कोल्हान ने सौंपी सत्ता की चाबी, अब मंत्री पद की दावेदारी
कोल्हान ने हेमंत सोरेन को सत्ता सौंपने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब मंत्री पद के लिए दावेदारी हो रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों का दावा है कि उन्हें मंत्री पद मिलेगा। सोनाराम सिंकू की...
कोल्हान ने इस बार विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के हाथ में सत्ता की चाबी सौंपने में अहम भूमिका निभाई है। अब यहां मंत्री पद के लिए दावेदारी की जाएगी। यहां इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा। पुराने विधायकों ने फिर से जीत का परचम लहराया। पुरानी परंपरा के अनुसार कोल्हान को सूबे की सत्ता में तीन मंत्री का कोटा मिलता रहा है। इस बार भी ऐसी ही उम्मीद विधायक कर रहे हैं। दो मंत्री पद पर रामदास सोरेन और दीपक बिरुआ का आना तय माना जा रहा है। चूंकि पिछली सरकार में कोल्हान से झामुमो कोटे से इन्हीं को मंत्री बनाया गया था। इनके अलावा कांग्रेस के कोटे से एक को मंत्री बनाया गया था। इस बार कांग्रेस कोटे के मंत्री रहे बन्ना गुप्ता चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों को उम्मीद है कि कोटे का तीसरा मंत्री पद भी झामुमो के विधायक को ही मिलेगा। वहीं, राजनीतिक जानकार मानकर चल रहे हैं कि कोल्हान में इंडिया गठबंधन के एकमात्र कांग्रेस विधायक सोनाराम सिंकू पर हेमंत सोरेन मेहरबान हो सकते हैं। सोनाराम सिंकू की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है, क्योंकि वे कोल्हान से कांग्रेस के एकमात्र विधायक हैं। इसी के साथ पश्चिम सिंहभूम जिले के हो जनजाति समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। उन्हें मंत्री बनाकर हेमंत सोरेन कोल्हान के हो समाज को बड़ा संदेश दे सकते हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में गैर हो होने के बावजूद जोबा मांझी को सिंहभूम सीट पर जीत दिलाई। वहीं, इस बार विधानसभा चुनाव में भी गीता कोड़ा जैसी प्रत्याशी को हराकर सोनाराम सिंकू को विधानसभा भेजा। दूसरी तरफ, झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक के समर्थक भी अपने स्तर पर मंत्री पद पाने की कोशिश में जुट गए हैं। बताया जाता है कि जुगसलाई के विधायक मंगल कालिंदी और बहरागोड़ा के विधायक समीर मोहंती के नाम पर भी रायशुमारी की जा रही है। हालांकि, अंतिम निर्णय हेमंत सोरेन के स्तर पर लिया जाना है। 28 नवंबर से पहले इसे लेकर कुछ-कुछ तस्वीर साफ होने की उम्मीद जताई जा रही है।
मंगल कालिंदी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट से विधायक बनके विधानसभा पहुंचे हैं। ऐसे में मंत्री पद को लेकर उनकी दावेदारी को भी कमजोर नहीं माना जा सकता। उधर, समीर महंती भी चंपाई के पार्टी छोड़ने के बाद पार्टी के भीतर मजबूत स्थिति में बने हुए हैं। इन तीन विधायकों के समर्थकों को उम्मीद है कि बन्ना गुप्ता की हार के बाद खाली मंत्री पद पर उनके नेता को मौका मिल सकता है।
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