महुआ फूल चनकर गांव की महिलाएं कर रही रोजगार
महेशपुर में जंगल और पेड़ पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण हैं। महुआ फूल आदिवासी महिलाओं के लिए आय का स्रोत है। मार्च और अप्रैल में महुआ फूलों का संग्रह किया जाता है, जो रोजगार प्रदान करता है। महुआ से...

महेशपुर। जंगल व पेड़ न सिर्फ प्रकृति वरन पर्यावरण के संरक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं। इससे हटकर देखा जाए तो यही वृक्ष फल तथा अन्य फूलों से मानव जाति के आय का स्त्रोत भी हैं। यह बात विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी महिलाओं के आय का साधन भी बनती है। उनके आजीविका का माध्यम है। प्रखंड के सभी आदिवासी बहुल इलाकों में जंगल का पीला सोना कहे जाने वाले महुआ फूल टपकना शुरू हो गया है। मार्च एवं अप्रैल के महीने में महुआ वृक्षों में महुआ के फूल आने लगते हैं। महुआ की महक से जंगल का वातावरण सुगंधित हो गया है। फूलों को इकट्ठा करने के लिए आदिवासी ग्रामीण महिलाएं सुबह से ही टोकरी लेकर अपने-अपने घरों से निकल पड़ती हैं। महुआ फूल ग्रामीणों को ऐसे समय में रोजगार देता है जब वे बेरोजगार होते हैं। लेकिन इससे केवल शराब ही नहीं बनती बल्कि औषधियों के निर्माण में भी अहम भूमिका है। प्राचीन काल के दौरान मजदूरों को जब काम नहीं मिलता तो वह महुआ एकत्रित कर इसे बेचने का कार्य करते है। ग्रामीण सुबह से ही महुआ फूल को संग्रह करने हेतु खेतों और जंगलों की ओर रुख करते हैं। वर्तमान में महुआ की अच्छी कीमत मिल जाती है। आदिवासी में महुआ फूल का उपयोग शराब बनाने में किया जाता है। देशी शराब से आदिवासियों को अच्छी आमदनी हो जाती है। आदिवासी संस्कृति में जन्म से मृत्यु तक महुआ की शराब की जरूरत है। इसलिए आदिवासियों के लिए यह खास माना जाता है। महुआ फूल के बाद पेड़ से फल भी गिरते हैं। आदिवासी बीज को सुखाकर तेल निकालते हैं। बीज से निकाला गया तेल खाने और औषधि के रूप में भी काम आता है। जैसे हाथ पैर में दर्द होने पर उक्त तेल से मालिश करते हैं। साथ ही महुआ के बीज से निकाला गया तेल दिया जलाने में भी उपयोग किया जाता है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।