चड़क पूजा पर भक्ति और संस्कृति का अनूठा संगम
धनबाद में चड़क पूजा के दौरान झारखंडी संस्कृति और भक्ति का अनूठा संगम देखने को मिला। बारिश के बीच भक्तों ने शिव आराधना का पर्व धूमधाम से मनाया। मनईटांड़ और भेलाटांड़ में मेले का आयोजन हुआ। भक्तों ने...

धनबाद, वरीय संवाददाता चड़क पूजा पर मंगलवार को धनबाद में झारखंडी संस्कृति और भक्ति का अनूठा संगम दिखा। रिमझिम बारिश के बीच भोक्ताओं ने शिव आराधना का पर्व चड़क पूजा को धूमधाम से मनाया। शहर के मनईटांड़ और भेलाटांड़ में चड़क पूजा पर मेला का आयोजन किया गया। हालांकी बारिश के कारण मनईटांड़ में कार्यक्रम में कुछ कटौती की गई। इधर भेलाटांड़ में शरीर पर कील चुभो कर हैरतअंगेज करनामे करते भक्तों की धुन देखते ही बनती थी। कोई पीठ पर कील चुभो कर खूंटे से बंधे 50 फीट की उंचाई पर लगे घुरे पर घूम कर शिव को प्रसन्न करने में लगे थे। दोनों हाथों से ढाक बजाते हुए ऊंचाई पर पीठ में कील चुभो की झूलते भक्त आकर्षण का केंद्र बने हुए थे। मेले में महिला-पुरुष और बच्चों की भारी भीड़ उमड़ी।
मनईटांड़ भोक्ता पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि बांग्ला पंचांग के अनुसार साल का पहला दिन शिव की आराधना करके उत्साहपूर्वक मनाते हैं। इस वर्ष 300 लड़कों ने पारण मेला में भाग लिया। नवमी तिथि को जो लोग उपवास करते हैं, वे पारण के लिए मेले में आकर शरीर में किल चुभो कर शिव की आराधना करते हैं।
शिव की कृपा से दर्द नहीं होता : भोक्ता
भोक्ता शक्ति महतो कहते हैं कि कील चुभने से उन्हें दर्द का एहसास नहीं होता। पर्व मनाने के बाद कोई अपना इलाज भी नहीं कराता। शिव कर कृपा से न दर्द होता है न इलाज की जरूरत होती है। हां, एक बात का विशेष ख्याल रखना होता है कि परंपरा के अनुसार अपने जख्म को किसी महिला को नहीं छूने दिया जाता। मान्यता है कि अगर महिलाओं ने जख्म को छू दिया तो पक जाएगा। फिर नीम अर्क पत्ते से इलाज की जरूरत होगी। चड़क पूजा के तीसरे और अंतिम दिन खूंटा उखाड़ा जाता है और उसी स्थल पर बलि की प्रथा है। भेलाटांड़ कमेटी की ओर से मंगलवार की रात को सतीश नाइट आर्केस्ट्रा का आयोजन किया गया।
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