बोले धनबाद: पारा शिक्षकों का वेतन बढ़ाया जाए और कल्याण कोष का भी गठन हो
झारखंड में पारा शिक्षकों (सहायक शिक्षक) की स्थिति अत्यंत दयनीय है। 22 वर्षों की सेवा के बाद भी उन्हें स्थायी शिक्षकों की तरह वेतन और अन्य सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। पारा शिक्षकों ने समान काम के लिए...

पारा शिक्षक (अब सहायक शिक्षक) प्राथमिक शिक्षा व्यवास्था की धूरी हैं। जिले में करीब 25 सौ पारा शिक्षक । राज्य की बात करे को पारा शिक्षकों की संख्या करीब 62 हजार है। मिडिल से लेकर प्राथमिक विद्यालयों नें पारा शिक्षक काम कर रहे हैं। कई नया प्राथमिक विद्यालय तो पारा शिक्षकों के भरोसे ही चल रहे हैं। स्कूलों में सेवा देते हुए पारा शिक्षकों को लगभग 22 वर्षो हो गए हैं। इसके बाद भी पारा शिक्षकों को सामान्य शिक्षकों की तरह वेतन नहीं मिल रहा है। वेतन के नाम पर सरकार मानदेय देती है। पारा शिक्षकों के लिए सामान्य शिक्षकों की तरह वेतनमान की मांग लगातार की जा रही है। इसके बाद भी पारा शिक्षकों को यह सुविधा नहीं मिल रही है। रिटारमेंट के बाद की सुविधाएं भी पारा शिक्षकों को नहीं मिल रहा है। पड़ोसी राज्य के पारा शिक्षकों को 45 हजार वेतन दिए जाने लगी है। झारखंड में पारा शिक्षकों को अन्य सरकारी सुविधाओं से भी वंचित रखा जा रहा है।
झारखंड में पारा शिक्षकों (सहायक शिक्षक) की स्थिति अत्यंत ही दयनीय हो गई है। पारा शिक्षकों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। पारा शिक्षकों की समस्या समाधान के लिए न तो सरकार और न ही जनप्रतिनिधि रूचि दिखा रहे हैं। समान काम के बदले समान वेतन के सिद्धांत का भी पालन नहीं किया जा रहा है। हर दरवाजे से हमें निराशा ही हाथ लग रही है। सरकार हमारी मांगों पर ध्यान नहीं देती है। वेतनमान की बात हो या मानदेय बढ़ोतरी की बात करें, किसी भी मांग पर सरकार का ध्यान नहीं है। सरकार से लेकर जनप्रतिनिधि तक हमारी उपेक्षा करते हैं। उक्त बातें हिन्दुस्तान की ओर से आयोजित बोले धनबाद कार्यक्रम में पारा शिक्षकों ने कही। पारा शिक्षकों ने कहा कि वेतनमान देने का वादा कर मुकर गई। सरकार ने पारा शिक्षकों की भावना से खिलवाड़ किया। पारा शिक्षकों को सामान्य शिक्षकों की तरह वेतन नहीं मिल रहा है। यह समान काम के लिए समान वेतन के नैसर्गिक सिद्धांत का भी उल्लंघन है। पारा शिक्षक इसका लगातार विरोध कर रहे हैं। सरकार से हमारी मांग है कि समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत लागू किया जाए। 22 वर्षों की सेवा के बाद भी पारा शिक्षकों को कोई सुख-सुविधा हासिल नहीं हो सकी है। पारा शिक्षक आर्थिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं। बहुत सारे पारा शिक्षकों के बच्चों तक की सही पढ़ाई नहीं हो पा रही है। घर-परिवार चलाने में दिक्कत होती है। बाल-बच्चों का शादी-विवाह में भी परेशानी होती है। ऐसे आयोजनों के लिए कर्ज लेना मजबूरी हो गई है। कई पारा शिक्षक कर्ज के बोझ से लदे हैं। कई