और कितना गिरेंगे जस्टिन ट्रूडो? जिसने भारत के दुश्मनों को पाला-पोसा और दिया दाना-पानी; उसे अपने आंगन में बसाया
1982 से 1992 के दौरान पंजाब और उसके आसपास एक अलग राज्य की मांग के लिए खालिस्तान समर्थकों का आंदोलन उग्र हो चला था। उसी दौरान कमलजीत राम ने खालिस्तानी आतंकियों को अपने फार्म हाउस में शरण दी थी।

एक तरफ कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो गाजा पट्टी के हमास आतंकियों को मिट्टी में मिला देना चाहते हैं और इसके लिए वह अमेरिका के साथ इजरायल की मदद कर रहे हैं तो दूसरी तरफ वह भारत के खिलाफ आतंकी साजिश रचने वालों पर मेहरबानी दिखा रहे हैं। भारत में खालिस्तानी आतंकियों को शरण देने वाले एक सिख व्यक्ति को कनाडा में एंट्री मिल गई है। इस घटनाक्रम से ट्रूडो के चेहरे पर से एक बार फिर शराफत की चादर उतर गई है। ये सब तब हुआ है, जब भारत और कनाडा के रिश्ते बहुत ही नाजुक दौर में चल रहे हैं।
कनाडा के अखबार नेशनल पोस्ट के मुताबिक, कनाडा की संघीय सरकार ने एक ऐसे सिख व्यक्ति को देश में प्रवेश की इजाजत दे दी है, जिसने भारत में सशस्त्र खालिस्तानी आतंकवादियों को न सिर्फ एक दशक तक शरण दी बल्कि उसे खिलाया-पिलाया और पाला पोसा। इमिग्रेशन ट्रिब्यूनल के आदेश में कहा गया है कि उसके सामने कनाडा सरकार ने उस सिख की पैरवी की थी और कहा था कि उसे कनाडा में प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि उस शख्स ने प्रतिशोध के डर से ऐसा किया था।
आव्रजन और शरणार्थी बोर्ड (Immigration and Refugee Board) ट्रिब्यूनल एक हालिया फैसले में उसके सदस्य हेइडी वॉर्सफ़ोल्ड ने कहा, संघीय सरकार के पास भारतीय नागरिक कमलजीत राम को कनाडा में प्रवेश करने से रोकने के उचित और स्वीकार्य आधार नहीं थे। हालांकि उस पर भारत में खालिस्तानी आतंकवादियों को "सुरक्षित घर" और "साजोसामान" मुहैया कराने के आरोप थे। उस खालिस्तानी आंदोलन का उद्देश्य भारत सरकार को उखाड़ फेंकना था।
बता दें कि एक साक्षात्कार के दौरान कमलजीत राम ने कनाडा बॉर्डर सर्विसेज एजेंसी (CBSA) के अधिकारियों को बताया था कि उसने 1982 से 1992 के बीच भारत में अपने फार्म हाउस पर सशस्त्र सिख आतंकवादियों को आश्रय दिया था और उन्हें दाना-पानी भी दिया था। राम ने CBSA के अधिकारियों से यह भी बताया था कि वह अलग खालिस्तान राज्य और "अन्य सामाजिक मुद्दों" पर सिख आतंकवादी और खालिस्तानी आंदोलन का प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरावाले के अनुयायियों द्वारा प्रचारित विचारों का समर्थन करता है।
सीबीएसए के मुताबिक, ऐसे किसी भी शख्स को कनाडाई आव्रजन कानून के तहत कनाडा में प्रवेश करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए था, जो "किसी भी सरकार के खिलाफ तोड़फोड़" या बल प्रयोग के कार्य में शामिल रहा हो या उकसाने वाले व्यक्तियों से संबंधित रहा हो लेकिन राम के मामले में कनाडा सरकार ने ऐसा रुख अख्तियार नहीं किया और सशस्त्र उग्रवादियों को उसके समर्थन के इकरारनामे को भी नजरअंदाज कर दिया।
कमलजीत राम ने जिस कालखंड यानी 1982 से 1992 तक खालिस्तानी अलगाववादियों की मेजबानी की थी, उस समय भारत में सिखों और हिंदुओं के बीच तनाव चरम पर था। खासकर जून 1984 में स्वर्ण मंदिर परिसर पर खालिस्तानी आतंकियों के हमले के बाद, ऑपरेशन ब्लू स्टार में भिंडरावाले की हत्या कर दी गई थी। इसके कुछ महीने बाद ही प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। करीब एक दशक तक चले सैन्य अभियान में पंजाब में खालिस्तान समर्थकों के हिंसक विद्रोह को 1995 के आसपास दबा दिया गया था।
बता दें कि कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने पिछले महीने आरोप लगाया था कि खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय खुफिया एजेंसियों की कथित संलिप्तता है। भारत ने इसका कड़ा वोरिध किया है और आरोप के पक्ष में पुख्ता सबूत मांगे हैं लेकिन अभी तक कनाडा कोई सबूत नहीं पेश कर सका। पिछले साल 18 जून को निज्जर की वेंकूवर के एक गुरुद्वारे के पार्क में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कनाडा के आरोप के बाद दोनों देशों ने एक दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था।
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