धान की सीधी बोआई में सहायक होगी जलवायु अनुकूल तकनीक
गढ़वा में जलवायु अनुकूल कृषि परियोजना के तहत किसानों को धान की सीधी बुआई की तकनीक की जानकारी दी गई। जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की समस्या बढ़ रही है। इस तकनीक से पानी की खपत में एक तिहाई की कमी आएगी।...

गढ़वा, प्रतिनिधि। जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (निकरा) परियोजना अंतर्गत किसानों को धान की सीधी बुआई की तकनीक के बारे में जानकारी दी गई। बताया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। उससे पेयजल और कृषि के लिए पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। जिले में धान की खेती की तैयारियां शुरू हो चुकी है जो पूरी तरह वर्षा जल पर निर्भर है। किसानों को बताया गया कि जलवायु अनुकूल तकनीक में धान की सीधी बोआई सहायक होगी। किसानों को बताया गया कि भू-जल का स्तर काफी नीचे जाने के कारण सामान्य मोटरों से खेतों की सिंचाई मुश्किल हो रही है।
ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि विशेषज्ञ नवलेश कुमार ने जलवायु अनुकूल तकनीक अपनाने की सलाह दी है। धान की सीधी बुआई ( डायरेक्ट सीडेड राइस) और जीरो टिलेज मशीन का उपयोग करने से पारंपरिक खेती की तुलना में लगभग एक तिहाई पानी की बचत होगी। उन्होंने बताया कि श्रम, ईंधन और लागत में कमी आएगी। पारंपरिक रोपाई वाले खेतों में मीथेन गैस का उत्सर्जन अधिक होता है जो पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है। सीधी बुआई से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी। उसके लिए बलुई दोमट मिट्टी और हल्की ऊंची भूमि उपयुक्त है। जहां वर्षा का पानी एकत्र न हो। किसानों को इस तकनीक के लिए प्रशिक्षण लेना आवश्यक है। कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान डॉ राजीव कुमार ने बताया कि सीधी बुआई दो तरीकों से किया जा सकता है। सूखे खेत मे जीरो टिलेज मशीन से बुआई कर अगले दिन सिंचाई करें। नमी और भरभूरी मिट्टी वाले खेत मे मशीन से बुआई करें जहां तुरंत सिचाई की जरूरत नहीं होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए सुखी बुआई में पेंडिमैथिलीन (3 लीटर प्रति हेक्टेयर साथ नैनो यूरिया 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करें। पारंपरिक धान की खेती में लगभग 4,000 - 5,000 लीटर पानी लगता है जबकि सीधी बुआई में पानी की खपत काफी कम है।
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