बोले धनबाद: सुरक्षा की मिले गारंटी तो महिलाएं नया मुकाम हासिल करेंगी
महिला दिवस पर, कामकाजी महिलाओं की ताकत और संघर्ष को उजागर किया गया। महिलाएं घर से बाहर निकलकर न केवल खुद को सशक्त बना रही हैं, बल्कि समाज में रोजगार भी प्रदान कर रही हैं। कच्चे माल की कमी और विभिन्न...
अपने पर होकर दयावान...तू करता अपने अश्रुपान, जब खड़ा मांगता दग्ध विश्व तेरे नयनों की सजल धार। तू एकाकी तो गुनहगार... हरिवंश राय बच्चन की ये कविता आज महिला दिवस पर और भी प्रासंगिक हो जाती है। आधुनिक दौर में एक महिला एक पूर्ण चक्र है। उसके भीतर सृजन, पोषण और परिवर्तन की असीम शक्ति है। यह शक्ति और भी प्रबल तब हो जाती है जब एक महिला घर की दहलीज से बाहर आकर खुद को कामकाजी महिलाओं के कतार में खड़ी करती है। वास्तव में कामकाजी महिलाएं ही महिला सशक्तीकरण की पर्यायवाची और पूरक हैं। अपने शहर में एक ठेले पर चाऊमीन बेचने से लेकर बड़े उद्योग की ऑनर तक ऐसे कई उदाहरण हैं जो महिला सशक्तीकरण की मिशाल पेश कर रही हैं। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान की टीम बोले धनबाद परिशिष्ट के लिए जब इन कामकाजी महिलाओं के बीच पहुंची तो उन्होंने बेबाकी से अपनी बातें रखीं।
मन में उड़ने की चाह लिए ...मंजिलें, कांटों भरी राह लिए
चेहरे पर छोटी सी मुस्कान के पीछे कितना दर्द छिपाती है
ये कामकाजी माएं, परिवार का सारा बोझ उठाती हैं...
शिव पूजन ये पक्तियां बताती हैं कि तमाम परेशानियों के बावजूद जब एक स्त्री कामकाजी महिला का लिबास ओढ़ती है तो उसकी आंचल की छांव में न सिर्फ पूरा परिवार बल्कि पूर्ण समाज आच्छादित होता है। हिन्दुस्तान टीम के साथ बात-चीत में महिलाओं ने बताया कि कामकाजी महिलाएं न सिर्फ खुद को सशक्त बना रही बल्कि रोजगार भी प्रदान कर रही हैं। साथ ही साथ यह भी कहने से नहीं चूकती हैं कि ये इतना आसान भी नहीं हैं। महिलाओं को बाहर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। फर्क नहीं पड़ता कि काम क्या है । छोटे- बड़े सभी काम में सभी कामकाजी महिलाओं को लगभग एकसमान परेशानियां उठानी पड़ती हैं। अच्छा माहौल तथा सुरक्षा की गारंटी मिले तो कोयलांचल की महिलाएं नया मुकाम हासिल कर सकतीं हैं।
महिलाएं अपनी ईमानदारी, मेहनत व लगन से घर को मंदिर और शहर को शिखर बना रही हैं। महिलाओं ने कहा कि कोई भी काम शुरू करने से पहले कड़ा निर्णय लेना पड़ता है। काम शुरू करने के पहले अगर घरवालों की रजामंदी मिल जाए तो बहुत ही अच्छा है। अगर रजामंदी नहीं मिली तो फिर यहीं से परेशानियों की शुरुआत हो जाती है। नौकरी करने की बात हो या फिर कोई स्वरोजगार, परेशानियां तो आती हीं है। स्वरोजगार की बात की जाए तो पूंजी का इंतताम तथा बाजार की तलाश भी खुद ही करनी पड़ती है। छोटी तथा मध्यम पूंजी वाले स्वरोजगारियों को तो सबसे अधिक परेशानी होती है। का्रण यह है कि इसमें मुनाफा थोड़ा कम होता है। नौकरीपेशा वाली महिलाओं की परेशानी अलग है। नौकरी के साथ-साथ घर भी संभालने की जिम्मेवारी उन्हें उठानी पड़ती है।
कामकाजी महिलाओं ने बताया कि नौकरी तथा घर से काम के बीच सामंजस्य बनाना थोड़ा कठिन होता है। अगर घर वालों का सहयोग मिल गया तो ठीक है, नहीं तो फिर परेशानी ही परेशानी है। कामकाजी महिलाओं ने बताया कि इसका सबसे अधिक प्रभाव बच्चों की परवरिश पर पड़ता है। नौकरी तथा कारोबार में ही अधिक समय देना पड़ता है। ऐसे में बच्चों के लिए समय कम बच पाता है। घर-परिवारवालों के लिए भी समय निकालना मुश्किल रहता है। ऐसे में कई बार तो घर-परिवार वालों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। कामकाजी महिलाओं से सभी की अपेक्षा रहती है लेकिन उनकी अपेक्षा से किसी को कोई मतलब नहीं रहता है। नौकरी या कारोबार के साथ-साथ घर-परिवार की उम्मीदों पर कामकाजी महिलाओं को खरा उतरना पड़ता है। उनके उपर अपेक्षाओं का बोझ लगातार बढ़ता जाता है। नौकरी तथा घर-परिवार के बीच कभी-कभी तालमेल बैठाना कठिन हो जाता है।
धनबाद में कच्चे माल का अभाव : स्वरोजगार से जुड़ी महिलाएं बताती है कि यहां रोजगार करने के लिए कच्चे माल का घोर अभाव है। कच्चे माल की खरीद के लिए बाहर के बाजारों से संपर्क करना पड़ता है। रांची, कोलकाता या फिर दूसरे शहरों के कच्चा माल लाते हैं। यह परेशानी भरा काम है। इससे उत्पादन लागत भी बढ़ जाता है। कई बार महिलाओं को खुद बाहर जाना पड़ता है। इससे कॉस्टिंग बढ़ती है। बढ़ी कीमतों में लोग खरीदारी पंसद नहीं करते।
सुझाव
1. महिलाओं को रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण देने की जरूरत
2. टैलेंट को उचित प्लेटफार्म देकर अपने ही जिलों के लिए रोकना
3. कारोबार के लिए कच्चे माल सस्ते दर में उपलब्ध कराना
4. महिलाओं के कारोबार में अलग से सरकार के स्तर पर रियायत
5. स्थानीय स्तर पर प्रशासन महिलाओं के उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराए
शिकायतें
1. महिला सशक्तीकरण का काम सिर्फ कागजों पर
2. निगम की महिलाओं के लिए योजनाओं की महज खानापूरी
3. स्कूल , बुकिट या फिर छोटे - बड़े उद्योग महिलाओं को कोई रियायत नहीं
4. कारगार प्लेटफार्म व वेतन नहीं मिलने से अच्छी महिला कामगारों का निरंतर पलायन हो रहा
5. आयात शुल्क, परिवहन शुल्क अत्यधिक होने से प्रोडक्ट मंहगा हो जाता है।
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