माफ करना बापू एक अदद चश्मा भी हम पहना न सके
हजारीबाग में महात्मा गांधी की मूर्ति से चश्मा वर्षों से गायब है। लोग जयंती और पुण्यतिथि पर श्रद्धा अर्पित करते हैं, लेकिन चश्मा नहीं है। सेवानिवृत्त शिक्षक ने चश्मा बनवाने की पेशकश की, लेकिन कॉलेज...
हजारीबाग वरीय संवाददाता माफ करना बापू आपको एक अदद चश्मा भी हम पहना न सके। महात्मा गांधी की पहचान में उनका एक गोल चश्मा भी रहा है। संत कोलंबा कॉलेज के पास बापू की मूर्ति में चश्मा वर्षों से गायब है। बिना चश्मे के उनकी प्रतिमा पर लोग जयंती और पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं और फिर चले जाते है। एक दो यहां के सेवानिवृत्त शिक्षक ने चश्मा खुद अपने पैसे से बनवाने की पेशकश की। पर इस पर कॉलेज प्रबंधन का ध्यान नहीं होने से चश्मा नहीं चढ़ पाया है। विदित हो कि हजारीबाग में मोहन दास कर्मचंद गांधी 17 सितंबर 1925 को पहली बार आए थे। तब उन्होंने संतकोलंबा महाविद्यालय के प्रतिष्ठित ह्विटले हॉल मे लोगों को संबोधित किया था। उसके बाद बापू 1934 में चतरा आए थे उस समय चतरा हजारीबाग में ही था। इसके बाद 1940 में रामगढ़ में आयोजित रामगढ़ अधिवेशन में पहुंचे थे। हजारीबाग में कुम्हारटोली में बापू की अस्थियों की समाधि भी है। बापू की एक आदमकद प्रतिमा झील परिसर में कुछ साल पूर्व भी बनायी गयी है। देखा जाए तो महात्मा गांधी से शहर के लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े रहे हैं। विनोबा भावे विश्वविद्यालय के पॉलिटकल विभाग से सेवानिवृत्त हुए डॉ प्रमोद कहते हैं कि यह विडंबना ही है कि हमलोग बापू के आदर्शों को लेकर दंभ जरूर भरते हैं। जबकि लंदन के बंकिघम पैलेस में बापू की प्रतिमा बहुत ही अदब के साथ रखी गयी है। हमें इस संबंध में ध्यान दिया जाएगा।
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