दो दशक में विभागीय कोयलाकर्मियों की संख्या हो गई आधी
कोयला वेतन समझौता-10 (एनसीडब्ल्यू-10) की अवधि इसी साल जून महीने में समाप्त हो रही है। कोयला वेतन समझौता-11 के लिए जेबीसीसीआई (ज्वाइंट बप्रटाइट कमेटी...

धनबाद विशेष संवाददाता
कोयला वेतन समझौता-10 (एनसीडब्ल्यू-10) की अवधि इसी साल जून महीने में समाप्त हो रही है। कोयला वेतन समझौता-11 के लिए जेबीसीसीआई (ज्वाइंट बप्रटाइट कमेटी ऑन कोल इंडस्ट्री) गठन की मांग शुरू हो गई है। कोल सेक्टर में वेतन समझौता को लेकर उत्साह शुरू से रहा है। 19 नवंबर 1973 को पहला कोयला वेतन समझौता हुआ था। तब से लेकर अब तक दस कोयला वेतन समझौता हो चुका है। वैसे हर कोयला वेतन समझौता में कोयलाकर्मियों की संख्या घटती जा रही है। कभी सात लाख से अधिक कोयलाकर्मी थे। अब आंकड़ा घटकर 2.7 लाख हो गया है। यानी 11 वां कोयला वेतन समझौता के दायरे में सबसे कम कोयला कर्मी आएंगे।
पिछले दो दशक के आंकड़ों पर गौर करें तो कोल इंडिया एवं अनुषंगी कंपनियों में मैनपावर की संख्या आधी हो गई है। जानकार बताते हैं कि तकनीक के उपयोग और कोयला खनन के बदलते स्वरूप से मैनपावर का महत्व घटता गया और मशीनें हावी होती हो गईं। वैसे ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि ऐसी बात नहीं है। तकनीकी प्रगति हुई है लेकिन विभागीय मजदूरों की जगह ठेका मजदूरों का उपयोग खनन क्षेत्र में होने से विभागीय मजदूर घटते चले गए। कम वेतन पर ठेका मजदूरों को रखा गया और डिपार्टमेंटल बहाली नहीं की गई।
बीसीसीएल में भी मैनपावर में तेजी से कमी हुई है। राष्ट्रीयकरण के समय बीसीसीएल में 176000 कोयला कर्मी थे। अब इनकी संख्या 40 हजार हो गई है। राष्ट्रीयकरण के समय यानी 1974-75 में तब 17 मिलियन टन कोयला उत्पादन होता था। आज दोगुना कोयला उत्पादन हो रहा है। मामले पर एक पूर्व सीएमडी कहते हैं कि हानि-लाभ के गणित के कारण खनन क्षेत्र में तेजी से बदलाव हो रहा है। कॉमर्शियल माइनिंग अस्तित्व में आ जाने के बाद कोल इंडिया को निजी क्षेत्रों के साथ और कड़ी प्रतिरूपद्र्धा का सामना करना होगा। मुकाबले में बने रहने के लिए कोल इंडिया को भी निजी कंपनियों की तर्ज पर रणनीति बनानी होगी। उन्होंने संकेत दिया कि कोयला क्षेत्र में बदलाव और तेजी से होने वाला है।
एक नजर कोल इंडिया में घटते मैनपावर पर
वर्ष मैनपावर
2003 510671
2007 445815
2011 390243
2014 352288
2019 285479
2020 272445
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