Jharkhand s Sarhul Festival Celebrated with Cultural Processions and Prayers सुख, समृद्धि, शांति और आरोग्यता के लिए पहानों ने सरहुल पूजा की, Lohardaga Hindi News - Hindustan
Hindi NewsJharkhand NewsLohardaga NewsJharkhand s Sarhul Festival Celebrated with Cultural Processions and Prayers

सुख, समृद्धि, शांति और आरोग्यता के लिए पहानों ने सरहुल पूजा की

लोहरदगा में आदिवासियों द्वारा सरहुल महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर सांस्कृतिक शोभा यात्रा में महिलाएं और युवा पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए। पूजा के दौरान सिंदूर, जल और अक्षत अर्पित कर धरती...

Newswrap हिन्दुस्तान, लोहरदगाWed, 2 April 2025 01:59 AM
share Share
Follow Us on
सुख, समृद्धि, शांति और आरोग्यता के लिए पहानों ने सरहुल पूजा की

लोहरदगा, संवाददाता।पृथ्वी और सूरज के खुशियली के प्रतीक के रूप में आदिवासियों समेत झारखंडवासियों के द्वारा बनाए जाने वाले महान प्रकृति महोत्सव (पर्व) लोहरदगा और आसपास के इलाके में मंगलवार को पूरे मंगलकामनाओं के साथ मनाई गई। इस अवसर पर केंद्रीय सरना समिति लोहरदगा के तत्वावधान में शहर में भव्य सांस्कृतिक शोभा यात्रा और झांकियां निकाली गई। इसमें राजी पड़हा समिति, जिला राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा जैसे संगठनों के अगुआ शामिल हुए। लोहरदगा एमजी रोड स्थित धर्म कुड़िया (झखरा कुंबा) में पहान भूषण मुंडा पुजार करमा मुंडा, कहरू उरांव फुल्केश्वर उरांव के नेतृत्व में तमाम अतिथियों और आदिवासी समुदाय के लोगों ने सबों के जीवन में धर्मेश की कृपा से सुख शांति और समृद्धि बना रहे इस उद्देश्य से सिंदूर फूल जल अक्षत से पूजा के उपरांत प्रसाद चढ़ाया सरहुल आदिवासी समुदाय की सामूहिकता अनुशासन का महोत्सव है सरहुल महोत्सव में प्रकृति स्वरूप नई शक्तियां का ऊर्जा देखते ही बन रहा था। कई किलोमीटर तक ढोलों- नगाड़ों, मंजीरों की थाप पर अपनी संस्कृति को सबल बनाने के उद्देश्य से कदम से कदम मिलाते हुए नृत्य करते चल रही थीं ।ऐसी सामूहिकता और लयबद्धता बिरले ही देखने को मिलता है। विशेष बात यह था कि इस बार की सांस्कृतिक शोभा यात्रा में तमाम महिलाएं बच्चियों युवकों -युवतियां समेत तमाम लोग पारंपरिक गणवेश पहने हुए थे। इससे उनकी शक्ति और सामूहिकता की प्रस्तुति हुई। यही उनके ऊर्जा का प्रतीक बना।

झखरा कुंबा से किस्को मोड देशवाली और सेरेंगहातू-जुरिया से लेकर गंगुपाडा-जयनाथपुर-बदला तक बक्शीडीपा से लेकर कैमो गांव तक के तमाम अखाड़े में वहां के स्थानीय पहान-पुजारों के द्वारा वनदेवी को सरई फूल से प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना की गई। ऐसी मान्यता है, कि सूरज और धरती का विवाह सूर्य की किरणों के बीच धरती में वहां के पहान के द्वारा सिंदूर, जल, अक्षत अर्पित कर पूजा और विवाह संपन्न कराया जाता है।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।