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क्या है शदाणी दरबार की यात्रा? पाकिस्तान ने हिंदू तीर्थयात्रियों को जारी किए 87 वीजा

  • घोटकी जिले के हयात पिताफी में स्थित शादाणी दरबार पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सबसे बड़े हिंदू मंदिरों में से एक माना जाता है। इसकी स्थापना 1786 में संत सदाराम साहिब ने की थी।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, सिंध (पाकिस्तान)Sat, 23 Nov 2024 07:44 AM
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पाकिस्तान ने सिंध स्थित एक मंदिर में शिव अवतारी सतगुरु संत सदाराम साहिब की जयंती समारोह के अवसर पर देश की यात्रा करने के इच्छुक भारत के हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए 87 वीजा जारी किए हैं। यह जानकारी यहां स्थित उच्चायोग ने शुक्रवार को दी। उच्चायोग ने एक बयान में कहा, ‘‘नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग ने सिंध के शदाणी दरबार हयात पिताफी में शिव अवतारी गुरु संत सदाराम साहिब की 316वीं जयंती समारोह में शिरकत करने के लिए 24 नवंबर से चार दिसंबर तक पाकिस्तान की यात्रा के इच्छुक भारत के हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए 87 वीजा जारी किए हैं।’’ नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के प्रभारी साद अहमद वराइच ने तीर्थयात्रियों को यात्रा की शुभकामनाएं दीं हैं।

क्या है शदाणी दरबार?

घोटकी जिले के हयात पिताफी में स्थित शादाणी दरबार पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सबसे बड़े हिंदू मंदिरों में से एक माना जाता है। इसकी स्थापना 1786 में संत सदाराम साहिब ने की थी। हर साल भारत भर के तीर्थयात्री संत सदाराम साहिब की जयंती मनाने के लिए इस मंदिर में आते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, संत सदाराम साहिब को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उनका जन्म अक्टूबर 1708 में लाहौर में एक लोहाना खत्री परिवार में हुआ था। उन्हें भगवान राम के बेटे लव का वंशज भी माना जाता है। शदाणी दरबार हिंदू समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह दरबार न केवल भारत-पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव का प्रतीक है, बल्कि भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा का केंद्र भी है।

शदानी दरबार का धार्मिक महत्व

यह दरबार हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद पवित्र है। यहां हर साल नवंबर और दिसंबर के महीनों में शदाणी मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में तीर्थयात्री शामिल होते हैं। इस दौरान विशेष भजन, कीर्तन और पूजा-अर्चना का आयोजन होता है। दरबार परिसर में कई मंदिर और धार्मिक संरचनाएं हैं।

शदाणी दरबार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, 20 वर्ष की आयु से ही संत सदाराम साहिब ने हरिद्वार, यमुनोत्री, गंगोत्री, अमरनाथ, अयोध्या और नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर जैसे विभिन्न पवित्र स्थानों की यात्रा की। 1768 में, वे राजा नंद के शासनकाल के दौरान सिंध की राजधानी माथेलो पहुंचे, जहां उन्होंने एक शिव मंदिर का निर्माण किया और पवित्र अग्नि (धूनी साहिब) को प्रज्वलित किया। कुछ समय बाद उन्होंने अपने भक्तों के साथ माथेलो गांव में अपना मंदिर छोड़ दिया और हयात पिताफी में एक अन्य पवित्र गांव के पास बस गए और शदाणी दरबार की नींव रखी। वहां उन्होंने एक पवित्र कुआं खोदा और एक "होली अग्नि" को प्रज्वलित किया जिसे "धूनी साहिब" के नाम से जाना जाता है।

'संत मंगलाराम साहिब के चमत्कार'

मंदिर की वेबसाइट पर यह भी लिखा है कि "1930 में ब्रिटिश सरकार की फूट डालो और राज करो की नीति के कारण स्थानीय मुसलमानों को शासकों द्वारा हिंदुओं को परेशान करने, लूटने और मारने के लिए उकसाया गया था, लेकिन "संत मंगलाराम साहिब ने पवित्र धूल (धूनी साहिब) और पानी को मिलाकर हयात पिताफी की सीमाओं के आसपास फेंक दिया। इसके परिणामस्वरूप, जब हमलावर गांव में घुसे, तो वे अंधे हो गए। गांव से बाहर निकलते ही उनकी आंखों की रोशनी वापस आ गई। इस तरह संत मंगलाराम साहिब के चमत्कार से हयात पिताफी के लोगों की जान बच गई।"

यह भी माना जाता है कि जो कोई भी व्यक्ति 'धूनी साहिब' से आशीर्वाद मांगता है और कुएं का पानी पीता है, उसके सभी दुख और दुर्भाग्य समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा, हर साल उनकी जयंती 'अग्नि पूजा' और सामूहिक विवाह का आयोजन करके मनाई जाती है। इस दिन पवित्र ग्रंथ 'गीता' और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ भी किया जाता है।

भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए महत्व

भारतीय तीर्थयात्री शदाणी दरबार की यात्रा को एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव मानते हैं। यह स्थल उन्हें न केवल उनकी धार्मिक आस्था से जोड़ता है, बल्कि उन्हें अपनी सांस्कृतिक जड़ों का अहसास भी कराता है। पाकिस्तान और भारत के बीच वीजा प्रक्रिया जटिल होने के बावजूद, हर साल बड़ी संख्या में भारतीय हिंदू तीर्थयात्री दरबार की यात्रा करते हैं। पाकिस्तान सरकार भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए वीजा जारी करती है और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करती है।

धार्मिक पर्यटन और कूटनीतिक पहल

शदानी दरबार भारतीय और पाकिस्तानी सरकारों के बीच धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण साधन है। इस दरबार की यात्रा से दोनों देशों के लोगों के बीच विश्वास और सद्भाव बढ़ाने में मदद मिलती है। करतारपुर कॉरिडोर की तरह, शदाणी दरबार भी भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक पर्यटन के महत्व को दर्शाता है। शदाणी दरबार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर भी है। यहां की स्थापत्य कला, धार्मिक रीतियां और परंपराएं हिंदू धर्म के समृद्ध इतिहास और विरासत को दर्शाती हैं।

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