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आईसीयू में ऑक्सीजन प्रेशर कम होने से मरीजों की जान सांसत में

कोल्हान के MGM अस्पताल की आईसीयू में ऑक्सीजन प्रेशर कम होने से मरीजों की जान खतरे में है। पाइपलाइन में लीकेज के कारण वेंटिलेटर नहीं चल पा रहे हैं। गरीब मरीजों के लिए मुफ्त वेंटिलेटर की सुविधा उपलब्ध...

Newswrap हिन्दुस्तान, जमशेदपुरThu, 21 Nov 2024 05:58 PM
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कोल्हान के सबसे बड़े अस्पताल एमजीएम की आईसीयू में ऑक्सीजन का प्रेशर कम होने से मरीजों की जान सांसत में है। प्रेशर कम होने का कारण पाइपलाइन में लीकेज बताया जा रहा है। ऐसे में वेंटिलेटर नहीं चलने के कारण गंभीर मरीजों को लाइफ सपोर्ट नहीं मिल पाता है और उनकी जान चली जाती है। पूर्वी सिंहभूम सहित आसपास के जिलों के गरीब और गंभीर मरीजों को मुफ्त इलाज के साथ जीवनदान देने के लिए वर्षों पहले एमजीएम की आईसीयू में वेंटिलेटर की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन वेंटिलेटर नहीं चल पाने से जरूरतमंद मरीजों को लाइफ सपोर्ट नहीं मिल पाता है। वेंटिलेटर की व्यवस्था करने का उद्देश्य था कि निजी अस्पतालों में लाखों खर्च नहीं कर सकने वाले गरीबों को वेंटिलेटर की सुविधा मुफ्त मिल सके। लेकिन दुर्भाग्य है कि कई साल से इस सुविधा का उपयोग नहीं किया गया, क्योंकि मशीन के लिए न्यूनतम निर्धारित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। यानी आईसीयू के लिए करोड़ों रुपये की खरीदी गई दस मशीनें इसके बिना बेकार पड़ी धूल खा रही हैं। सक्षम मरीज निजी अस्पताल जाते हैं या फिर तड़प-तड़पकर जान चली जाती है।

एक विशेषज्ञ ने बताया कि वेंटिलेटर को चलाने के लिए एक न्यूनतम निर्धारित प्रेशर से ऑक्सीजन मिलना आवश्यक होता है। यह प्रेशर 45 से 60 पीएसआई (पाउंड प्रति स्क्वायर इंच) होना चाहिए। 45 पीएसआई से कम होने पर वेंटिलेटर काम नहीं करेगा। उन्होंने बताया कि एमजीएम की आईसीयू के ऑक्सीजन पाइपलाइन का प्रेशर मॉनिटर भी हटा लिया गया है। पाइपलाइन में कहीं न कहीं लीकेज है, जिसके कारण यहां प्रेशर कम दिख रहा है। जबकि अस्पताल में लगे ऑक्सीजन प्लांट से अन्य विभागों के ऑपरेशन थिएटर में ऑक्सीजन ठीक प्रेशर से पहुंचता और वहां उसका उपयोग भी होता है। ऑपरेशन थिएटर में कुछ देर के लिए ऑक्सीजन चाहिए तो सिलेंडर से भी दे दिया जाता है, लेकिन आईसीयू में लंबे समय तक ऑक्सीजन चाहिए। इसलिए वहां पाइपलाइन से ही देना संभव हो पाता है। एक डॉक्टर ने बताया कि पाइपलाइन में लीकेज को अस्पताल प्रशासन आसानी से ठीक करा सकता है, लेकिन ठीक नहीं कराया जा रहा है। इसका नुकसान मरीजों को उठाना पड़ता है।

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