बोले धनबाद: दवा दुकानों के लाइसेंस की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए
धनबाद के केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के सदस्यों ने स्वास्थ्य सेवा में सुधार और दवा दुकानों के लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग की है। उन्होंने ऑनलाइन दवा वितरण और नकली दवाओं के खिलाफ भी...
केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन मतलब दवा दुकानों से जुड़े कारोबारी। समाज के हर वर्ग को इस कारोबार से जुड़े लोगों की जरूरत पड़ती है। सेवा देने के लिए इस कारोबार से जुड़े लोग 24 घंटे सातों दिन तत्पर रहते हैं। इनकी सेवा के बल पर कई गंभीर मरीजों की जान भी बच जाती है। कारण यह होता है कि रात 12 बजे की बात हो या फिर सुबह पांच बजे या फिर दोपहर, हर वक्त दवा की कुछ न कुछ दुकानें खुली रहतीं हैं। केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के सदस्यों समाज में महती भूमिका है। दवा के कारोबार से जुड़े तमाम लोग इस एसोसिएशन के सदस्य होते हैं। बीमारों को दवाइयां भी इस पेशे से जुड़े कारोबारी उपलब्ध कराते हैं। स्वास्थ्य संबंधी उपकरण तथा सर्जिकल आइटम उपलब्ध भी इस पेशे से जुड़े कारोबारी कराते हैं। पत्थर पड़े या पानी, बाढ आ जाए या फिर कोई अन्य आपदा, दवा की दुकानें बंद नहीं होती। जरूरतमंदों को दवा मिलते रहे इस लिए एसोसिएशन के सदस्यों की कुछ दुकाने 24 घंटे सातों दिन काम करते रहचे हैं। इसके बाद सरकारी स्तर हमें संरक्षण नहीं मिलता है। ऐसा कहना है एसोसिएशन के सदस्यों का।
रविवार को हिन्दुस्तान की ओर से आयोजित संवाद में सदस्यों ने कहा कि सरकार तथा स्थानीय प्रशासन से हम कई सहयोग की अपेक्षा रखते हैं। हमारी मांग है कि दवा दुकानों के लाइसेंस की प्रक्रिया सो सरल बनाए। दवा के ऑन लाइन कारोबार के लिए भी कोई समुचित कानून बनाए। ऑन लाइन कारोबार से प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ते जा रही है। दवा कारोबारी ने बताया कि दवा को सौ से दो सौ किलोमीटर तक पार्सल से भेजा जाता है। कई दवाएं ऐसी होती हैं, जिनका कोल्ड चेन मेंटेन करना जरूरी होता है। कोल्ड चेन मेंटेन नहीं होने से दवाइयों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। हम लोग हर संभव कोल्ड चेन मेंटेन करने का प्रयास करते हैं। हाल के दिनों में होम डिलिवरी के नाम पर कई कंपनियों बाजार में कारोबार में उतर आईं है। लाभ तथा बढ़ाने के चक्कर में ऐसा कंपनिया कोल्ड चेन मेंटेन नहीं करती है। इससे गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इससे बाजार में हमारी साख पर भी असर पड़ता है। दूसरा मामला डाक्टर के पूर्जे से संबंधित है। होम डिलिवरी वाली कंपनियां बगैर वैध प्रिस्क्रिप्शन (डॉक्टर के पूर्जे) के ही दवाएं घर तक पहुंचा दे रही है। इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। यह हमारे कारोबार के साथ-साथ मरीजो के लिए भी सही नहीं है। कारोबारियों ने बताया कि कई ऐसे डॉक्टर हैं जिनकी लिखी दवाएं कुछ चुनिंदा दुकानों में ही मिल सकती है। इस घालमेल पर भी प्रशासन ध्यान दे। इससे बाकी की हॉलसेल या रिटेलर दुकानदारों को नुकसान होता है। कई बार तो ग्राहक यह कहकर चले जाते हैं कि आपके पास दवाइयां उपलब्ध ही नहीं रहती। रिटेलर दुकानदारों ने कहा कि 5 साल के अनुभव के बाद फार्मासिस्ट को रखना अनिवार नहीं हो ताकि रिटेलर्स की सालाना सवा लाख रुपए की बचत हो सके। दवा कारवाइयों के लिए एक बड़ी समस्या दवा कटिंग करके बेचना है। कई बार तो कटी हुई दवा नहीं बिकने के वजह से हमें नुकसान होता है। महंगी दवा होने के वजह से लोग काट कर बेचना नहीं चाहते। कंपनी को दवा की छोटी स्ट्रिप बनानी चाहिए। कंपनियां 20 से 30 गोली की स्ट्रिप बना रही है। ग्राहक लेना नहीं चाहते मजबूरन हमें काट कर बेचना पड़ता है। जन औषधि की दवाई कंपनी की दवाई से सस्ती है। इससे कई बार ग्राहकों को यह कहकर समझना पड़ता है कि इसमें मॉलिक्यूल कम होने की वजह से सस्ती दर पर मिलती है। प्रोटीन सप्लीमेंट पर जीएसटी दर कम होनी चाहिए। इसे हर वर्ग के लोगों को लेने की जरूरत पड़ती है। ग्राहकों को दवा लेने के वक्त बिल, एक्सपायरी व बैच नंबर देख कर लेना चाहिए। इस बार जो बजट पास हुआ है, इसमें हेल्थ केयर इंडिया के लिए अच्छी खबर है पर सरकार को विश्व में भारत मेडिकल सेक्टर में तीसरे नंबर पर रखने के लिए आरएनडी में और ज्यादा इन्वेस्ट करना चाहिए, ताकि भारत मेडिकल सेक्टर में और सशक्त हो।कारोवारियों ने कहा कि जिले में हवाई सेवा होती तो बाहर से अच्छे डॉक्टर आते, इससे लोगों को इलाज के लिए बाहर जाने की समस्या खत्म हो जाती। हालांकि जो डॉक्टर बाहर से आते भी है तो उन्हें अच्छी पेमेंट व सुरक्षा नहीं मिलती जिसके कारण वह शहर से चले जाते हैं।
-2200 दवा कारोबारियों है धनबाद केमिस्ट एंड ड्रग्स एसोसिएशन
-400 है दवा हॉलसेलर
-1000 रिटेलर दवा दुकानदारो की संख्या
-40 साल पुराना है धनबाद केमिस्ट एंड ड्रग्स एसोसिएशन
कुछ दुकान के लिए दवा लिखना बंद करें डॉक्टर
डीसीडीए के सदस्यों ने बताया कि कई डॉक्टरो की लिखी गई दवा कुछ ही दवाई दुकानों पर मिलती है। इससे हॉलसेलर, सेमी हॉलसेलर रिटेलर को नुकसान हो रहा है। सरकार इस पर रोक लगाए ताकि जिले में हॉलसेलर सेमी हॉलसेलर व रिटेलर की भी दुकान पर डॉक्टर की लिखी गई दवाएं मिले।
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5 साल के अनुभव के बाद बिना फार्मासिस्ट की बेच सके दवाएं
रिटेल दवा दुकानों से दुकानदारों के अनुभव को देखते हुए 5 साल के बाद भी फॉर्मासि्ट को रखने की बाध्याता खत्म होनी चाहिए। सरकार से यह हमारी मांग है कि इसमें संशोधन किया जाए क्योंकि फार्मासिस्टों को पहले दवाइयां बनाकर देना पड़ता था इसलिए रिटेल दवाई दुकानों पर फार्मासिस्ट का होना आवश्यक था। रिटेल दवाई दुकानदारों ने बताया कि हमें सालाना लाख रुपए अतिरिक्त पर खर्च करना पड़ता है।
कटी हुई दवा नहीं बिकने पर होता है नुकसान
हॉलसेलर, सेमी हॉलसेलर व रिटेल में दवा काटकर दो से तीन गोली बेचने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है हॉलसेलर व रिटेल दुकानदारों का कहना है कि 1000 से ऊपर की दवा को हम काटकर ग्राहक को दे भी दे लेकिन कम कीमत की दावों को काट कर देने के बाद दवा नहीं बिकने पर हमें नुकसान पहुंचता है। इस समस्या का समुचित समाधान होना चाहिए।
दवा कंपनी 6-8 गोली की स्ट्रिप करे तैयार
दुकानदारों का कहना है कि कंपनी 30 गोली की स्ट्रिप बना रही है। जिससे दवाई दुकानदारों को दवाई बेचने में मुश्किल होती है। दवाई दुकानदारों का कहना है कि जरूरी नहीं कि ग्राहक 15 से 30 गोली की स्ट्रिप खरीद ले। कई बार ग्राहक 6-8 गोली ही मांगते हैं। मजबूरन हमें कटिंग करके बेचनी पड़ती है। जिससे बची हुआ दवाई नहीं बिक पाती। दवाई कंपनियां को ध्यान देते हुए 4-6 गोली दवाइयां की ही स्ट्रिप बननी चाहिए, ताकि ग्राहक और दुकानदारों को बेचने व खरीदने में आसानी हो।
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सरकार जेनेरिक व कंपनी की दवा के रेट का अंतर खत्म करें
डीसीडीए के सदस्यों ने कहां कि जेनेरिक दवा की रेट सस्ती होती है, जबकि अन्य कंपनी की दवा महंगी होती है। दवा दुकानदारों का कहना है कि कई बार ग्राहक दुकान पर आकर हमसे झगड़ने लगते हैं कि किसी अन्य दवा दुकानों पर यही दवा सस्ते में मिल रही है और वह उतनी ही कारगर भी है। हमारी मांग है कि यह अंतर खत्म किया जाए।
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प्रोटीन सप्लीमेंट पर 18 प्रतिशत से कम होनी चाहिए
