स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकीय सुविधाओं का टोटा
जमुआ के स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकीय सुविधाओं की कमी है। 1980 में स्थापित रेफरल अस्पताल का कार्य 1990 में पूरा हुआ, लेकिन आज तक यहां चिकित्सा कर्मियों की कमी बनी हुई है। नया भवन तैयार है, लेकिन...
जमुआ। जमुआ के स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकीय सुविधाओं का टोटा है। जमुआ के स्वास्थ्य विभाग ने आलीशान भवन का निर्माण तो करा लिया पर आमजनों के स्वास्थ्य की समुचित देखभाल की चिंता विभाग को नहीं है। जाहिर है कि जमुआ के लिए स्वास्थ्य विभाग ऊंची दुकान, फीकी पकवान का पर्याय बनकर रह गया है। बता दें कि जमुआ क्षेत्र के नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 1980 में रेफरल अस्पताल की आधारशिला एकीकृत बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे और स्वास्थ्य मंत्री बंदी शंकर सिंह ने रखी थी। मंद गति से बनते-बनते 1990 में अस्पताल का निर्माण कार्य पूरा हुआ। पूर्व में जमुआ में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ही संचालित था। रेफरल अस्पताल का उदघाटन अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2004 में किया गया। 36 बेड के रेफरल अस्पताल के लिए चिकित्सको एवं चिकित्साकर्मियों की कई पद सृजित किए गए। रेफरल अस्पताल की सुविधा स्वास्थ्य विभाग उपलब्ध नहीं करा पाया। फलत: वर्ष 2010 में इसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तब्दील कर दिया गया। इस स्वास्थय केंद्र में अब तक बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है। फिलवक्त इस अस्पताल में कोई चिकित्सक नहीं है। बिरनी प्रखंड के चिकित्सक को जमुआ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। बताया जाता है कि यहां तैनात नर्सों के भरोसे ही केंद्र का संचालन होता है। ऊपर से तुर्रा यह है कि करोड़ों की लागत से केंद्र के लिए एक और आलीशान भवन बनकर तैयार है। ठीकेदार ने विभाग को नया भवन बनाकर हैंड ओवर भी कर दिया है। बावजूद इसके पुराने भवन में ही अस्पताल का संचालन हो रहा है। इस बाबत प्रभारी चिकित्सक कुलदीप तिर्की ने बताया कि जमुआ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक अथवा आवश्यकता के अनुसार चिकित्सा कर्मी क्यों नहीं हैं। इस बात का जवाब वे नहीं दे सकते हैं। रही बात नए भवन में शिफ्ट करने की तो यह सांसद और स्थानीय विधायक के ऊपर निर्भर है। वे जब समय देंगे नए भवन का उदघाटन करा लिया जाएगा।
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