जंगली हाथियों से दशहत के साये में जी रहे लोग
बेरमो के दूरदराज गांवों में जंगली हाथियों का उत्पात बढ़ रहा है। गोमिया और पेटरवार में हाथियों ने फसलों को बर्बाद किया है और ग्रामीणों में भय का माहौल बना हुआ है। वन विभाग केवल सीमित उपाय कर रहा है,...
बेरमो। अनुमंडल के सुदूरवर्ती गांवों में जंगली हाथियों की वजह से कभी भी पहले की तरह अनहोनी हो सकती है। करीब एक-डेढ़ माह से खासकर गोमिया व पेटरवार के गांवों में करीब-करीब हर दिन जंगली हाथी उत्पात मचा रहे हैं। खेतों में लगी फसलों को खाने व बर्बाद करने सहित अनाज खाने के लिए कच्चों घरों के अंदर तक अपनी सूंड घुसा दे रहे हैं। जंगली हाथियों से जान का भय ग्रामीण व किसानों में बना हुआ है। जिन-जिन गांवों में ये हाथी घुस चुके या पहले कभी घुसे थे, ये लोग दहशत के साये में जीने को मजबूर हैं। हाड़ कंपकंपाती इस ठंड में ग्रामीण अपने-अपने घरों में मानो रतजग्गा करने को मजबूर हैं। दिन में भी जंगली रास्ते पर जाने से बचने की कोशिश करते हैं। जंगली हाथियों के गांवों में घुसकर उत्पात मचाने की जानकारी वन विभाग को जरूर हो रही है। परंतु नुकसान की भरपाई को लेकर मुआवजा की प्रक्रिया आगे बढ़ाने से अधिक बात नहीं हो रही। कर्मचारी टॉर्च, पटाखा व मसाल लेकर आते हैं। इससे ज्यादा विभाग मानो और कुछ नहीं कर पा रहा। जबकि बीते पौष माह में वनभोज, धनकटनी व सोहराय और अब शुरू हुए माघ माह में जगह-जगह मकर मेले लग रहे हैं। अगर जंगली हाथी पहुंच जाते हैं तो कुछ भी होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। बताया जाता है कि एक ही दिन या रात अलग-अलग गांवों में हाथी उत्पात मचा रहे हैं। ऐसे में यह बिलकुल स्पष्ट है कि हाथियों का एक-दो नहीं बल्कि कई झुंड विचरण कर रहा है। ग्रामीण बताते हैं कि ये हाथी दिन में जंगलों की ओर चले जाते हैं जबकि अंधेरा होते ही रात में गांवों की ओर चले आते हैं। ऐसे तो बेरमो अनुमंडल अंतर्गत पेटरवार प्रखंड के गांवों में भी जंगली हाथी आते-जाते रहते हैं। परंतु गिरिडीह, हजारीबाग व रामगढ़ की सीमावर्ती गोमिया प्रखंड के गांवों में हाथियों का ज्यादा आना-जाना होता है। इसके अलावा नावाडीह प्रखंड के गांवों में भी। बंगाल से भी हाथी घुसते रहे हैं। बेरमो के गांवों में हाथियों का हमला काफी लंबे समय से होता चला आ रहा है। अबतक गोमिया, नावाडीह, पेटरवार व कसमार के कई ग्रामीणों की जान जा चुकी है। काफी लोग जख्मी हुए थे। कच्चे घरों को ढहना व खेती-बाड़ी को नुकसान की बात की जाय तो बहुत ज्यादा है। वहीं मुआवजा मिलने में भी देर होती है।
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