर उचित मजदूरी तो दूर सम्मान के दो शब्द सुनने के लिए भी उनके कान तरसते हैं। वे थोक व फुटकर व्यापारी से लेकर आम जनता सभी के लिए काम करते हैं। किंतु उन्हें कोई भी समुचित सम्मान की नजर से नहीं देखता। उससे परे कोई मान्यता नहीं मिलने के कारण अपनी बुनियादी समस्याओं के बाबत वे कहां शिकायत करें, यह भी समझ में नहीं आता है। जबसे मंडी खुली है, तब से वे यहां वाहनों से सामान उतार रहे हैं। इसके बाद भी उनके लिए मंडी में कहीं भी बैठने की कोई निश्चित जगह भी नहीं है। इसके कारण कड़ाके की ठंड हो, मूसलाधार बरसात या आग उगलती सूरज की किरणें। वे मंडी के ही किसी कोने में फुटपाथ पर बैठकर ही वाहनों की प्रतीक्षा करते हैं। प्रतिकूल मौसम में अक्सर उन लोगों की तबीयत बिगड़ जाती है। जिसके कारण कई दिनों तक वे काम भी नहीं कर पाते हैं। जिससे उनके समक्ष परिवार के भरन-पोषण का गंभीर संकट उत्पन्न हो जाया करता है। वे लोग प्रतिदिन कुआं खोदकर पानी पीने वाले लोग हैं। यदि किसी कारणवश एक दिन भी काम नहीं कर पाये तो उस दिन उनके घर का चूल्हा ठंडा पड़ जाता है। क्योंकि इस काम में इतनी मजदूरी नहीं मिल पाती है कि वे भविष्य के लिए कुछ बचत भी कर सकें। दूसरी प्रमुख समस्या उनके लिए मंडी में पानी की कोई व्यवस्था का नहीं होना है। समय के साथ वैसे ही हैंडपंपों की संख्या कम होती जा रही है।
दूसरी तरफ गर्मी में शहर में ही पेयजल की गंभीर किल्लत उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में मंडी में स्थित एक-आध हैंडपंप भी पानी छोड़ देते हैं। सामान्य दिनों में तो दुकानों से उन्हें पीने का पानी मिल जाता है। किंतु गर्मी में जब दुकानदार खुद ही पानी के संकट से जूझ रहे होते हैं तो स्वाभाविक रूप से उनके समक्ष पेयजल का गंभीर संकट उत्पन्न हो जाता है। मंडी में शौचालय आदि का भी कोई प्रबंध नहीं किया गया है। इसके कारण शौच तो दूर लघुशंका के लिए भी उन्हें मंडी से दूर बाहर जाना पड़ता है। श्रमिक के रूप में उनका पंजीकरण नहीं होने के कारण उन्हें मेडिकल, बीमा जैसी सरकारी सुविधाओं का भी लाभ नहीं मिल पाता है। इसके कारण आकस्मिक दुर्घटना आदि की स्थिति में उनका परिवार गंभीर आर्थिक संकट का सामना करता है। पेंशन सुरक्षा के लाभ से वंचित होने के कारण काम न करने की स्थिति में उनकी आय पूरी तरह से बंद हो जाती है। इसके कारण बुढ़ापे के समय दो वक्त की रोटी के लिए भी वे दूसरों का मोहताज हो जाते हैं।
काम के दौरान अक्सर होते हैं घायल
पल्लेदारों का काम जोखिम भरा होता है। भार उठाकर वाहन पर चढ़ते-उतरते के समय जरा सी भी चूक हुई नहीं कि जानलेवा दुर्घटना उनकी ताक में रहता है। आये दिन दुर्घटना का शिकार होने के कारण पल्लेदार गंभीर रूप से घायल होते रहते हैं। इसके बाद भी बीमा अथवा मेडिकल आदि का कोई प्रबंध नहीं होने के कारण समुचित उपचार कराने में उन्हें भारी परेशानी उठानी पड़ती है। निजी स्तर पर इलाज कराना उनके लिए काफी मुश्किल हो जाता है। इससे लंबे समय तक वे काम से दूर हो जाते हैं। जिससे उन्हें गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।
