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नुआग्राम में मकर कीर्तन करने की परंपरा आज भी जीवित है

पौष संक्रांति के दिन भक्त भगीरथ ने माँ गंगा को सागर वंश को मुक्ति दिलाने के लिए लाए थे। इस दिन गंगा स्नान का महत्व है। गाँव के लोग तालाब में स्नान कर नए वस्त्र पहनते हैं और मकर संकीर्तन करते हैं।...

Newswrap हिन्दुस्तान, घाटशिलाTue, 14 Jan 2025 08:37 PM
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जैसा कि मान्यता है पौष संक्रांति के दिन भक्त भगीरथ ने माँ गंगा को मृत्युलोक में तपस्या करके उनके अभिशप्त सागर वंश को मुक्ति दिलाने के लिए गंगा सागर के कपिल मुनि के आश्रम में लाए थे, इसलिए माँ गंगा का और एक नाम भागीरथी भी है। माँ गंगा का स्पर्श पाकर सागर वंश का उद्धार हुआ था, इसलिए पौष संक्रांति में गंगा स्नान करने का महत्व है। सभी लोग गंगा स्नान करने के लिए गंगा नहीं जा पाते हैं इसलिए गाँव के लोग कोई नदी अथवा तालाब में जाकर स्नान करते है, नए वस्त्र पहनते हैं और मकर संकीर्तन गाते हुए घर आते हैं। यह धार्मिक परंपरा आज भी पोटका के नुआग्राम में जीवित हैं। पूर्व की परंपरा का निर्वाह करते हुए ग्रामीण कीर्तन मंडली सुनील कुमार डे के नेतृत्व में गांव के तालाब से मकर कीर्तन करते हुए घरों तक मंगलवार को आये। इस संबंध में श्री डे ने कहा कि 

मकर कीर्तन करने के पीछे यह भी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राधारानी के साथ मकर के दिन मिले। उन्होंने कहा कि कीर्तन मंडली मकर कीर्तन के उपरांत गांव के शिव मंदिर का परिक्रमा करते हुए लक्ष्मी मंदिर में कीर्तन का समापन किया। कीर्तन के पश्चात मकर चावल और तिल लड्ड़ू प्रसाद के रूप में वितरण किया गया। कीर्तन मंडली में शंकर चंद्र गोप, भास्कर चंद्र डे, स्वपन डे, तरुण डे, तपन डे, सरोज कुमार कुंडू, गगन बिहारी डे, प्रशांत डे, शैलेन्द्र प्रामाणिक, प्रदीप डे, अरुण पाल, अर्जुन मुदी, आशीष डे, उत्पल मंडल शामिल थे। 

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