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एमजीएम में वेंटिलेटर नहीं, खतरे में बच्चों की जान

कोल्हान के एमजीएम अस्पताल के शिशु रोग विभाग में वेंटिलेटर की कमी से गंभीर स्थिति में बच्चों की जान को खतरा है। गरीब मरीज निजी अस्पतालों का सहारा लेते हैं, जहां इलाज महंगा है। कई बार समय पर वेंटिलेटर न...

Newswrap हिन्दुस्तान, जमशेदपुरSat, 18 Jan 2025 05:55 PM
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कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम के शिशु रोग विभाग में वेंटिलेटर नहीं होने से बच्चों की जान खतरे में पड़ जाती है। यहां आने वाले गरीब मरीजों को गंभीर स्थिति में बच्चों का निजी अस्पतालों में जाकर इलाज कराना पड़ता है। कई बार तो समय पर बच्चों को वेंटिलेटर नहीं मिलने से उनकी मौत हो जाती है। सालों-साल से यही स्थिति है, लेकिन आज तक किसी अधीक्षक, विभागाध्यक्ष ने वेंटिलेटर की उपलब्धता को लेकर कभी कोशिश नहीं की। एमजीएम के शिशु रोग विभाग के सामान्य वार्ड के अलावा नीकू और पीकू वार्ड भी हैं। नीकू एवं पीकू वार्ड गंभीर बच्चों का इलाज के लिए हैं। लेकिन गंभीर बच्चों का इलाज करने में वेंटिलेटर की जरूरत होती है। पहले तो वहां के डॉक्टर अपने प्रयास से बच्चों को बचाने का पूरा प्रयास करते हैं, लेकिन जब बिना वेंटिलेटर के काम नहीं चल सकता है तो उन्हें रिम्स रांची रेफर कर देते हैं। रांची पहुंचने में काफी समय लगता है। उतनी देर तक बच्चे को बिना वेटिंलेटर रखने में जान जाने का डर रहता है। इसलिए कुछ ही लाचार मरीज जो ज्यादा खर्च नहीं कर पाते हैं, वे बच्चे को रिम्स ले जाने का जोखिम उठाते हैं।

वेटिंलेटर का प्रतिदिन का खर्च 7 हजार रुपये

जिन गंभीर बच्चों को एमजीएम से रिम्स या उच्च संस्थान में रेफर कर दिया जाता है, उन्हें ले जाने में खतरा रहता है। ऐसे में अभिभावक जमशेदपुर के ही निजी अस्पतालों में इलाज कराते हैं। लेकिन इन निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर काफी खर्चीला होता है। एक महीने तक के बच्चों को नीकू में भर्ती कराया जाता है, जहां एक दिन का खर्च करीब 7000 हजार रुपये तक आता है। वहीं, एक महीने से लेकर 12 साल तक के मरीजों को आवश्यकता पड़ने पर पीकू में रखा जाता है, जहां 6000 रुपये खर्च आता है। वैसे गरीब मरीज जिनके पास आयुष्मान कार्ड होता है उन्हें तो यह सुविधा मुफ्त में मिल जाती है, लेकिन जिनके पास आयुष्मान कार्ड नहीं होता है उन्हें रोज काफी खर्च करना पड़ता है।

आधा दर्जन से अधिक वेंटिलेटर के जरूरतमंद

सर्दी में बीमार बच्चों की संख्या काफी अधिक है। रोज करीब 7-8 मरीज ऐसे होते हैं, जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत होती है। लेकिन वेंटिलेटर नहीं होने से उन्हें बाहर रेफर कर दिया जाता है। एमजीएम के शिशु रोग विभाग में कई साल पहले एक वेंटिलेटर की सुविधा थी, लेकिन वह भी खराब हो गया। उसे बनाने का काफी प्रयास किया गया, लेकिन उसपर लाखों का खर्च आना है। इसके लिए विभागाध्यक्ष ने जरूरत देखते हुए कई बार अधीक्षक को पत्र के माध्यम से वेंटिलेटर की मांग की, लेकिन आज तक वेंटिलेटर नहीं मिला।

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