Hindi Newsझारखंड न्यूज़जमशेदपुरHigh Voter Turnout in Kolhan Political Implications for 2024 Elections

मतदान के बाद सियासी हवा का रुख भांपने में लगे रहे आम और खास

कोल्हान की 14 में से 12 विधानसभा सीटों पर इस बार मतदाताओं ने उत्साह दिखाया। खरसावां सीट पर 78.71 फीसदी मतदान हुआ, जबकि जमशेदपुर पश्चिमी में 56.53 फीसदी। राजनीतिक दल इस बढ़े मतदान प्रतिशत के मायने...

Newswrap हिन्दुस्तान, जमशेदपुरThu, 14 Nov 2024 05:47 PM
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कोल्हान की 14 में से 12 विधानसभा सीटों पर इस बार मतदाताओं ने खासा उत्साह दिखाया। ये 12 सीटें ऐसी हैं, जिनपर वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले अधिक मतदान हुआ है। अधिक मतदान के अपने सियासी मायने हैं। इसलिए राजनीतिक दल हिसाब कर रहे हैं। पूरे कोल्हान में सर्वाधिक वोटिंग 78.71 फीसदी खरसावां विधानसभा सीट पर हुई है, जबकि सबसे कम मतदान 56.53 फीसदी मतदान जमशेदपुर पश्चिमी विस क्षेत्र में हुआ है। हालांकि खरसावां में भी पिछले विस चुनाव के मुकाबले अधिक मतदान हुआ है। इसी तरह जमशेदपुर पश्चिमी में भी पिछले विस चुनाव के मुकाबले मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई है। सिर्फ दो ही विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां 2019 के चुनाव के मुकाबले मतदान प्रतिशत कम रहा। इनमें एक मझगांव है तो दूसरा जमशेदपुर पूर्वी विस सीट हैं। विधानसभावार बढ़ा वोटिंग प्रतिशत एक ओर जहां इंडिया गठबंधन के लोगों को कोल्हान का किला बचा लेने का आधार लग रहा है तो वहीं एनडीए को बढ़ा वोट प्रतिशत कोल्हान में इंडिया के साथ खेला होने का दावा करने का दम दे रहा है। हालांकि अलग-अलग विधानसभा सीटों पर इसके अलग मायने हैं। राजनीतिक पंडित दावा करते हैं कि बढ़ा मतदान प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में कहीं न कहीं एनडीए के लिए लाभकारी साबित होगा। हालांकि यह जीत-हार के फैसले को तय कर पाएगा या नहीं, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि मत प्रतिशत पांच-छह प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ा है।

बढ़े मतदान प्रतिशत के सियासी मायने, जोड़-घटाव में गुजरी शाम

कोल्हान में बुधवार को दिन भर हर आम से खास तक सियासी हवा का रुख भांपने में लगा रहा। किस सीट पर कौन भारी पड़ रहा और किस सीट पर किस सियासी समीकरण का असर पड़ रहा है, इसकी हर जगह चर्चा होती रही।

कोई बूथ मैनेजमेंट में लगी पार्टियों के कार्यकर्ताओं की भीड़ को देख मतदाताओं के मूड का आकलन करता रहा तो कोई मतदाताओं की इलाकावार वोटिंग के हिसाब से जाति आधारित सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर जीत-हार की संभावनाओं को लेकर दावा करता दिखा। चर्चा जमशेदपुर पूर्वी व पश्चिमी से लेकर बहरागोड़ा व मझगांव तक की हुई। चर्चा में लोग वोट प्रतिशत बढ़ने-घटने के अनुरूप कोल्हान की सभी 14 सीटों का जोड़-घटाव करते रहे। सबसे ज्यादा चर्चा सरायकेला सीट की हुई। चंपाई जीतेंगे या गणेश, इसपर बहस दिनभर होती रही। यहां भी 2019 के मुकाबले वोट प्रतिशत बढ़ा है। इसलिए दावा करने वाले कह रहे कि झामुमो में रहते आदित्यपुर का जो वोट पहले चंपाई को नहीं मिलता था, वह इस बार भाजपा में होने के कारण मिलेगा। वहीं, कई लोग यह तर्क देते रहे कि गणेश को झामुमो की पारंपरिक वोट का लाभ तो मिलेगा ही पुराने भाजपाई रहे हैं, इसलिए आदित्यपुर में भी लाभ मिलेगा।

इसी तरह घाटशिला सीट पर रामदास सोरेन और बाबूलाल सोरेन की जंग सियासी गलियारों में चर्चित रही। यहां भी वोटिंग का प्रतिशत बढ़ा है। रामदास को जिताने का दावा करने वाले कहते हैं कि उन्हें पारंपरिक वोट के साथ भाजपा के पॉकेट से भी वोट मिला होगा, क्योंकि भाजपाई बाबूलाल को उम्मीदवार बनाने से नाराज थे। वहीं, बाबूलाल के समर्थक कहते हैं कि युवाओं में बाबूलाल की पकड़ और अंतिम समय में उन्हें लाभ पहुंचा है।

पोटका में भी बढ़े वोट प्रतिशत का अलग गणित है। भाजपा की मीरा मुंडा की जीत को लेकर आश्वस्त होने का दावा करने वाले लोगों ने कहा कि जो भाजपाई मनमाफिक कैंडिडेट न मिलने से पिछले चुनावों में सुस्त थे, वे इस बार मीरा मुंडा के नाम पर वोटिंग करने पहुंचे। वहीं, संजीव सरदार के खिलाफ इस सीट पर एंटी इंकंबेंसी वाले हालात थे, जिसका लाभ मीरा मुंडा को मिला है और वहीं संजीव की जीत सुनिश्चित मानकर चल रहे लोगों का दावा है कि आदिवासी बेल्ट में संजीव को जमकर वोट पड़े हैं। इन सब सीटों के बाद ईचागढ़ सीट पर राजनीतिक जानकार त्रिकोणीय मुकाबला होने का दावा कर रहे हैं। सविता को जिताने वाले दावा कर रहे कि अरविंद और हरेलाल के बीच जंग में झामुमो को लाभ हुआ है। वहीं, अरविंद सिंह के समर्थक दावा करते दिखे कि दो महतो की लड़ाई में निर्दलीय का रास्ता साफ हुआ है। वहीं, हरेलाल समर्थक दावा कर रहे हैं कि झामुमो विधायक के खिलाफ आक्रोश है, इसलिए उन्हें वोट पड़ा है। जबकि जयराम महतो की पार्टी भी यहां खेला कर जाने के दावे कर रही है।

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