प्रोटीन सप्लीमेंट (प्रोटीन पाउडर विद विटामिन एंड मिनरल्स) पर अभी 18 फीसदी जीएसटी देना पड़ रहा है। दवा दुकानदारो का कहना है कि न्यूट्रिशन और प्रोटीन की दवा पर जीएसटी कम होना चाहिए। दवा दुकानदारों ने बताया कि न्यूट्रिशन व प्रोटीन की दवा गरीब व बच्चे को देने की जरूरत पड़ती है। 18 फीसद जीएसटी लगने से मंहगी हो गयी है। दुकानदारों का कहना है कि सरकार को इसमें फैसला लेते हुए 5 प्रतिशत ही जीएसटी लगानी चाहिए।
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ग्राहक दवा लेते वक्त बिल एक्सपायरी व बैच नंबर जरूर ले
डीसीडीएम के सदस्यों का कहना है कि ग्राहकों को दवा लेने वक्त बिल, दवा की एक्सपायरी व बैच नंबर जरूर देखकर लेनी चाहिए। ताकि ग्राहकों को नकली दवाइयां लेने से बच पाए। दवा खाने के बाद किसी तरह का परेशानी ना हो। कई बार देखा गया है कि मुनाफा के चकर में नकली दवाइयां बेच देते हैं।
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हॉलसेल व सेमी होलसेलर सीधे ग्राहकों को दवा ना बेचे
डिटेल दवा दुकानदारों का कहना है कि हॉलसेल या सेमी हॉलसेलर ग्राहक को 20% प्रतिशत की छूट देकर दवा बेच देते हैं। इससे रिटेलर दुकानदारों को नुकसान पहुंचता है। ग्राहक कहते हैं कि हॉल सेल में 20% प्रतिशत की छूट मिल रही है। आपकी दुकान से क्यों खरीदें।
शिकायत
1. कुछ दवा दुकानदार नकली दवाइयां बेचकर अधिक मुनाफा कर रहे हैं। इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए ।
2. हॉलसेल व सेमी हॉलसेलर सीधे ग्राहकों को दवा बेचने लगे हैं। इससे रिटेलर की आमदनी कम हो गई है।
3.कंपनी के द्वारा 30 गोली की स्ट्रिप बनाई जा रही है जिससे दवाई दुकानदारों को दवाई बेचने में मुश्किल होती है।
4. हॉलसेलर सेमी हॉलसेलर व रिटेल में दवा काटकर दो से तीन गोली बेचने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है।
5. ऑनलाइन दवा वितरण होने से हमारी आमदानी पर असर पड़ा है। साथ ही नियमों की अनदेखी हो रही है जिसका आम जनता के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
सुझाव
1. ग्राहकों को दवा लेने वक्त बिल, एक्सपायरी व बैच नंबर जरूर देखकर लेनी चाहिए ताकि ग्राहक नकली दवाइयां लेने से बच पाए।
2. नकली दवा कारोबार करने वाले पर कानूनी शिकंजा कसने की जरूरत है, ताकि लोगों की सेहत से खिलवाड़ ना हो।
3. न्यूट्रिशन व प्रोटीन की दवा में 18 फीसद जीएसटी लगने से यह महंगी हो गयी हैं। इस पर संशोधन कर 5 से 12 प्रतिशत जीएसटी लागू किया जाए, ताकि गरीब व आम लोगों पर बोझ कम पड़े।
4. दवाई कंपनियां को ध्यान देते हुए 4-6 दवाइयाों की ही स्ट्रिप बननी चाहिए ताकि ग्राहक और दुकानदारों को बेचने में खरीदने में आसानी हो।
5. जेनेरिक दवा की रेट सस्ती होती है जबकि अन्य कंपनी की दवा मांगी होती है। इस पर ग्राहकों को जागरूक होना चाहिए।
लोगों की सुनें
डॉक्टर की लिखी गई दवाई ग्राहक दो तीन गोली मांगते हैं । ऊंची कीमत वाली दवाओं को स्ट्रिप से काट कर बेच देते हैं। बाद में यह बिक जाती है। कम कीमत वाली दवा बेचने में परेशानी होती है। इस बारे में विचार किया जाना चाहिए। -धीरज दास
कंपनी पहले 4, 6 व 10 गोली की स्ट्रिप बनाती थी। अब 15 व 30 गोली की स्ट्रिप बना रही है। मजबूरन अब हमें कटिंग करके बेचनी पड़ता है। बची हुई दवाई नहीं बिक पाती है। इससे आर्थिक हानि होती है। -ललित अग्रवाल
हॉलसेलर,सेमी हॉलसेलर व रिटेल में दवा काटकर दो से तीन गोली बेचने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है। दवा कंपनियों से मांग करता हूं कि 4-6 दवाइयों की ही स्ट्रिप बनाए, ताकि ग्राहक और दुकानदारों को बेचने व खरीदने में आसानी हो।
-सुनील पोद्दार
जेनेरिक दवा की रेट सस्ती है जबकि अन्य कंपनी की दवा महंगी है। सरकार बड़ी कंपनी व जेनेरिक दवाइयां के रेट का अनुपात निर्धारित करें, ताकि ग्राहक दवा दुकानदारों पर ज्यादा पैसे लेने का आरोप ना लगाएं। - आनंद श्री कृष्णा
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