कोल्हान : 87 फीसदी मरीजों की अपनों की जगह दूसरों के खून से बचती है जान
कोल्हान के अस्पतालों में भर्ती मरीजों में से केवल 13 फ़ीसदी को उनके परिजनों द्वारा खून मिलता है, जबकि 87 फ़ीसदी मरीजों की जान स्वैच्छिक रक्तदान से बचाई जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में खून देने को लेकर...
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पूर्वी सिंहभूम सहित कोल्हान के अस्पतालों में भर्ती 13 फ़ीसदी मरीजों को उनके परिजन या दोस्त खून देते हैं। शेष 87 फ़ीसदी मरीजों की जान दूसरों के खून से ही बचती है। एमजीएम, सदर सहित अन्य अस्पतालों में भर्ती मरीजों पर हुए अध्ययन से इसका खुलासा हुआ है। कोल्हान के ग्रामीण इलाकों में आज भी खून देने को लेकर जागरूकता की कमी है। लोगों में भय है कि खून देने से कमजोरी होती है। इस कारण वे अपने परिजनों को भी खून देने से बचते हैं। ऐसी स्थिति में वे वॉलंटरी डोनेशन से खून दिलवाना चाहते हैं। दो दिन पहले एमजीएम में एक मरीज के पति राघवेंद्र पत्नी के लिए खून मांगने प्रशासनिक भवन पहुंचे। जब उन्हें खून के बदले खून देने को कहा गया तो बहाने बनाने लगे। उनका कहना था कि खून देने से कमजोरी हो जाएगी। वहीं, उनकी मां भी बहू को खून देने के लिए तैयार नहीं हुई। एमजीएम में अधिकतर खून के जरूरतमंद मरीजों के साथ यही स्थिति है।
कोल्हान के सबसे बड़े अस्पताल एमजीएम और राज्य के सबसे बड़े ब्लड बैंक में एक साल में कुल 65603 यूनिट रक्त संग्रहित हुआ है। इनमें से मात्र 12.13 फीसदी मरीजों के परिजन या परिचितों ने खून दिया है। शेष मरीजों की जान 87.86 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान करने वालों ने बचाई है। एमजीएम ब्लड बैंक के प्रमुख डॉ. वीबीके चौधरी ने कहा कि मरीजों की जान बचाना उद्देश्य है। जरूरतमंदों को कोई खून देने वाला नहीं रहता है तो स्वैच्छिक रक्तदान से एकत्र हुए बैंक से खून दिया जाता है।
जमशेदपुर ब्लड बैंक में खून की खपत
जमशेदपुर ब्लड बैंक में एकत्रित खून में 20 फीसदी खर्च थैलेसिमिया के मरीजों पर होता है। 15 फीसदी कैंसर के मरीजों, 10 फीसदी डायलिसिस के मरीजों में होता है। शेष अन्य बीमारियों या दुर्घटनाओं में जख्मी मरीजों के लिए किया जाता है। यहां खून की कमी से किसी की जान नहीं जाती। यही कारण है कि कोल्हान ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों से भी मरीज इलाज कराने आते हैं। जमशेदपुर ब्लड बैंक में राज्य के अन्य ब्लड बैंक से कई गुना ज्यादा खून एकत्र है।
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