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बिल्लियों में शैतान की आत्मा, जब पोप के आदेश पर कत्लेआम करने लगे लोग; कैसे हुई गलतफहमी?

  • इस दौर में, यूरोप में अंधविश्वास और जादू-टोने का डर भी व्यापक था। लोग प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों को अक्सर दैवीय प्रकोप या शैतानी शक्तियों से जोड़ते थे।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, रोमTue, 22 April 2025 09:39 AM
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बिल्लियों में शैतान की आत्मा, जब पोप के आदेश पर कत्लेआम करने लगे लोग; कैसे हुई गलतफहमी?

21 अप्रैल 2025 को पोप फ्रांसिस के निधन ने विश्व भर में कैथोलिक समुदाय और इतिहास प्रेमियों का ध्यान एक बार फिर पोप और उनके ऐतिहासिक फैसलों की ओर खींचा है। पोप फ्रांसिस अपने प्रगतिशील विचारों और सामाजिक समावेशिता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने चर्च के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। लेकिन कैथोलिक चर्च का इतिहास केवल प्रगति और सुधारों का ही नहीं, बल्कि कुछ विवादास्पद और रहस्यमय घटनाओं का भी है। ऐसा ही एक किस्सा है 13वीं शताब्दी के पोप ग्रेगरी IX और तथाकथित "बिल्लियों के अभिशाप" का। इसे मध्ययुगीन यूरोप में बिल्लियों, विशेष रूप से काली बिल्लियों, के प्रति अंधविश्वास और भय से जोड़ा जाता है। आइए, इस दिलचस्प घटना को विस्तार से समझते हैं।

पृष्ठभूमि: मध्ययुग में धर्म, अंधविश्वास और डर

13वीं शताब्दी का यूरोप एक ऐसा दौर था, जहां कैथोलिक चर्च का प्रभाव अपने चरम पर था। यह वह समय था जब चर्च न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन का केंद्र था। पोप ग्रेगरी IX का कार्यकाल 1227 से 1241 तक रहा। वह एक प्रभावशाली और सुधारवादी पोप थे। वे अपने समय में चर्च की शक्ति को मजबूत करने और विधर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए जाने जाते थे। इस दौर में, यूरोप में अंधविश्वास और जादू-टोने का डर भी व्यापक था। लोग प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों और सामाजिक अशांति को अक्सर दैवीय प्रकोप या शैतानी शक्तियों से जोड़ते थे।

पोप ग्रेगरी IX ने इस माहौल में "Vox in Rama" नामक एक पापल बुल (पोप का आधिकारिक आदेश) 1233 में जारी किया, जिसे बिल्लियों के साथ जोड़े गए मिथक का आधार माना जाता है। यह पापल बुल जर्मनी में कथित विधर्मी समूहों, विशेष रूप से लूसिफेरियन संप्रदाय, के खिलाफ कार्रवाई के लिए था। इस दस्तावेज में कुछ ऐसी बातें थीं, जिन्हें बाद में बिल्लियों, खासकर काली बिल्लियों को शैतान से जोड़ने के लिए गलत तरीके से व्याख्या किया गया।

वॉक्स इन रोमा यानी पापल बुल में क्या था?

वॉक्स इन रोमा को पोप ग्रेगरी IX ने जर्मनी के माइंट्स के आर्कबिशप और अन्य धार्मिक नेताओं को संबोधित करते हुए लिखा था। इस आधिकारिक आदेश में, पोप ने एक कथित विधर्मी समूह के बारे में बताया, जो शैतान की पूजा करता था। दस्तावेज में वर्णन किया गया कि इन समूहों के अनुष्ठानों में एक काले बिल्ले या बिल्ली की मूर्ति की पूजा शामिल थी, और यह कि शैतान कभी-कभी बिल्ली के रूप में प्रकट होता था। इस आदेश का उद्देश्य इन विधर्मी गतिविधियों को रोकना और चर्च की शक्ति को मजबूत करना था।

हालांकि, इस दस्तावेज में बिल्लियों को सामान्य रूप से अभिशप्त घोषित करने या उनके खिलाफ कोई व्यापक कार्रवाई का आदेश नहीं था। यह केवल खास संदर्भ में, एक कथित विधर्मी समूह के अनुष्ठानों को टारगेट करता था। फिर भी, मध्ययुगीन यूरोप के अंधविश्वासपूर्ण माहौल में, इस आदेश की व्याख्या अतिशयोक्तिपूर्ण तरीके से की गई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि स्थानीय पादरियों और समुदायों ने इसे व्यापक रूप से प्रचारित किया, जिससे बिल्लियों, विशेष रूप से काली बिल्लियों, को शैतान का प्रतीक मान लिया गया।