पारा शिक्षकों की मौत समय पर इलाज नहीं होने के कारण हो गई। इलाज नहीं होने का कारण पैसे की कमी है। इसके बाद भी राज्य सरकार हमारी मा्ंगों को नहीं मान रही है। कई बार झारखंड सरकार के शिक्षा मंत्री से वार्ता की गई है। वार्ता में भी स्थायी वेतनमान देने पर सहमति भी बनी लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया है। कई पारा शिक्षक तो रिटायर भी कर गए हैं। स्थायी शिक्षको को रिटायरमेंट के बाद पेंशन, पीएफ तथा अन्य सरकारी लाभ भी मिल जाता है। पारा शिक्षकों को ऐसी सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है।
पारा शिक्षकों का कहना है कि वार्ता में अधिकारी तरह-तरह की बात करते हैं। कई अधिकारी तो पारा शिक्षकों की बहाली पर ही सवाल उठा देते हैं। कहा जाता है कि पारा शिक्षकों की बहाली में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया है। दूसरे कई मापदंड नहीं अपनाने की बात कही जाती है। पारा शिक्षकों का कहना है कि एक ही छत के नीचे सरकारी शिक्षक और पारा शिक्षक दोनों समान काम करते हैं । दोनों की बायोमेट्रिक प्रणाली से ही हाजिरी बनती है। बच्चों को पढ़ाई का काम भी दोनों शिक्षक करते हैं। स्थायी तथा पारा शिक्षक के वेतन में जमीन आसमान का अंतर है। अधिकतर पारा शिक्षक तथा शिक्षा मित्रों ने टीचर ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है। टेट तथा आकलन परीक्षा देकर भी पास हो गई है। इसके बाद भी सरकार हमें स्थायी शिक्षकों की तरह वेतन तथा दूसरी सुविधाएं नहीं दे रही है।
पारा शिक्षकों ने अपनी पीड़ा जाहिर करने हुए कहा कि चुनावी ड्यूटी, जनगणना तथा अन्य सरकारी कामों में शिक्षकों के साथ-साथ पारा शिक्षकों की भी ड्यूटी लगाई जाती है। सरकारकर्मियों की तरह ही पारा शिक्षक भी पूरी मुश्तैदी के साथ ड्यूटी करते हैं। वेतनमान देने की बात होती है तो अधिकारी कहते हैं कि आप (पारा शिक्षक) अयोग्य हैं। पारा शिक्षकों की बहाली आरक्षण रोस्टर के अनुसार नहीं की गई है। यह अजीव विडंबना है। बहाली तो सरकार तथा सरकारी अधिकारियों ने ही की हैै।
शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन भी मिले
पारा शिक्षकों ने कहा कि हमलोग 2002 से लेकर अब तक यानी 23 वर्षों से काम कर रहे हैं। अधिकतर पारा शिक्षक सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ा रहे हैं। स्थायी शिक्षक भी बच्चों को ही पढ़ाते हैं। ऐसे में समान काम के लिए समान वेतन का फार्मूला हम पर लागू किया जाए। अल्प मानदेय के कारण हमलोगों का जीना मुहाल हो गया है। इस मंहगाई के दौर में परिवार का भरण-पोषण करना काफी मुश्किल हो रहा है। हम अपने बच्चों को ठीक से पढ़ा भी नहीं पा रहे हैं। पारा शिक्षकों को न्यूनतम 10,500 से अधिकतम 25,200 रुपया मानदेय दिया जाता है।
शिक्षकों के मानदेय की विसंगतियों को दूर की जाए
पारा शिक्षकों ने कहा कि पारा शिक्षकों को टेट पास होने के आधार पर मानदेय का भुगतान किया जाता है। एक से पांच तक के टेट पास शिक्षकों को 21700 रुपए का भुगतान किया जाता है। वहीं, कक्षा छह से आठ तक के लिए टेट पास पारा शिक्षकों को 23400 रुपए का भुगतान किया जाता है। पारा शिक्षकों के अनुसार, इसमें विसंगतियां हैं। इसे दूर करने की जरूरत है। शिक्षकों ने बताया कि जो कक्षा छह से आठ तक के लिए पास हैं, उन्हें टेट की पांचवीं कक्षा तक का वेतनमान दिया जा रहा है, जबकि वो मिडिल स्कूल में पढ़ाते हैं, ऐसे में उनका 1680 रुपए तक का अंतर पाया जाता है।
हर साल चार प्रतिशत मानदेय में बढ़ोतरी की मांग
पारा शिक्षकों ने कहा कि मानदेय में हर साल कम से कम चार प्रतिशत की बढ़ोतरी चाहते हैं। पारा शिक्षक सरकारी शिक्षक की तर्ज पर इसमें बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं। पारा शिक्षकों ने कहा कि उनके मानदेय में वृद्धि वर्तमान मानदेय के आधार पर हो। उन्हें जो भी वृद्धि दी जाती है, वो छह साल पहले के मानदेय के आधार पर दिया जा रहा है। पारा शिक्षकों ने कहा कि सरकार से समझौता हुआ था कि उनके मानदेय में एक हजार रुपए की बढ़ोतरी की जाएगी। इस शर्त पर 2024 में आंदोलन समाप्त हुआ था। पर, इस समझौते पर अबतक सरकार ने अमल नहीं किया है।
पारा शिक्षकों के लिए कल्याण कोष का किया जाए गठन
पारा शिक्षकों ने कहा कि पारा शिक्षकों के लिए कल्याण कोष का गठन किया जाए। सरकार ने भी कल्याण कोष के गठन का वादा किया था। इसके बाद भी पर अबतक इसे लागू नहीं किया गया है। पारा शिक्षकों ने कहा कि कल्याण कोष का गठन होने से हमें लाभ मिलेगा। पारा शिक्षकों के बच्चों की शादी, उनकी पढ़ाई, पारा शिक्षकों के किसी प्रकार के अनहोनी होने सहित अन्य जरूरी कामों में इसका इस्तेमाल हो किया जा सकता है।
रिटायर होने पर हमें कुछ भी नहीं मिलता है
पारा शिक्षकों ने बताया कि 22 वर्षों से लगातार सेवा देने के बाबजूद भी राज्य के 62 हजार सहायक अध्यापक आज सुरक्षित नहीं है। रिटायर होने पर हमें कुछ भी लाभ नहीं दिया जाता है। किसी की मृत्यु होने पर अनुकम्पा का लाभ भी नहीं दिया जा रहा है। किसी प्रकार का मेडिकल सुविधा की व्यवस्था नहीं है। अधिकतर पारा शिक्षकों की उम्र पचास वर्ष के आस-पास हो गई है।
राज्यभर में 62 हजार पारा शिक्षक स्थायी बनने की आस में
अगर रोस्टर का पालन नहीं किया गया तो इसमें पारा शिक्षकों का दोष कहां है? पारा शिक्षकों को सरकारी शिक्षक बहाली में 50% आरक्षण तो दिया जाता है। इसके बाद भी 22 साल में मात्र एक लाख पारा शिक्षकों को ही स्थायी शिक्षक का दर्जा मिल सका है। राज्य भर में 62 हजार पारा शिक्षक अब भी स्थायी शिक्षक बनने की आस लगाए बैठे हैं। पारा शिक्षको ने बताया कि आरटीई एक्ट के तहत राज्य में प्राथमिक विद्यालय में एक लाख 12 हजार 5 सौ सरकारी शिक्षाओं की आवश्यकता है। यदि आरटीई कानून को झारखंड सरकार पालन करती तो राज्य के 62 हजार पारा शिक्षक भी स्थायी हो जाते। पारा शिक्षकों ने कहा कि इच्छा शक्ति की कमी के कारण यह सब हो रहा है।
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