Mahua Harvesting Boosts Rural Economy in Bagodar महुआ चुनने के लिए जंगली इलाके में पहुंच रहे हैं लोग, Gridih Hindi News - Hindustan
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महुआ चुनने के लिए जंगली इलाके में पहुंच रहे हैं लोग

बगोदर प्रखंड क्षेत्र में महुआ की सुगंध से इलाके की फिजा महक रही है। ग्रामीण रातभर महुआ चुनने में लगे हैं। महुआ का फूल सुखाकर बेचा जाता है, जिससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। महुआ का...

Newswrap हिन्दुस्तान, गिरडीहFri, 4 April 2025 03:58 PM
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महुआ चुनने के लिए जंगली इलाके में पहुंच रहे हैं लोग

बगोदर, प्रतिनिधि। बगोदर प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीणों इलाके की फिजा इन दिनों महुआ की सुगंध से महक रहा है। महुआ चुनने के लिए देर रात से सुबह तक जंगली इलाके में लोगों को देखा जा रहा है। इससे जंगली इलाका भी गुलजार रह रहा है। बता दें कि महुआ के पेड़ से फूल देर रात में ही गिरना शुरू हो जाता है। मौसम अगर गर्म है तब आधी रात से ही महुआ का फूल गिरने लगता है। इसके फूल को ही महुआ कहा जाता है। बता दें कि महुआ के फूलों को चुनकर उसे सुखाया जाता है और इसे बेचकर लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। चूंकि महुआ से बिना पूंजी के ग्रामीणों को मुनाफा होता है। वैसे महुआ का सूखा फूल देशी शराब बनाने में ज्यादातर उपयोग किया जाता है। बताया जाता है महुआ की सबसे बड़ा मंडी ओडिशा और बंगाल है। बताया जाता है कि महुआ को सुखाकर किसानों के द्वारा उसे व्यवसायियों के पास बेचा जाता है और व्यवसायियों के द्वारा महुआ को दूसरे राज्य की मंडियों में भेजा जाता है। वैसे महुआ के फूलों को उबालकर एवं सूखा महुआ के फूल को सेंककर खाया भी जाता है। महुआ के फूल गिरना बंद हो जाता है तब उससे फल निकलता है। उसके बाद फल को सुखाकर उससे तेल निकाला जाता है। एक अनुमान के मुताबिक बगोदर प्रखंड क्षेत्र में 25 लाख से भी अधिक महुआ का उत्पादन होता है। चूंकि महुआ अब महंगा भी हो गया है। इलाके में हजारों की संख्या में महुआ का पेड़ है। एक- एक पेड़ से 50 किलो तक (सूखा महुआ) निकलता है। इसका उत्पादन मौसम पर भी निर्भर करता है। लगभग डेढ़ महीने तक महुआ का मौसम रहता है। मार्च महीने के दूसरे सप्ताह के बाद से महुआ गिरना शुरू होता है और अप्रैल तक गिरता है। इस बीच अगर मौसम ठीक रहा तब इसका उत्पादन बेहतर होता है। बताया जाता है कि महुआ से शराब के अलावा खाने की भी वस्तुएं बनाई जाती है। हालांकि जानकारी के अभाव में खाने की वस्तुएं बनाने की बजाय ग्रामीणों के द्वारा इसे सीधे व्यवसायियों के पास बेच दिया जाता है और फिर वही व्यवसायी ऊंची दामों में इसे मंडियों में बेचा करते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि महुआ में कभी भी घाटे का सौदा नहीं होता है। चूंकि इसमें पूंजी नहीं लगती है। महुआ चुनने के लिए सिर्फ समय और मेहनत लगती है।

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