आलू फसल में झूलसा रोग किसानों के लिए बनी चिंता, डॉ. भूपिंदर ने बचाव पर दी जानकारी
जयनगर में आलू फसल में झूलसा रोग के मामलों में वृद्धि हो रही है, जो किसानों के लिए चिंता का विषय है। यह रोग फाइटोफ्थोर इंफेस्टेंस नामक फंगस के कारण होता है। कृषि विशेषज्ञ डॉ. भूपिंदर सिंह ने किसानों को...
जयनगर निज प्रतिनिधि आलू फसल में झूलसा रोग के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है, जो किसानों के लिए चिंता का कारण बन गया है। यह रोग फाइटोफ्थोर इंफेस्टेंस नामक फंगस के कारण होता है, जो आलू के पौधों को तेजी से नष्ट कर देता है, और यदि समय रहते इसका नियंत्रण नहीं किया जाए तो भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। कृषि विशेषज्ञ डॉ. भूपिंदर सिंह ने इस रोग के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को महत्वपूर्ण उपायों के बारे में जागरूक किया।
क्या है झुलसा रोग के लक्षण
झूलसा रोग के लक्षण आलू के पत्तों पर काले या भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, और धीरे-धीरे यह पूरे पौधे को नष्ट कर सकते हैं। तने और कंद भी इस संक्रमण से प्रभावित होते हैं, जिससे उपज में भारी कमी हो जाती है। अगर इस रोग का सही समय पर इलाज न किया जाए, तो फसल पूरी तरह से बर्बाद हो सकती है।
डॉ. भूपिंदर सिंह के सुझाव
रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन: डॉ. सिंह ने कोडरमा जिले के किसानों को सलाह दी कि वे आलू की उन किस्मों का चयन करें जो झुलसा रोग से प्रतिरोधी हों। ऐसी किस्में फसल को बेहतर सुरक्षा प्रदान करती हैं और रोग के जोखिम को कम करती हैं। फंगीसाइड्स का उपयोग: डॉ. सिंह ने यह बताया कि आलू की फसल में झुलसा के शुरुआती लक्षण दिखने पर तुरंत फंगीसाइड्स का छिड़काव करना चाहिए। यह उपाय रोग के फैलाव को रोकने में मदद करता है, लेकिन फंगीसाइड्स का अत्यधिक उपयोग न करें, ताकि पौधों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित न हो जाए।
फसल चक्रीकरण: डॉ. सिंह ने फसल चक्रीकरण की सलाह दी, जिससे झुलसा रोग के संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। अन्य फसलें जैसे मक्का, तिल, और दालों का चयन करने से इस रोग का प्रसार कम होगा, क्योंकि झुलसा आलू और टमाटर जैसी सोलानेसिया परिवार की फसलों को प्रभावित करता है।
पानी की निकासी का ध्यान रखें: कोडरमा जैसे क्षेत्रों में जहां बारिश के बाद मिट्टी में नमी रहती है, डॉ. सिंह ने जल निकासी की व्यवस्था को बेहतर बनाने पर जोर दिया। खेतों में पानी का जमाव झुलसा रोग के संक्रमण को बढ़ाता है, इसलिए सही जल निकासी की व्यवस्था जरूरी है।
पौधों की सफाई और देखभाल: डॉ. सिंह ने किसानों को सलाह दी कि वे संक्रमित पौधों को समय पर निकालकर खेतों से हटा दें, ताकि संक्रमण अन्य पौधों तक न पहुंचे। नियमित रूप से पौधों की जांच करते रहें और संदिग्ध लक्षण दिखने पर तुरंत उपाय करें।
आलू के कंदों की सही स्टोरेज: फसल के बाद आलू के कंदों को सही तरीके से स्टोर करना भी जरूरी है। अच्छे भंडारण उपायों से बैक्टीरियल और फंगस संक्रमण को रोका जा सकता है।
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