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बोले हजारीबाग: अब और इंतजार नहीं, हॉस्टल जरूरी है सर!

हजारीबाग के सात अल्पसंख्यक संस्थानों में केएन इस्लामिया स्कूल इस मायने में खास है

Newswrap हिन्दुस्तान, हजारीबागTue, 13 May 2025 01:42 AM
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बोले हजारीबाग: अब और इंतजार नहीं, हॉस्टल जरूरी है सर!

हजारीबाग। सात अल्पसंख्यक संस्थानों में केएन इस्लामिया स्कूल इस मायने में खास है की उत्तरी छोटानापुर प्रमंडल यह एक मात्र भाषाई आधार पर उर्दू उच्च विद्यालय है। जिला स्कूल के ठीक सामने 2.72 एकड़ में विस्तृत इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1959 में हुई। स्थापना में रामगढ़ राज्य परिवार के कामाख्या नारायण सिंह और वरिष्ठ राजनेता एचएच रहमान का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिन्दुस्तान के कार्यक्रम बोले हजारीबाग के माध्यम से केएन इस्लामिया स्कूल के शिक्षकों और बच्चों ने अपनी परेशानी रखी। केएन इस्लामिया स्कूल का संचालन एक प्रबंधन कमेटी के द्वारा किया जाता है। अंजुमन फलाहुल मुस्लमिन संस्था के तहत हजारीबाग में तीन विद्यालय का संचालन होता है।यह