काम नहीं मिलने पर होती है काफी समस्या
बढ़ती बेरोजगारी के कारण थोक मंडी में पल्लेदारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जिले के कई अन्य शहरों में भी थोक मंडी खुल जाने के कारण मेदिनीनगर मंडी में सामानों की आपूर्ति अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ी है। ऐसे में सभी को नियमित रूप से काम मिलने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। कई पल्लेदार तो ऐसे हैं जिन्हें लगातार कई दिनों तक काम ही नहीं मिलता है। उनके पास आय का दूसरा कोई स्रोत भी नहीं होता है। ऐसे में उनके समक्ष आये दिन परिवार के भरन-पोषण का संकट बना रहता है। इस स्थिति में उनके सामने और कोई चारा भी नजर नहीं आता है और वे काफी बेबस महसूस करते हैं।
प्रशासन की नीति स्पष्ट नहीं
पल्लेदार भले ही मजदूरों की ही श्रेणी में आते हैं किंतु उन्हें लेकर शासन की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। ऐसे में हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी अक्सर वे श्रम विभाग अथवा सामाजिक कल्याण विभाग की तमाम जनोपयोगी योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं। इनका श्रम विभाग में पंजीकरण भी नहीं रहता है। सरकारी रिकार्ड में ये बतौर श्रमिक दर्ज भी नहीं हो पाते हैं जिसके कारण आकस्मिक मृत्यु की स्थिति में उनके आश्रितों को सरकारी लाभ भी नहीं मिल पाता है।
मजदूरी की दर निर्धारित नहीं
मंडी में सामान उतारने-चढ़ाने का कोई निश्चित दर का निर्धारण नहीं है। ऐसे में आये दिन मजदूरी को लेकर पल्लेदार व व्यवसायी के मध्य किचकिच भी देखने को मिलती है क्योंकि पल्लेदार का काम अत्यधिक शारीरिक श्रम से जुड़ा होता है। इसके एवज में उन्हें काफी कम मजदूरी मिलती है। ऐसे में उन्हें हल हाल में समुचित मजदूरी मिलनी ही चाहिए। शासन व श्रम विभाग को मंडी में रेट सूची का निर्धारण कर बाजार में इस संबंध में स्पष्ट बोर्ड लगाना चाहिए। इससे पल्लेदारों को उचित मजदूरी मिल सके।
शिकायतें
1. मंडी में बैठने का कोई स्थान निर्धारित नहीं होने के कारण पल्लेदारों को फुटपाथ पर ही बैठना पड़ता है।
2. मंडी परिसर में पेयजल व शौचालय की सुविधा का घोर अभाव है, इससे पल्लेदारों को इधर-उधर भटकना पड़ता है।
3. श्रम विभाग के अंतर्गत मजदूरों को मान्यता न मिलना। इससे उन्हें तमाम श्रम योजनाओं के लाभों से वंचित रहना पड़ता है।
4. मंडी में सामान उतारने का कोई निश्चित दर अभी तक निर्धारित नहीं किया गया है।
सुझाव
1. पल्लेदारों के लिए मंडी में बैठने के निश्चित स्थान का निर्धारण किया जाए। जिससे वे खाली समय में आराम कर सकें।
2. मंडी परिसर में समुचित पेयजल व शौचालय का प्रबंध किया जाए। जिससे पल्लेदारों को परेशानी न हो।
3. श्रम विभाग के तहत पल्लेदारों को मजदूर के रूप में मान्यता दी जाए, जिससे उन्हें योजनाओं का लाभ मिल सके।
4. मंडी में सामान उतारने के दर का निश्चित निर्धारण किया जाए।
