वारंग क्षिति लिपि का उपयोग बेहतर कदम
गुवा के सारंडा क्षेत्र में वारंग क्षिति लिपि का उपयोग बढ़ रहा है। विभिन्न गांवों के बोर्ड में इस लिपि का प्रयोग हो रहा है, जिससे स्थानीय लोग इसे समझने में सक्षम हो रहे हैं। झारखण्ड सरकार और अन्य...
गुवा । हो भाषा की वारंग क्षिति लिपि का बढा़वा सारंडा के ग्रामीण क्षेत्रों में धीरे-धीरे हीं सही, लेकिन निरंतर आगे बढ़ना सुखद है। आज सोमवार सुबह 8 बजे देखा गया सारंडा व कोल्हान वन क्षेत्र के विभिन्न गांवों के बोर्ड में भी वारंग क्षिति लिपि का इस्तेमाल किया जा रहा है। नक्सल प्रभावित बुंडू गांव का नाम संबंधित बोर्ड में भी इसी लिपि से नाम लिखा हुआ है। यह नाम वारंग क्षिति लिपि के शिक्षक कृष्णा तोपनो द्वारा लिखा गया है। ऐसा करने से अन्य लोगों को भी हो लिपि का कुछ शब्द को जानने व समझने में धीरे-धीरे आसानी होगी। उल्लेखनीय है कि हर राज्यों की अपनी भाषा व संस्कृति होती है जो उसे विशेष पहचान देती है. झारखण्ड का कोल्हान प्रमंडल, खासकर पश्चिम सिंहभूम जिला हो आदिवासी बहुल्य क्षेत्र है. यहाँ के आदिवासी समुदाय हो भाषा में तो बातें करते हैं लेकिन उनकी अपनी लिपि वारंग क्षिति लिपि का उपयोग नहीं कर पाते हैं। वारंग क्षिति लिपि का आविष्कार ओत् गुरु कोल लाको बोदरा द्वारा किया गया था। ओत् कोल लाको बोदरा खुद को कोल मानते थे इसीलिए उनके नाम के आगे कोल शब्द जुड़ा है। इस लिपि का बढा़वा हेतु झारखण्ड सरकार के अलावे विभिन्न संस्थाओं द्वारा निरंतर प्रयास किया जा रहा है। सरकारी स्कूलों से लेकर गांव अथवा कस्बों में कई जगहों पर इसकी पढा़ई प्रारम्भ कर दी गई है।
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