तकनीक व सुरक्षा उपायों की जगह भूमिगत खदानों की बंदी से खान हादसों में कमी
धनबाद में कोल सेक्टर में आधुनिक तकनीक और सुरक्षा उपायों के कारण हादसों और मौतों में कमी आई है। विशेष रूप से भूमिगत खदानों की बंदी से यह संख्या कम हुई है। 2012 में 80 मौतें हुई थीं, जबकि 2023 में यह...
धनबाद, मुकेश सिंह कोल सेक्टर में हादसों एवं मौत की कमी की वजह आधुनिक तकनीक का उपयोग एवं सुरक्षा उपायों को कोयला प्रबंधन मान रहा है। वहीं कुछ वरिष्ठ यूनियन नेताओं एवं एक सेवानिवृत्त कोयला अधिकारी ने हिन्दुस्तान से कहा कि भूमिगत खदानों की बंदी के कारण हादसे कम हुए हैं। इसलिए मौत के आंकड़ों में भी कमी आई है। तीन-चार दशक के कोयला खनन पर नजर डालें तो ज्यादातर खान हादसे भूमिगत खदानों में हुए हैं और एक-एक हादसे में सैकड़ों खनिकों की मौत हुई है।
डीजीएमएस के आंकड़े पर गौर करें तो दो दशक में खान हादसों में मौत की संख्या में तेजी से कमी आई है। 2012 में 80 कोयला कर्मियों की मौत हुई थी। तब प्रति हजार मौत की दर दशमलव (.23 ) था। 2023 में मृत खनिकों की संख्या लगभग आधी यानी 41 हो गई। 2024 में भी मौत के आंकड़े 50 से कम यानी 48 है। कोल इंडिया के एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी कहते हैं कि कोयले के भूमिगत उत्पादन में काफी कमी आई है। दिसंबर में संपन्न संसद के शीतकालीन सत्र में एक सांसद के सवाल के जवाब में कोयला मंत्रालय की ओर से बताया गया था कि कुल कोयला उत्पादन में भूमिगत उत्पादन का योगदान महज 3.44% है। अब अंदाजा लगा सकते हैं कि भूमिगत कोयला उत्पादन में तेजी से गिरावट हुई है। ज्यादातर कोयले की भूमिगत खदानें बंद हो गई हैं। वित्त वर्ष 2005 में 62 मिलियन टन कोयले का उत्पादन भूमिगत खदानों से हुआ था। वित्त वर्ष 2014 में घटकर 50 मिलियन टन हो गया। वित्त वर्ष 2023 में 35 मिलियन टन के करीब भूमिगत कोयला उत्पादन हुआ। कोयला उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। वहीं भूमिगत कोयला उत्पादन में कमी हो रही है।
वैसे कोयला मंत्रालय की ओर से दिए गए जवाब में कहा गया है कि भूमिगत कोयला उत्पादन को बढ़ाने के लिए जोर दिया जा रहा है। 2030 तक भूमिगत कोयला उत्पादन 100 मिलियन टन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कोयला मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान लगभग 34.33 मिलियन टन के वर्तमान उत्पादन स्तर से वित्त वर्ष 2030 तक 100 मिलियन टन के स्तर तक यूजी कोयला उत्पादन बढ़ाने की परिकल्पना की है। इसके लिए उच्च तकनीक और सुरक्षित खनन का ताना-बाना तैयार किया गया है। भूमिगत खनन क्यों जरूरी है, इसके मुकम्मल कारण भी मंत्रालय की ओर से दिए गए जवाब में शामिल हैं।
भूमिगत खदानों की ओर लौटने पर मंत्रालय का जोर
- सरकार भूमिगत कोयला खनन को इसके तुलनात्मक रूप से कम पर्यावरणीय प्रभाव के कारण बढ़ावा दे रही है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि देश की कोयला आवश्यकताओं को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पूरा किया जा सके।
- केंद्रीय खान योजना एवं डिजाइन संस्थान लिमिटेड (सीएमपीडीआई) ने ओसी और यूजी खनन के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर एक अभ्यास किया है, जहां यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यूजी खनन का पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव कम है।
- ओपन-कास्ट कोयला खनन में कोयले की परतों को उजागर करने के लिए पृथ्वी की परतों को हटाना शामिल है, जिसका वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण, कार्बन उत्सर्जन, मिट्टी के कटाव और अपशिष्ट उत्पादन जैसे पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव पड़ता है।
- भूमिगत खनन पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ है और इसका पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव अपेक्षाकृत कम है। भूमिगत खनन के कुछ प्रमुख संभावित लाभ सतह, हवा, पानी और शोर पर कम प्रभाव और कम कार्बन उत्सर्जन हैं।
- भूमिगत कोयला खनन प्रौद्योगिकियों के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए कंटीनुअस माइनर (सीएम), हाईवॉल (एचडब्ल्यू), लॉन्गवॉल (एलडब्ल्यू) का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रौद्योगिकी (एमपीटी) शुरू की है, जो विस्फोट के बिना निरंतर काटने की तकनीक है।
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