वन्दे मातरम गाकर आजादी का अलख जगाते थे बुद्धन सिंह
लोहरदगा में स्वतंत्रता सेनानी बुद्धन सिंह की जयंती और 54वीं पुण्यतिथि 31 जनवरी को मनाई जाएगी। उनके सम्मान में बुद्धन सिंह लेन पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। बुद्धन सिंह ने समाज में सुधार के लिए कई...
लोहरदगा, संवाददाता। लोहरदगा के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर गांधीवादी, सामाजिक कुरीतियों के प्रबल विरोधी, वर्ष 1932 और 1942 में जेल यात्रा में गए स्व बुद्धन सिंह की जयंती व 54वीं पुण्यतिथि शनिवार 31 जनवरी को मनाई जाएगी। शहर के बुद्धन सिंह लेन में उनकी प्रतिमा में पूर्वाहन 11 बजे उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी।
स्मारक समिति के संयोजक सुधीर अग्रवाल ने जिले के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, व्यवसायिक, शैक्षणिक आदि संगठनों व आम जनों से कार्यक्रम में उपस्थित होने की अपील की है।
बुद्धन सिंह राय साहब बलदेव साहू और देश के पूर्व राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद के बेहद निकट थे। वह लोहरदगा के स्वतंत्रता सेनानियों के बीच सेनानायक थे। उनके नायकत्व का ही प्रभाव था कि नगर के देश प्रेमियों से लेकर टाना भगतों का दल भी उनके साथ था। स्वतंत्रता साधक, समाजसेवी, देशप्रेमी और गांधीवादी बुद्धन सिंह लोहरदगा की तत्कालीन चेतना के प्रतीक थे।
उन्होंने समाज में व्याप्त आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक विषमता को नजदीक से देखा। उन्हें मिटाने का संकल्प किया। उन्होंने शिवशंकर राम आर्य, मथुरा प्रसाद मोदी, सरजू अग्रवाल और मधुसूदन लाल अग्रवाल जैसे समान विचारधारा वालों के साथ समाज-सुधार का बीड़ा उठाया। समाज से जातिवाद और ऊंच-नीच का भाव मिटाने के प्रयास में उनके खिलाफ मुकदमा भी हुआ जिसमें उनकी जीत हुई थी।
वह गांव-गांव जा जाकर लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करते थे। वह कांग्रेस के आजीवन सचिव रहे। राष्ट्रीय गीत गा-गाकर लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने की अपील करते थे। मेन रोड पर कांग्रेस का कार्यालय था। जहां वह वन्दे मातरम से लेकर चरखा गीत तक गाया करते थे। क्रांतिकारी साहित्य बेचने के आरोप में सन् 1932 में बुद्धन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। इल्ज़ाम यह लगाया गया कि बुद्धन सिंह ने स्थानीय डाकघर और कोयल नदी पर रेलवे पुल को बम से उड़ाने का प्रयास किया था। यह बात सच थी कि बुद्धन सिंह ने कुछ साथियों के साथ उक्त पुल को बम से उड़ाने की योजना बनायी थी। मगर वह सफल नहीं हो सके थे। दो वर्ष का कारावास उन्होंने रांची, हजारीबाग, भागलपुर और दानापुर जेल में व्यतीत किया। जेल में वह बिहार के कई दिग्गज नेताओं जैसे-जय प्रकाश नारायण, डा राजेन्द्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह, कृष्ण वल्लभ सहाय के संपर्क में आये। प्रसिद्ध गांधीवादी साहित्यकार आचार्य रामवृक्ष बेनीपुरी जेल में उन्हें शिक्षक की तरह पढ़ाते थे। इन नेताओं के साहचर्य में बुद्धन सिंह का मनोबल बढ़ता गया। वह अपने घर-परिवार से बेखबर देश की आजादी के दीवाने हो गए।
इधर उनके घर की कुर्की जब्ती हो गई थी। फलतः उनकी बूढ़ी मां और पत्नी बेघर हो गयीं। दो साल की जेल काटकर बुद्धन सिंह घर लौटे तो परिवार की स्थिति संभालने के लिए उन्होंने राय साहब बलदेव साहू के यहां ड्राइवर की नौकरी स्वीकार की। राय साहब ने उनके परिवार की तंग हालत में काफी मदद की। पारिवारिक स्थिति में सुधार हुआ। बुद्धन सिंह फिर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए। सन् 1940 के रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन में बुद्धन सिंह, मधुसूदन लाल अग्रवाल, शिव शंकर राम आर्य, छड्डु प्रसाद केशरी, मथुरा प्रसाद मोदी जैसे साथियों के साथ गए थे। रामगढ़ रेलवे स्टेशन पर गांधीजी, राजेन्द्र बाबू, मौलाना आजाद का भव्य स्वागत हुआ था। वहां से पंडाल तक कार ले जाने के बारे में राजेन्द्र बाबू ने एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा कि वही व्यक्ति मेरी गाड़ी चलाएगा जो नियमित खादीधारी हो और अकेले बुद्धन सिंह ही ऐसे कार चालक निकले। उन्होंने गर्व के साथ राजेन्द्र बाबू की कार को अधिवेशन स्थल तक पहुंचाया।
सन् 1953 में जब राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद लोहरदगा आये थे तो वह मेन रोड पर अपनी कार रुकवाकर बुद्धन सिंह से मिले थे। आज उनके परिवार में तीन पुत्र कृष्णा सिंह, गोपाल सिंह और ओम प्रकाश सिंह हैं। पांच पोता- विजय सिंह, जितेन्द्र सिंह, निलय सिंह, मृणाल सिंह, शशांक शेखर सिंह हैं। पोती अनिता सिंह, रंजीता सिंह हैं। वही दो परपोता ऋषभ सिंह, ऋत्विक सिंह व दो परपोती गुनगुन सिंह व नाव्या सिंह है।
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