शिव का स्वरूप और गृहस्थी साधारण मनुष्यों के लिए अनुकरणीय : डॉ विनोद त्रिपाठी
बासुकीनाथ में आयोजित 9 दिवसीय शिवमहापुराण की कथा में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। कथा व्यास डॉक्टर विनोद त्रिपाठी ने तारकासुर के अत्याचार और भगवान कार्तिकेय के जन्म की कथा सुनाई। उन्होंने भगवान गणेश...
जरमुंडी प्रतिनिधि। बासुकीनाथ के स्थानीय विद्या भवन में आयोजित 9वें दिवसीय शिवमहापुराण की कथा में श्रद्धालुओं की भीड़ निरंतर उमड़ रही है। शिवमहापुराण की कथा सुनकर श्रद्धालु शिवभक्ति में गोते लगा रहे हैं। शिव महापुराण की कथा के पांचवें दिन शुक्रवार को कथा व्यास डॉक्टर विनोद त्रिपाठी ने भक्तों को रुद्र संहिता के चतुर्थ खंड (कुमार खंड की) कथा सुनाई। उन्होंने तारकासुर के अत्याचार से धरती के उद्धार के निमित्त कार्तिकेय का जन्म, संपूर्ण सृष्टि की मंगल कामना हेतु कैलाशपुरी में भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव, त्रिपुरासुर का उद्धार एवं भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन किया। कथा व्यास ने बताया कि कुमार के गंगा से उत्पन्न होने तथा कृतिका आदि छह स्त्रियों के द्वारा उनका पालन, कृतिकाओं की संतुष्टि के लिए कुमार का छह मुख धारण के कारण उनका नाम कार्तिकेय पड़ा। तारकासुर को शिवपुत्र के हाथों मृत्यु का वरदान मिला था। तारकासुर और कुमार कार्तिकेय के बीच भीषण संग्राम हुआ और अंतोगत्वा संसार को तारकासुर के अत्याचार से मुक्ति मिली। उन्होंने बताया कि वैराग्य और योग धर्म का अनुसरण करने वाले महायोगी सदाशिव ने संसार के कल्याण के लिए कार्तिकेय के जन्म हेतु गृहस्थ आश्रम भी अपनाना स्वीकार किया। उन्होंने उनकी अंगभूता आदिशक्ति माता पार्वती से विवाह किया। कार्तिकेय के जन्म के साथ ही तारकासुर की मृत्यु भी निश्चित हुई। इसी प्रकार भगवान गणेश के जन्म की घटना भी लोक कल्याणकारिणी है। भगवान शंकर के असंख्य गणों में माता पार्वती का कोई स्वतंत्र अनुचर नहीं था,जो सिर्फ माता की आज्ञा का अनुशीलन करता, सो माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की रचना कर डाली। माता के आदेश का अनुपालन करते हुए भगवान शिव से युद्ध किया और घटनाक्रम के दौरान भगवान शिव ने श्री गणेश का सिर काट दिया। पार्वती नंदन श्री गणेश के धड़ में हाथी का सिर जोड़कर पुनः महादेव ने जीवित किया। इस घटना के बाद माता पार्वती ने भगवान श्री गणेश को वरदान दिया देवताओं द्वारा उन्हें प्रथम पूज्य माना गया। शिवजी द्वारा श्री गणेश को सर्वाध्यक्ष पद प्रदान किया गया। भगवान गणेश का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया।
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