उच्च विद्यालय है। इसके बगल में कामाख्या नारायण उर्दू मध्य विद्यालय है। गुरु गोविंद रोड में ऑटो स्टैंड के पास प्राथमिक विद्यालय मदरसा इस्लामिया उर्दू प्राथमिक विद्यालय है। यहां की मुख्य समस्या हॉस्टल का नही होना है। यहां कोडरमा, चतरा, गिरिडीह और हजारीबाग के सुदूरवर्ती प्रखंड के बच्चे पढ़ते हैं। कुछ बच्चे रोज 10-20 किलोमीटर दूर हैं बस या ऑटो से आना-जाना करते हैं। अगर यहां हॉस्टल रहता तो बच्चों की संख्या में वृद्धि होती और रोज आने जाने की परेशानी से बचते। बच्चों को समय पर किताब नही मिल पाती है, जिससे बच्चों का पढ़ाई प्रभावित हो रही है। शिक्षकों ने कहा कि वे कक्षा में जो पढाते हैं, बच्चें घर में पढ़ नही पाते हैं। हमलोग चाहकर भी कुछ नही कर सकते। बच्चों के साथ साथ हमलोग भी विवश हैं। जब सरकार को बच्चों कों पाठ्यपुस्तक देना ही है तो सत्र आरम्भ होने से पहले क्यों नही पुस्तकों की छपाई कर लेती है। गर्मी छुट्टी से लेकर फरवरी तक सात आठ माह का पर्याप्त समय मिल जाता है किताब छपाई का। हर सत्र में समय पर किताब नही मिलने का बात उठता है। बिना किताब के बच्चों को कैसे पढाया जा सकता है। विकसित झारखंड या भारत की कल्पना इस रूप में नही की जा सकती है। बच्चों को समय पर और सभी बच्चों को वजीफ़ा नही मिलता है। बच्चे और उनके वालिद बार इस बाबत दरियाफ्त करते हैं। हुकूमत के हिस्से का ये काम है इसलिए कोई माकूल जवाब भी नही दे पाते। प्रयोगशाला तो है पर स्थिति अच्छी नही है। आज के दौर के हिसाब से नही है। अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में जैसा प्रयोगशाला है वैसी सुविधा होनी चाहिए। शिक्षकों की स्थिति ठीक है कुछ विषय के ही शिक्षक नही है। वे हाल ही में सेवानिवृत्त हुए। विद्यालय प्रबंधन कमेटी को इस बारे में बता दिया गया है। हमारे विद्यालय में शिक्षकोंं की नियुक्ति एक चयन कमेटी द्वारा खुली प्रतियोगिता और बेहद पारदर्शिता से होती है। अंतिम रूप से प्रतियोगिता से चयनित उम्मीवारों की सूची जिला शिक्षा अधीक्षक के माध्यम से राज्य सरकार को सौंप दिया जाता है। शिक्षकों को राज्य के सरकारी शिक्षकों के समान वेतन मिलता है। पर नियमित नही मिलता है। कभी कुछ माह का इकट्ठा मिलता है। विद्यालय के आधारभूत संरचना के विकास के लिए कोई फंड नही मिलता है। भवन नई तो नही है पर अभी तक ठीक ठाक है। जमीन की कमी नही है इसलिए बच्चों के खेलने के लिए मैदान है। पर खेल के समान का कमी है। इस उर्दू उच्च विद्यालय के चाहरदीवारी का निर्माण भाजपा के भूतपूर्व सासंद महावीर लाल विश्वकर्मा ने कराया था। आज दौर में इस साम्प्रदायिक माहौल में शायद ही ऐसा देखने को मिले। पूर्व सांसद भुवनेश्वर मेहता ने यहां विज्ञान का कक्ष बनवाया। सीमित संसाधनों के बावजूद यहां से एक से एक छात्र निकले जो देश दुनिया के बड़े पदों और संस्थानों में है। सैयद जुबेर अहमद बीबीसी लंदन में पत्रकार रहे हैं। सैयद जफर इस्लाम राज्यसभा सदस्य रहे हैं। झारखंड लोकसेवा आयोग के सदस्य जमाल अहमद भी यहीं से पढ़े हैं। हालांकि अफसोस की बात है कि इस विद्यालय में ऐसा कोई रेकॉर्ड नही है कि पूर्व छात्रों की जानकारी हो सके। इस विद्यालय के प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष हमेशा राजपरिवार से ही होते हैं। सचिव समाज में सम्मानित व्यक्ति होते हैं। आज इसके प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष अधिराज नारायण सिंह हैं और सचिव अनवर मल्लिक हैं। सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। स्कूल में हॉस्टल की सुविधा नहीं होने छात्र बेहाल हजारीबाग हाई स्कूल में हॉस्टल की सुविधा नहीं है जबकि कई छात्र दूर-दराज़ से आते हैं। रोजाना लंबी दूरी तय कर पढ़ाई करना बच्चों के लिए चुनौतीपूर्ण है। विद्यालय भवन पुराना है, हालांकि अब भी उपयोगी है, लेकिन आधारभूत संरचना के विकास के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती। खेल का मैदान तो है लेकिन खेल सामग्री की कमी है। प्रयोगशाला की हालत भी जर्जर है, जिससे व्यावहारिक शिक्षा बाधित होती है। यदि हॉस्टल, लैब और खेल संसाधन मुहैया हो जाएं, तो छात्रों को अधिक सुविधाजनक और प्रभावी शिक्षा मिल सकती है। किताबें नहीं मिलने से हो रही अधिक परेशानी विद्यालय में सबसे बड़ी समस्या पाठ्यपुस्तकों की देरी से आपूर्ति है। सत्र शुरू होने के महीनों बाद तक किताबें नहीं मिलतीं, जिससे छात्रों की पढ़ाई गंभीर रूप से प्रभावित होती है। वे घर पर पाठ को दोहरा नहीं पाते। इसके अलावा, कुछ विषयों के शिक्षक हाल ही में सेवानिवृत्त हो गए हैं, जिनकी जगह अब तक नहीं भरी गई है। विज्ञान प्रयोगशाला में आधुनिक उपकरणों का अभाव है। यदि सरकार समय पर किताबें और विषयवार शिक्षक उपलब्ध कराए, तो शैक्षणिक गुणवत्ता में बड़ा सुधार हो सकता है। हमारे विद्यालय में शिक्षकोंं की नियुक्ति एक चयन कमेटी द्वारा खुली प्रतियोगिता और बेहद पारदर्शिता से होती है। शिक्षकों को नियमित वेतन नहीं विद्यालय के शिक्षकों को राज्य सरकार की मान्यता प्राप्त वेतनमान तो मिलता