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रेटिनोब्लास्टोमा आंख का है कैंसर जिसका इलाज है संभव

देवघर में झारखंड ओफ्थाल्मोलॉजिकल सोसाइटी के तत्वावधान में तीन दिवसीय नेत्र रोग विशेषज्ञों का 22वां वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें नवीनतम तकनीकी सत्रों में रेटिनोब्लास्टोमा के लक्षणों और उपचार...

Newswrap हिन्दुस्तान, देवघरSun, 23 Feb 2025 04:37 PM
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रेटिनोब्लास्टोमा आंख का है कैंसर जिसका इलाज है संभव

देवघर, प्रतिनिधि। झारखंड ओफ्थाल्मोलॉजिकल सोसाइटी एवं संताल परगना ओफ्थाल्मिक फोरम के संयुक्त तत्वावधान में नेत्र रोग विशेषज्ञों के तीन दिवसीय 22वें वार्षिक सम्मेलन के तीसरे व अंतिम दिन रविवार को मैहर गार्डन देवघर में तकनीकी सत्र सह समापन समारोह का आयोजन किया गया। इस दौरान तीन नवीनतम तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। जिसमें कई नेत्र चिकित्सकों ने तकनीकी सत्र में अपना-अपना व्याख्यान पावर प्वाईंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से दिया। इसके साथ ही कॉन्फ्रेंस के तीसरे दिन समापन सत्र में इनोवेशन यानी नवीन प्रयोग सत्र में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को डॉ.नीलेंदु मिश्रा और डॉ.भारती कश्यप द्वारा प्रशस्ति पत्र और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। तकनीकी सत्र में अखिल भारतीय नेत्र सोसाइटी के सचिव डॉ. संतोष होनावर ने बताया की रेटिनोब्लास्टोमा आंख का एक कैंसर है। यह ज़्यादातर छोटे बच्चों में आमतौर पर 3 वर्ष की आयु से पहले होता है। यह कैंसर 5 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों में शायद ही कभी विकसित होता है। रेटिनोब्लास्टोमा आंख के रेटिना में बनता है। अधिकांश रोगियों में रेटिनोब्लास्टोमा आंख तक ही सीमित रहता है और इस कैंसर का इलाज बहुत अधिक संभव है। समय से पूर्व रोग की पहचान और उपलब्ध इलाजों के कारण इस कैंसर के ठीक होने की दर 95प्रतिशत से ऊपर है। यदि इस बीमारी का इलाज नहीं किया जाता, तो यह शरीर के अन्य भागों तक फैल सकती है। जहां इसका इलाज करना बहुत कठिन हो सकता है। इसका इलाज सर्जरी, कीमोथेरेपी एवं रेडिएशन थेरेपी है, जो बीमारी के स्टेज पर निर्भर करता है।

रेटिनोब्लास्टोमा का क्या है लक्षण : डॉ. संतोष होनावर ने बताया की आंख की पुतली सफ़ेद होना या ल्यूकोकोरिया के नाम से जाना जाता है। यह रेटिनोब्लास्टोमा का सबसे आम संकेत है। भेंगापन - यह रेटिनोब्लास्टोमा का दूसरा सबसे आम संकेत है। आईरिस या परितारिक (आंख का रंगीन भाग) जो एक अलग रंग की है। (आंखों का अलग-अलग रंग) दृष्टि से संबंधित समस्याएं,

आंखों का लाल होना या उनमें खुजली होना। आंख में दर्द - ट्यूमर बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते दबाव के कारण आंख में दर्द ,जी मिचलाना या उल्टी भी हो सकती है।

चश्मा हटाने की स्पर्श एवं चीरा रहित स्मार्ट सर्फ लेज़र तकनीक : कॉन्फ्रेंस में रिफ्रैक्टिव सर्जन एवं डायरेक्टर कश्यप मेमोरियल आई हॉस्पिटल रांची डॉ. भारती कश्यप ने विश्व की सर्वोत्तम चश्मा हटाने की स्पर्श एवं चीरा रहित स्मार्ट सर्फ लेज़र तकनीक साझा की। कहा कि स्मार्ट पल्स लेज़र तकनीक पर आधारित स्मार्ट सर्फ़ एवं स्मार्ट लासिक यह आज के समय में सबसे ज्यादा एडवांस्ड लेजर करने का तरीका है, चश्मा हटाने का। अपनी 1050 एचजेड पुनरावृति दर एवं सात डाइमेंशनल आई ट्रैकिंग के साथ स्विंड अमारिस मशीन पर स्मार्ट सर्फ सतह उपचार एवं स्मार्ट लेसिक पारंपरिक लेज़र उपचारों की तुलना में असाधारण उच्च गति एवं परिशुधता की लेज़र प्रणाली है। स्मार्ट पल्स टेक्नोलॉजी ट्रीटमेंट से कॉर्निया की मॉडलिंग बहुत चिकनी होती है। उत्कृष्ट परिणाम के लिए लेज़र प्रक्रिया के दौरान आंखों की स्थिर एवं गतिशील अवस्था में सही जगह पर लेज़र फायर की जाती है और उस समय को भी कम करता है। जब जिसके दौरान मरीज को लेज़र के समय हरी बत्ती पर नजर रखना होता है। ज्यादा सिलेंडर पावर वाले मरीजों में यह काफी बेहतर परिणाम देता है। माईनस पॉवर के साथ-साथ प्लस पॉवर का भी उपचार संभव है।

लेज़र सतह उपचार स्माइल एवं लेसिक से ज्यादा है सुरक्षित : कॉन्फ्रेंस में यह जानकारी दी गयी कि एलवी प्रसाद आई हॉस्पिटल हैदराबाद द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार लेज़र सतह उपचार स्माइल एवं लेसिक से ज्यादा सुरक्षित है और आजकल स्मार्ट पल्स तकनीक का उपयोग लेज़र सतह उपचार के लिए बेहतर रिजल्ट दे रहा है। अपेक्षाकृत ज्यादा पॉवर, सिलिंडर पॉवर एवं पतले कॉर्निया में स्माइल लेजर नहीं हो सकता है और एक बार लेजर होने के बाद दुबारा ट्रीटमेंट कि जरूरत पड़ने पर इसे नहीं किया जा सकता है। प्लस पॉवर का ट्रीटमेंट भी स्माइल तकनीक से नहीं किया जा सकता है। इस तकनीक से कॉर्निया की कई बीमारियों का भी उपचार होता है, जैसे केराटॉकोनस।

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