महिलाओं ने न सिर्फ अर्थी को कंधा दिया, मुखाग्नि भी दी
रामचंद्रपुर सबर बस्ती में जुंआ सबर का निधन होने पर उनकी बेटी और पत्नी ने अर्थी को कंधा दिया और अंतिम संस्कार किया। यह घटना पुरुष प्रधान समाज में एक उदाहरण है कि बेटा-बेटी समान होते हैं। गांव के पुरुष...
कालचित्ति पंचायत के रामचन्द्रपुर सबर बस्ती के रहने वाले जुंआ सबर का निधन 40 वर्ष में ही हो गया। अंतिम यात्रा में उनकी अर्थी को बेटी, पत्नी और गांव की अन्य औरतों ने कंधा दिया। वे शव को लेकर श्मशान घाट पहुंचे, जहां उनकी 14 वर्षीय पुत्री ने मुखाग्नि दी। यह कोई पहला मामला नहीं है, जब महिलाएं अर्थी को कंधा दे रही हैं। रामचंद्रपुर सबर बस्ती की बेटियों ने पुरानी मान्यता को तोड़ते हुए पिता की अर्थी को तोड़ते हुए पिता की अर्थी को न केवल कंधा दिया, बल्कि श्मशान तक जाकर मुखाग्नि भी दी और अंतिम संस्कार भी किया। रूंधे गले और बहते आंसुओं के बीच पुरुष प्रधान समाज में बेटियों और महिलाओं ने एक उदाहरण पेश कर बता दिया कि बेटा-बेटी समान होते हैं।
हालांकि इस घटना के गांव में पलायन का दर्द भी मौजूं है। दीगर बात यह है कि रोजी-रोजगार के लिए गांव के तमाम पुरुष पलायन कर चुके हैं। वह भी तमिलनाडु और केरल जैसे सुदूरवर्ती राज्य। जहां से जरूरत पड़ने पर तत्काल पहुंच पाना संभव नहीं है। ऐसे में निधन जैसी घटना होने पर गांव की महिलाओं को समस्या से दो-चार होना ही पड़ता है।
ग्रामीणों का कहना है कि राज्य सरकारें हर बार चुनाव के वक्त रोजगार की घोषणा करती हैं। लेकिन उसे पूरा करना जरूरी नहीं समझती। लिहाजा घर-परिवार चलाने के लिए झारखंड के युवा लंबे समय से पलायन का दंश झेलने को विवश हैं। वे अपना घर-द्वार छोड़कर दूसरे राज्य चले जाते हैं। और घर में रहने वाली महिलाएं और युवतियां मजबूरन घर का बोझ उठाने को विवश हैं। नतीजा बस्ती में किसी के मरने पर पुरुषों के अभाव में महिलाओं को खुद दाह-संस्कार करना पड़ रहा है। गुरुवार को रामचन्द्रपुर सबर बस्ती में भी ऐसी घटना देखने को मिली। इस बस्ती में 28 सबर परिवार रहते हैं, यहां लगभग 80 से 85 लोग रहते हैं। बस्ती के लगभग 20 युवक और अधेड़ कमाने के लिए तमीलनाडु गये हैं। पुरुष के नाम पर बस्ती में मात्र एक नाबालिग और एक युवक हैं। वह भी इन दिनों दूसरे जगह रिश्तेदार के पास गये थे। बाकी यहां महिला हैं या फिर छोटी-छोटी बच्चियां। बुधवार की देर रात जुंआ सबर की मौत हो गयी। इसके बाद अंतिम संस्कार कैसे किया जाए, इसको लेकर परेशानी खड़ी हो गई। इसके बाद महिलाओं ने बैठक कर स्वयं निर्णय लिया कि महिलाएं ही इसका दाह संस्कार करेंगी। इसके बाद कुछ महिलाएं शव को ले जाने के लिए अर्थी बनाने लगे तो कुछ महिलाएं घर से दूर जाकर गड्डा खोदने लगे। अर्थी और गड्ढा तैयार होने के बाद महिलाएं और युवती जुंआ सबर के शव को स्वंय कंधा देकर श्मशान तक ले गये। बेटी ने स्वयं अंतिम संस्कार भी किया। बता दें, जुंआ सबर का एक पुत्र श्यामल सबर (17) रोजगार के लिए तमिलनाडु गया हुआ है। उसकी पहली पत्नी की मौत हो चुकी है। दूसरी पत्नी गुलापी सबर को एक पुत्र 10 वर्ष का है। महिलाओं के इस साहसिक भरे निर्णय की चहुंओर तारीफ हो रही है।
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