कौन है पाकिस्तान का वह अकेला सांसद, जिसने कश्मीर पर बेहूदा प्रस्ताव का किया विरोध; संसद में बवाल
- पश्तून नेता ने कहा कि कश्मीर के लोगों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे कहां जाएंगे या फिर अकेले ही रहेंगे।' महमूद खान अचकजाई ने कहा कि यदि वे हिन्दुस्तान के साथ जाना चाहते हैं तो गुडबाय। यदि पाकिस्तान के साथ आना चाहते हैं तो वेलकम किया जाए।
पाकिस्तान की संसद में 6 अगस्त को एक प्रस्ताव पेश किया गया था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि भारत को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करना चाहिए, जो आर्टिकल 370 हटने से खत्म हो गया है। यही नहीं कश्मीर राग अलापते हुए कुछ और बेहूदा मांगें पाकिस्तान की संसद में रखी गई थीं। इस प्रस्ताव को कश्मीर के नाम पर सभी सांसदों ने समर्थन दिया, लेकिन खैबर पख्तूनख्वा के वरिष्ठ सांसद महमूद खान अचकजाई ने इसका विरोध किया। इस प्रस्ताव में पुराना राग अलापते हुए यह बात भी शामिल की गई थी कि कश्मीर पाकिस्तान का है और हम उसे लेकर रहेंगे।
इसी का महमूद खान अचकजाई ने विरोध किया और प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला। उन्होंने कहा,'एक प्रस्ताव कश्मीर के बारे में पेश हुआ। मैंने इसका विरोध किया। मैं कश्मीर के लोगों की आजादी के खिलाफ नहीं हूं। कश्मीर के मामले में पाकिस्तान और हिंदुस्तान दोनों गलत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जो कहते हैं कि कश्मीर हिन्दुस्तान का अंग है, वह कश्मीरी नहीं होता। जो पाकिस्तान की ओर से ऐसी ही बात कहते हैं, उनका भी कश्मीर से लेना-देना नहीं है। पश्तून नेता ने कहा कि कश्मीर के लोगों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे कहां जाएंगे या फिर अकेले ही रहेंगे।'
महमूद खान अचकजाई ने कहा कि यदि वे हिन्दुस्तान के साथ जाना चाहते हैं तो गुडबाय। यदि पाकिस्तान के साथ आना चाहते हैं तो वेलकम किया जाए। अचकजाई ने कहा कि कश्मीर के लोगों से ही पूछ लिया जाए कि वे क्या चाहते हैं। यही नहीं उन्हें जब इस मसले पर बोलने से स्पीकर ने रोकने की कोशिश की तो वह और भड़क गए। वरिष्ठ सांसद ने स्पीकर को हवलदार बता दिया, जो सरकार के लिए दरवाजे पर खड़ा रहता है।
कौन हैं महमूद खान अचकजाई, जिनकी बात पाक को अखरती है
महमूद खान अचकजाई खैबर पख्तूनख्वा के सांसद हैं। वह पश्तून राष्ट्रवादी हैं और अलग मुल्क की मांग का भी समर्थन करते रहे हैं। पख्तूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी के वह चेयरमैन हैं। उनके पिता की अब्दुल समद खान भी पश्तून राष्ट्रवादी थे, जिनकी 1973 में हत्या कर दी गई थी। वह एक बार बलूचिस्तान से भी चुने जा चुके हैं।
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