बिल्लियों का अभिशाप: मिथक बनाम वास्तविकता

यह माना जाता है कि "Vox in Rama" के बाद यूरोप में बिल्लियों के खिलाफ हिंसा बढ़ी। काली बिल्लियां, जो पहले से ही लोककथाओं में रहस्यमय प्राणी मानी जाती थीं, अब शैतान और जादू-टोने से जोड़ी जाने लगीं। कुछ कहानियों के अनुसार, लोग बिल्लियों को मारने लगे, उन्हें जलाने लगे, या उन्हें जादू-टोने का हिस्सा मानकर उनसे डरने लगे। इस मिथक को और बल तब मिला जब 14वीं शताब्दी में ब्लैक डेथ (प्लेग) ने यूरोप को अपनी चपेट में लिया। कुछ लोग मानते हैं कि बिल्लियों की हत्या के कारण चूहों की आबादी बढ़ी, जो प्लेग फैलाने वाले पिस्सुओं के वाहक थे, और इस तरह बिल्लियों का नरसंहार अप्रत्यक्ष रूप से प्लेग की तीव्रता का कारण बना। यानी बिल्लियों की संख्या कम होने से चूहों की संख्या बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप प्लेग का असर भी गहरा गया।

हालांकि, यह कहानी उतनी सरल नहीं है। कई इतिहासकार, जैसे डोनाल्ड एंगेल्स, अपनी किताब Classical Cats में तर्क देते हैं कि बिल्लियों के खिलाफ कोई व्यापक नरसंहार नहीं हुआ था। "Vox in Rama" का प्रभाव सीमित था, और यह मुख्य रूप से जर्मनी के कुछ क्षेत्रों तक ही प्रभावी रहा। इसके अलावा, मध्ययुग में बिल्लियां कई समुदायों में कीट नियंत्रण के लिए मूल्यवान थीं। मठों और गांवों में बिल्लियों को पालना आम बात थी, और कई धार्मिक चित्रों में बिल्लियों को सकारात्मक रूप से दर्शाया गया है।

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तथ्य और मिथकों का विश्लेषण

तथ्य:

पोप ग्रेगरी IX ने 1233 में "Vox in Rama" जारी किया, जिसमें कथित विधर्मी समूहों के अनुष्ठानों में बिल्ली की मूर्ति या बिल्ली के रूप में शैतान का उल्लेख था। इस बुल का उद्देश्य विधर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करना था, न कि बिल्लियों को सामान्य रूप से निशाना बनाना। मध्ययुग में अंधविश्वास के कारण काली बिल्लियों को जादू-टोने से जोड़ा गया, और "Vox in Rama" ने इस धारणा को कुछ हद तक बढ़ावा दिया।

मिथक:

यह व्यापक रूप से माना जाता है कि पोप ग्रेगरी IX ने बिल्लियों को "शैतान का दूत" घोषित किया और उनके नरसंहार का आदेश दिया। यह अतिशयोक्ति है; ऐसा कोई स्पष्ट आदेश नहीं था। बिल्लियों के नरसंहार को सीधे तौर पर ब्लैक डेथ से जोड़ना आसान नहीं है। प्लेग के कई कारण थे, जिनमें स्वच्छता की कमी और व्यापार मार्गों के माध्यम से चूहों का प्रसार शामिल था।

असर और आधुनिक संदर्भ

पोप ग्रेगरी IX और बिल्लियों का यह किस्सा आज भी पोप संस्कृति और इतिहास की चर्चाओं में जीवित है। काली बिल्लियां आज भी कई संस्कृतियों में अशुभ मानी जाती हैं, और इसका एक कारण मध्ययुगीन अंधविश्वास हो सकता है। सोशल मीडिया पर भी इस कहानी को बार-बार दोहराया जाता है। हालांकि पोप फ्रांसिस जैसे नेताओं ने, जो समावेशिता और वैज्ञानिक समझ को बढ़ावा देते थे, इस तरह के अंधविश्वासों को कम करने में योगदान दिया। फिर भी, यह कहानी हमें इतिहास के उन पन्नों की ओर ले जाती है, जहां डर और गलतफहमी ने समाज को गहरे तरीके से प्रभावित किया।

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