जिले के मेदिनीनगर शहर में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर और पल्लेदारों को श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन के लिए बहुत जल्द शहर में विशेष शिविर लगाया जाएगा ताकि अधिक से अधिक मजदूरों का रजिस्ट्रेशन कराया जाए। उन्हें अन्य सुविधाएं भी दोने का प्रयास होगा।
एतवारी महतो, श्रम अधीक्षक, पलामू
मंडी परिसर में पल्लेदारों के बैठने के लिए निश्चित जगह का निर्धारण व पेयजल का प्रबंध समय की जरूरत है। साथ ही सप्ताह में कम से कम एक दिन मंडी परिसर में पल्लेदारों के लिए स्वास्थ्य जांच शिविर का भी आयोजन किया जाए।
डब्लू पासवान, अध्यक्ष झारखंड मजदूर यूनियन
मंडी में कहीं भी पल्लेदारों के लिए बैठने की कोई जगह नहीं होने से उन्हें अक्सर फुटपाथ ही बैठना पड़ता है। अधिक भीड़ होने से किसी कोने में खड़े रहते हैं। विकास कुमार
पल्लेदार भी समाज के अंग हैं। सरकार व सामाजिक संगठनों को भी इनके बारे में सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। जिससे उन्हें भी मुख्यधारा में आने का मौका मिले। प्रमोद
मंडी परिसर में पेयजल का प्रबंध नहीं होने से गर्मी में पल्लेदारों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। इस संबंध में सांसद, विधायक को भी पहल करनी चाहिए। पारस चंद्रवंशी
पल्लेदार हाड़तोड़ मेहनत कर समाज की जरूरतों को पूरा करते हैं। ऐसे में सरकार के साथ समाज का भी दायित्व बनता है कि उनके हितों व सम्मान के प्रति सभी सोचें। राजमणि भुईंयां
मंडी परिसर में नगर निगम के द्वारा तत्काल पल्लेदारों के लिए शेड का प्रबंध किया जाना चाहिए। जहां खाली समय में पल्लेदार कुछ समय के लिए आराम कर सकें। गोलू गुप्ता
सप्ताह में कम से कम एक दिन मंडी परिसर में शिविर लगाकर पल्लेदारों के स्वास्थ्य की जांच की जानी चाहिए। जिससे उन्हें आंशिक ही सही कुछ राहत मिल सके। शिवराम चंद्रवंशी
तत्काल कैंप लगाकर पल्लेदारों का श्रम विभाग में पंजीकरण कराना चाहिए। जिससे उन्हें सरकार की मजदूर हित वाली योजनाओं का समुचित लाभ मिल सके।
सतीश पासवान
पल्लेदार पूरे समाज की सेवा करते हैं। ऐसे में मंडी में उनके बैठने की निश्चित जगह के संबंध में सरकार के साथ जन प्रतिनिधियों को भी अवश्य विचार करना चाहिए। बबलू चंद्रवंशी
पल्लेदारों को सरकार की अनिवार्य समूह बीमा का लाभ अवश्य मिलना चाहिए। जिससे आकस्मिक मौत की स्थिति पर उनके बाल-बच्चे सड़क पर न आएं महेश चौधरी
किसी भी प्रकार का बीमा अथवा मेडिकल की सुविधा पल्लेदारों को नहीं मिलती। ऐसे में कार्य के दौरान घायल होने पर भी उन्हें खुद के खर्च पर ही उपचार कराना पड़ता है। ओम प्रकाश
पल्लेदारों के जीविकोपार्जन का बोझ उठाना ही एकमात्र साधन है। कार्य के दौरान अक्सर वे थक जाते हैं। प्रशासन को मंडी परिसर में उनके बैठने की जगह बनानी चाहिए। राजू पासवान
मंडी परिसर में पल्लेदारों के लिए कहीं भी शौचालय का प्रबंध नहीं है। ऐसे में उन्हें भारी परेशानी उठानी पड़ती है। शासन को इस संबंध में अवश्य विचार करना चाहिए। सोनू
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