व्यापार में भी संस्कार की सीख दी रतन टाटा ने
रतन टाटा, टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन, 28 दिसंबर को 87वीं जयंती मना रहे हैं। उन्होंने व्यवसाय में नैतिकता, उत्कृष्टता और करुणा का पालन किया। उनकी दूरदर्शी सोच ने टाटा स्टील को वैश्विक नेता बनाया। टाटा...
देश के महान उद्योगपति और टाटा संस के मानद चेयरमैन रहे रतन टाटा की 28 दिसंबर को 87वीं जयंती है। रतन टाटा एक ऐसे उद्योगपति थे, जो व्यापार में भी संस्कार को जीने वाले थे। भारत ने 9 अक्तूबर 2024 को रतन टाटा जैसी शख्सियत को खो दिया। उन्होंने टाटा समूह में जो मूल्य स्थापित किए हैं, उनमें अखंडता, उत्कृष्टता और एकता शामिल हैं। उनके सहयोगी और परिचित उनकी सादगी और आत्मीयता की कहानियां साझा करते हैं। वे दूरदर्शी होने के साथ-साथ बेहद सुलभ और विनम्र भी थे। टाटा समूह को वैश्विक ब्रांड बनाया
दुनिया उन्हें भारतीय उद्योग के महानायक के रूप में याद करती है। उन्होंने टाटा समूह को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित ब्रांड बनाया। उनकी यादें केवल उनके व्यावसायिक कौशल तक सीमित नहीं हैं। उनके सौम्य स्वभाव, अडिग संकल्प और न्याय के प्रति निष्ठा को भी सराहा जाता है। भविष्य को गढ़ने वाले इस महानायक ने हमें सिखाया कि सपने देखना और उन्हें साकार करना संभव है, भले ही वे समय से कहीं आगे क्यों न हों।
प्रतिस्पर्धा में भी करुणा और विनम्रता
रतन टाटा ने दुनिया को पूंजीवाद और धन के नए मायने सिखाए। उन्होंने दिखाया कि करुणा और विनम्रता जैसे गुण, चाहे प्रतिस्पर्धा कितनी ही तीव्र क्यों न हो, हर समय संजोने लायक हैं। जब आधुनिक पूंजीवाद अक्सर शॉर्ट कट और सुविधाजनक रास्तों पर चलने के लिए आलोचना झेलता रहा, तब टाटा नैतिकता और सही आचरण का प्रतीक बनकर खड़े रहे। उन्होंने कभी सुविधा को सत्य और न्याय से ऊपर नहीं रखा। उनके नेतृत्व में 25 साल पहले टाटा कोड ऑफ कंडक्ट की स्थापना हुई, जो न केवल एक दस्तावेज बल्कि नैतिकता का मूल मंत्र बन गया। टाटा स्टील सहित समूह की हर कंपनी इस कोड को मार्गदर्शक मानती है।
समूह को बदलाव और प्रगति की राह पर ले गए
रतन टाटा ने टाटा स्टील को न केवल कठिन समय में मार्गदर्शन दिया, बल्कि उसे बदलाव और प्रगति की राह पर भी अग्रसर किया। उनकी दूरदर्शी सोच ने टाटा स्टील को भारतीय इस्पात निर्माता से वैश्विक धातु और खनन क्षेत्र का लीडर बनाया। दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप में अधिग्रहण के माध्यम से उन्होंने कंपनी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। 2004 में उन्होंने ओडिशा सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके भारत में कंपनी के विस्तार की नींव रखी। यह वही राज्य बना, जिसने आने वाले वर्षों में टाटा स्टील की विकास आकांक्षाओं को साकार किया।
रतन टाटा के प्रति सम्मान
टाटा स्टील के कर्मचारी आज भी उन्हें गहरे सम्मान के साथ याद करते हैं। उन्होंने हमेशा अपने अधिकारियों पर पूरा भरोसा किया। कभी किसी को नीचा नहीं दिखाया। वे प्रेरक प्रकाशस्तंभ थे, जिन्होंने अनगिनत लोगों को मानवता के उत्थान के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता से प्रेरित किया। टाटा भारतीयों के लिए सिर्फ उद्योगपति नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माता थे, जिन्होंने हमेशा देशहित को व्यापारिक लाभ से ऊपर रखा। वे कॉरपोरेट परोपकार के प्रतीक थे, जिन्होंने दिखाया कि उद्योग समाज की भलाई और बदलाव का माध्यम बन सकता है। उनकी संवेदनशीलता और दूरदर्शिता ने उन्हें आमलोगों से जोड़ा।
ऐसे जीता लोगों का दिल
उन्होंने एक दिन उन्होंने बारिश में चार सदस्यीय परिवार को दोपहिया वाहन पर भींगते देखा। इस दृश्य ने उन्हें व्यथित कर दिया और उन्होंने आम आदमी के लिए किफायती कार बनाने का सपना देखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के दौरान ताज होटल के बाहर खड़े होकर शांत, दृढ़ और विचारशील रतन टाटा न केवल संकट के समय में साहस का प्रतीक बने, बल्कि सहनशीलता और करुणा का वास्तविक उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके लिए कारोबार और सामाजिक जिम्मेदारी दोनों एक समान प्राथमिकता थी। उनकी सोच ने साबित किया कि सच्चे नेतृत्व का अर्थ केवल निर्णय लेना नहीं, बल्कि समाज के भले के लिए अडिग खड़ा रहना भी है, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों। टाटा ने हमेशा सुनिश्चित किया कि उनका हर कदम नैतिकता, मानवता और समाज कल्याण के साथ जुड़ा रहे।
गर्व के साथ पूरा समूह बना रहा जयंती
टाटा स्टील गर्व के साथ अपने प्रिय और आदर्श व्यक्तित्व की जयंती मना रही है। उनके योगदान को सम्मानित करते हुए टाटा स्टील अपने द्वारा किए गए कार्यों और उनके द्वारा स्थापित मूल्यों को सहेजने की अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट करती है। यह अवसर सिर्फ उनके महान कार्यों को श्रद्धांजलि देना नहीं है, बल्कि यह वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा भी है। कंपनी के कर्मचारी टाटा के आदर्शों को अपनाते हुए एक समृद्ध, समान और न्यायपूर्ण दुनिया की दिशा में मिलकर कदम बढ़ाने का संकल्प लेंगे।
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