गांव-गांव में सोड़े के बहाने पकेगी जीत-हार की खिचड़ी
चिकन बिरयानी की तरह सड़े कोल्हान के आदिवासियों की पारंपरिक डिश है, जिसका चुनावी महापर्व में खास महत्व है। मतदान के दिन राजनीतिक पार्टियां ग्रामीणों को सड़े का भोज देती हैं। खाने की भीड़ से चुनावी...
चिकन और बिरयानी तो सभी ने खूब चखा होगा, लेकिन सोड़े का स्वाद शायद अब तक न चखा हो। कोल्हान के आदिवासियों के पारंपरिक व्यंजनों में से एक सोड़े का वैसे तो पूजा-पाठ जैसे विशेष अवसरों पर खास महत्व होता है, लेकिन चुनावी महापर्व में इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। लोकतंत्र के इस पर्व में कोल्हान के गांवों में इसी सोड़े के बहाने प्रत्याशियों के जीत-हार की खिचड़ी पकाई जाती है। देखने में सोड़े बिरयानी जैसी ही लगती है। चिकन बिरयानी की तरह ही यह चावल व चिकन से बनाई जाती है। कोल्हान के गांव-गांव में इसे बड़े चाव से खाया जाता है। चुनाव महापर्व में मतदान के दिन बूथ मैनेजमेंट के लिए सोड़े अहम भूमिका निभाती है। इसबार चुनाव में आदिवासी बहुल ग्रामीण इलाकों में बूथ कमेटियों ने अपनी-अपनी पार्टी के हिसाब से सोड़े बनाने का इंतजाम किया है। गांव के सभी लोग मतदान के दिन आमंत्रित किए गए हैं।
राजनीतिक दल ग्रामीणों को देते हैं सोड़े का भोज
मतदान के दिन गांवों के घरों में चूल्हा नहीं जलता। राजनीतिक दलों के सोड़े से पेट पूजा हो जाती है। गांव में अलग-अलग पार्टियों के इस सोड़े भोज में खाने आने वाले ग्रामीणों की भीड़ से ही उस दिन चुनावी परिणाम के रुझान का अनुमान भी लगा लिया जाता है। जिस पार्टी के सोड़े की खपत अधिक हुई, माना जाता है कि उक्त पार्टी के प्रत्याशी के पक्ष में परिणाम जाने की प्रबल संभावना बन जाती है।
मतदान कर लौटने के बाद वोटर पहुंचते हैं भोज में
सरजामदा ग्राम के पूर्व माझी बाबा भुगलू सोरेन बताते हैं कि राजनीतिक पार्टियों की ओर से मतदाताओं के लिए मतदान वाले दिन सोड़े का इंतजाम किया जाता है। गांव में ही किसी के घर में सोड़े बनाने की जिम्मेदारी दे दी जाती है। मुर्गा व चावल समय से पहुंचा दिया जाता है। इसके बाद बूथ कमेटी के सदस्य सोड़े तैयार करा लेते हैं। जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता है, मतदान कर लौटने वाले मतदाता सोड़े खाने पहुंचते जाते हैं। गांव में आम तौर पर दो प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशियों की बूथ कमेटी इसका इंतजाम करती है, ऐसे में जिस पार्टी के यहां अधिक लोग खाने जाते हैं, समझ आ जाता है कि उक्त प्रत्याशी के पक्ष में रुझान ठीक है।
बाहा-सोहराय में जेहारथान में बनाते सोड़े
आदिवासी संथाल समाज के लोगों की पारंपिरक पूजा में सोड़े को भोग के रूप में पूजा स्थल जाहेरथान में खाया जाता है। इस पकवान को संथाल आदिवासियों में पूजा के भोग का दर्जा प्राप्त है। संथालों के सबसे बड़े पर्व बारा एवं सोहराय में जाहेरथान में इसे तैयार किया जाता है। चूंकि इसे संथाल समाज के लोग बड़े चाव से खाते हैं, इसलिए राजनीतिक पार्टियों की ओर से मतदान के दिन इसका इंतजाम किया जा रहा है। कोल्हान संथाल व हो बहुल इलाका है, इसलिए यह पकवान अपना काम कर जाता है।
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