लाको बोदरा समाज के पथ प्रदर्शक हैं : डॉ.चाकी
चाईबासा में कोल्हान विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग ने हो भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार ओल गुरु कोल लाको बोदरा की 105वीं जयंती मनाई। प्रोफेसर डॉ. बसंत चाकी और डॉ. मीनाक्षी मुंडा ने...
चाईबासा। कोल्हान विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की ओर से शुक्रवार को टी.आर.एल सभागार में विभागाध्यक्ष डॉ सुनील मुर्मू की अध्यक्षता में वारंगक्षिति लिपि के जनक एवं हो भाषा साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार ओल गुरु कोल लाको बोदरा की 105वीं जयंती समारोह पूर्वक मनाई गई। इस अवसर पर हो भाषा के प्रोफेसर डॉ. बसंत चाकी ने कहा कि लाको बोदरा हो समाज के पथ प्रदर्शक हैं। उनके द्वारा लिखित साहित्य से हो समाज में जागृति आई है। उन्होंने वारंगक्षिति लिपि का भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया। एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ मीनाक्षी मुंडा ने कहा कि वारंगक्षिति लिपि से हो समाज की संस्कृति का संरक्षण तो संभव है ही , साथ ही उनकी भाषा साहित्य को भी सही दिशा मिल सकती है। जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील मुर्मू ने कहा कि लाको बोदरा सिर्फ हो भाषा के साहित्यकार ही नहीं बल्कि आदिवासी समाज के समाज सुधारक भी थे। वर्तमान समय में उनके लिखे साहित्य पर पर्याप्त शोध करने की आवश्यकता है। इससे पहले कार्यक्रम के प्रारंभ में लाको बोदरा के चित्र पर सभी अतिथियों, शिक्षकों, एवं छात्र-छात्राओं ने पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन किया। कार्यक्रम के अगले चरण में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के छात्र-छात्राओं के द्वारा विभाग के शिक्षकों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के मध्य लाको बोदरा जयंती के अवसर पर छात्र-छात्राओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। इस कार्यक्रम में निसोन हेंब्रम, सुभाष चंद्र महतो, डॉ मीनाक्षी मुंडा आदि विशेष रूप से उपस्थित थे । कार्यक्रम का सफल बनाने में शिक्षण सहायक गोनो आल्डा , धनुराम मार्डी एवं वीणा कुमारी का विशेष योगदान रहा।
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