है, लेकिन वह नियमित नहीं होता। कई बार महीनों तक वेतन नहीं मिलता, जिससे वे आर्थिक रूप से परेशान रहते हैं। छात्रों को भी समय पर वजीफ़ा नहीं मिल पाता है। कई बार पूरा सत्र गुजर जाता है और छात्र व अभिभावक शिकायत करते रहते हैं, लेकिन उन्हें कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिलता। सरकारी प्रक्रिया की सुस्ती और निधियों की अनियमितता विद्यालय के शैक्षणिक संचालन को कमजोर बनाती है और छात्र-शिक्षक दोनों को हतोत्साहित करती है। इसके अलावा हर सत्र में समय पर किताब नही मिलने का बात उठता है। बिना किताब के बच्चों को कैसे पढाया जा सकता है। इसका लाभ सभी को मिलेगा। विद्यालय में तकनीकी सुविधाएं नहीं विद्यालय में तकनीकी सुविधाओं जैसे स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब या इंटरनेट का अभाव है, जो आज के समय की आवश्यकता है। पूर्व छात्रों का कोई रेकॉर्ड नहीं है, जबकि कई पूर्व छात्र देश-विदेश में प्रतिष्ठित पदों पर हैं। लड़कियों के लिए अलग सुविधाओं की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। विद्यालय का प्रबंधन कमेटी पारदर्शी तरीके से शिक्षकों की नियुक्ति करता है, लेकिन संसाधनों की कमी के चलते वह भी सीमित हो जाता है। सरकार यदि इस संस्थान को सहयोग दे, तो यह जिले का सर्वोत्तम अल्पसंख्यक विद्यालय बन सकता है। राज परिवार आरम्भ से ही जमीन,मान्यता हर रूप में विद्यालय के संचालन के लिए प्रतिबद्ध रहा है। भविष्य में हमारे परिवार का इस संस्थान के साथ सहयोगात्मक संबंध बना रहेगा। विद्यालय को हरसंभव मदद किया जाएगा। वैसे भी हमलोगों का उद्देश्य यही है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो। -अधिराज नारायण, अध्यक्ष, विद्यालय प्रबंधन कमेटी, हजारीबाग अल्पसंख्यक संस्थान होने के बाद भी इस संस्थान के बेहतरी में प्रबंधन हर संभव प्रयासरत है। राज्य सरकार भी आधारभूत संरचना के निर्माण में धन की कमी को दूर करने में मदद करें तो बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सकेगी। यहां के बच्चे किसी से कम नहीं हैं। अगर उनको मौका मिला तो वे भी बेहतर कर सकते हैं। -अनवर मल्लिक, सचिव विद्यालय में हॉस्टल की सुविधा नहीं है जबकि दूरदराज़ से आने वाले छात्र यहां पढ़ते हैं। कई किलोमीटर सफर करना पड़ता है। हॉस्टल होता तो राहत मिलती संख्या बढ़ती। - मुंतहा अशरफ सत्र शुरू होने के महीनों बाद तक छात्रों को किताब नहीं मिलती है। इससे पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है। बच्चे घर पर दोहराव नहीं कर पाते, इससे सवाल-जवाब नहीं लिख पाते। -माही परवीन छात्रों को छात्रवृति समय पर नहीं मिलता है। कई बार पूरे सत्र तक पैसे नहीं आते। लेकिन स्कूल कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाता। यह आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की पढ़ाई को प्रभावित करता है। -फलक विद्यालय में प्रयोगशाला है लेकिन उसमें आधुनिक संसाधनों का अभाव है। ज़रूरी उपकरण नहीं हैं और जो हैं, वे पुराने हैं। जिससे उनका व्यावहारिक ज्ञान अधूरा रह जाता है। -मोहम्मद शरीफ विद्यालय के पास खेल मैदान तो है लेकिन खेल सामग्री नहीं है। क्रिकेट, वॉलीबॉल जैसे खेलों के लिए ज़रूरी सामान नहीं मिलते। लेकिन संसाधनों के अभाव में रुचि खत्म हो जाती है। -आरीफ नवी हाल ही में कुछ विषयों के शिक्षक सेवानिवृत्त हो गए हैं। नए शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया में समय लग रहा है। इससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है, गणित और विज्ञान जैसे विषयों में। - फलक परवीन विद्यालय की इमारत पुरानी है, हालांकि अभी भी ठीक स्थिति में है। लेकिन संरचना के विकास के लिए कोई सरकारी फंड नहीं मिलता। संसाधन हों तो यह संस्थान और बेहतर जाएगा। -आयशा गुलजार शिक्षकों को राज्य सरकारी शिक्षक के समान वेतन तो मिलता है लेकिन यह नियमित नहीं होता। कई बार दो-तीन महीने की तनख्वाह एकसाथ दी जाती है। इससे शिक्षकों में असंतोष होता है। -नाजिश अख्तर विद्यालय से निकले कई छात्र ऊंचे पदों पर हैं लेकिन स्कूल के पास उनके नामों का कोई दस्तावेज़ नहीं है। साथ ही साथ यह न सिर्फ गर्व का विषय होता, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी बनता। -अकरम रजा विद्यालय में लड़कियों के लिए विशेष सुविधाएं नहीं हैं। टॉयलेट की हालत भी कई बार खराब होती है। अलग से रूम या परामर्श जैसी सुविधा हो तो वे सहज महसूस करेंगी। प्राथमिकता देनी चाहिए। -आसान मंजर विद्यालय अल्पसंख्यक भाषाई आधार पर विशेष पहचान रखता है, फिर भी सरकारी स्तर पर इसे लगातार किया जाता है। हस्तक्षेप के बिना कोई समाधान नहीं निकलता। -मोजाहिर हुसैन तकनीकी और स्मार्ट सुविधाओं का अभाव आज के डिजिटल युग में विद्यालय में स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब, इंटरनेट आदि की सुविधा नहीं है। तकनीकी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। -मंसूर आलम

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