Hindi Newsविदेश न्यूज़Why Massacre between Shia and Sunni in Pakistan Kurram Situation out of control

पाकिस्तान में शिया-सुन्नियों के बीच क्यों मचा कत्लेआम? इस जिले में बेकाबू हालात, बिछ गईं लाशें

  • स्थानीय शांति समिति के सदस्य और जनजातीय बुजुर्गों की जिरगा का हिस्सा, महमूद अली जान ने कहा कि पिछले कई महीनों से लोग केवल काफिलों में यात्रा करने के लिए बाध्य थे।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, खैबर पख्तूनख्वाTue, 12 Nov 2024 04:24 PM
share Share
Follow Us on

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में चार हफ्तों से अधिक समय से मुख्य राजमार्ग बंद है, जहां शिया और सुन्नी समुदायों के बीच जमीन के विवाद के चलते सांप्रदायिक हिंसा भड़की हुई है। यह खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्र अफगानिस्तान से सटा हुआ है और जुलाई के अंत से ही यहां तनाव जारी है, जिसमें अब तक 46 लोगों की जान जा चुकी है। स्थानीय अधिकारियों ने यात्रा पर प्रतिबंध और सुरक्षा कड़ी कर दी है, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद एक-दूसरे पर हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। 12 अक्टूबर को एक हमले में 15 लोग मारे गए, जब एक काफिला हमले की चपेट में आ गया।

स्थानीय शांति समिति के सदस्य और जनजातीय बुजुर्गों की जिरगा का हिस्सा, महमूद अली जान ने कहा कि पिछले कई महीनों से लोग केवल काफिलों में यात्रा करने के लिए बाध्य थे। लेकिन अक्टूबर में हुई हत्या के बाद, आम जनता के लिए सड़कें पूरी तरह बंद कर दी गईं। पिछले हफ्ते, हजारों लोग कुर्रम के जिला मुख्यालय पराचिनार में एक "शांति मार्च" में शामिल हुए, जिसमें उन्होंने सरकार से 8 लाख निवासियों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की। इन निवासियों में से 45 प्रतिशत से अधिक शिया समुदाय के हैं। जिरगा, नेताओं की एक सभा होती है जो पश्तूनवाली के मुताबिक आम सहमति से फैसले लेती है। पश्तूनों के बीच विवाद सुलझाने के लिए जिरगा का आयोजन किया जाता है। हालांकि, आजकल अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पश्तूनों से प्रभावित दूसरे जातीय समूह भी जिरगा का आयोजन करते हैं।

मार्च के बाद, प्रशासन ने सप्ताह में चार दिन काफिलों के माध्यम से यात्रा की अनुमति दी है। कुर्रम के डिप्टी कमिश्नर, जावेदुल्ला महसूद ने अल जजीरा से कहा, "सुरक्षा कारणों से, हमने शिया और सुन्नी समूहों के साथ काफिलों में यात्रा को सप्ताह में चार दिनों तक सीमित कर दिया है, और हमें उम्मीद है कि स्थिति में जल्द सुधार होगा।"

क्यों मचा है कत्लेआम?

कुर्रम जिले में शिया और सुन्नी समूहों के बीच सांप्रदायिक संघर्ष का लंबा इतिहास है। 2007 से 2011 के बीच की अवधि में 2000 से अधिक लोग मारे गए थे। पिछले कुछ दशकों में, अफगानिस्तान के खोस्त, पक्तिया, और नंगरहार प्रांतों से सटे इस पहाड़ी क्षेत्र में टीटीपी (पाकिस्तान तालिबान) और आईएसआईएल जैसे सशस्त्र समूह सक्रिय हो गए हैं, जिनके द्वारा शिया समुदाय को अक्सर निशाना बनाया जाता है। जुलाई में हुई हिंसा के बाद 2 अगस्त को एक अंतरजनजातीय संघर्षविराम पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन सितंबर के अंत में हिंसा दोबारा भड़क उठी, जिसमें 25 लोगों की मौत हो गई।

12 अक्टूबर को एक काफिले पर हुए हमले के बाद थाल-पराचिनार सड़क बंद कर दी गई। यह हमला शिया बहुल क्षेत्र में हुआ, जिसमें सुन्नी मुसलमानों को निशाना बनाया गया। इसके जवाब में शिया काफिलों पर दो पलटवार हुए, लेकिन 20 अक्टूबर से अस्थायी संघर्षविराम लागू है। महमूद अली जान ने कहा कि काफिलों पर छिटपुट गोलीबारी अभी भी होती है, लेकिन किसी की मौत की खबर नहीं है। महसूद ने माना कि स्थिति अस्थिर है, परंतु उन्होंने उम्मीद जताई कि शांति बहाल होगी। उन्होंने कहा, "दोनों समुदायों के प्रमुख हमारे साथ सहयोग कर रहे हैं, और हम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयास कर रहे हैं।"

महसूद ने कहा कि कुछ "तत्व" तनाव को बनाए रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा, "हमने काफिलों के साथ सुरक्षा सुनिश्चित की है और शिया और सुन्नी दोनों को साथ में चलने का प्रबंध किया है। इसके अलावा, हमने जिले में दवाइयों, भोजन और अन्य आवश्यक चीजों की आपूर्ति बिना किसी रुकावट के जारी रखी है।" हालांकि, उत्तर वजीरिस्तान के पूर्व सांसद और नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट (एनडीएम) के अध्यक्ष मोहसिन दावर ने सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि अधिकारी इस मुद्दे को वास्तव में सुलझाने के लिए गंभीर हैं। राज्य की उदासीनता के कारण जमीन के विवाद ने सांप्रदायिक रंग ले लिया है, जिससे प्रतिशोध की घटनाएं बढ़ रही हैं।"

दावर ने कहा कि हत्याएं हत्याओं को जन्म देती हैं और जनजातियां बदला लेने के लिए तैयार रहती हैं। ऐसा लगता है कि सरकार पूरे क्षेत्र को अराजकता में रखने की नीति अपना रही है। स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि जिले में बाजार धीरे-धीरे खुल रहे हैं और रोजमर्रा की जिंदगी धीरे-धीरे सामान्य हो रही है। हालांकि, निवासी कहते हैं कि सड़क बंद होने और तीन महीने से मोबाइल इंटरनेट बंद होने के कारण अभी भी सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त है। पाराचिनार और आस-पास के गांवों से करीब 2,000-3,000 सुन्नी लोग विस्थापित हुए। पिछले कुछ सालों में उनमें से कुछ ही वापस लौटे हैं।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें